अयोध्या में श्रीराम मंदिर आंदोलन में बंगाल के कोठारी बंधुओं ने अपने प्राण न्यौछावर किए थे। राम कुमार कोठारी और शरद कोठारी दोनों सगे भाईयों ने सबसे पहले कारसेवा वाले दिन ढांचे के गुंबदों पर चढ़कर भगवा फहराया था। बाद में वो पुलिस की गोलियों का शिकार हो गए। 5 अगस्त को श्रीराम मंदिर निर्माण के लिए होने वाले भूमिपूजन कार्यक्रम कोठारी बंधुओं के परिजनों को आमंत्रित किया गया है। कोठारी बंधुओं की बहन पूर्णिमा कोठारी ने ट्रस्ट की तरफ से निमंत्रण मिलने की पुष्टि की है। वो 3 या 4 अगस्त को कोलकोता से अयोध्या के लिए निकलेंगी और समय पर पहुँच शिलान्यास कार्यक्रम में शामिल होंगी।
मंदिर आंदोलन के अमर बलिदानी कोठारी बंधु
21 से 30 अक्टूबर 1990 तक अयोध्या में लाखों की संख्या में कारसेवक जुट चुके थे। सब विवादित स्थल की ओर जाने की तैयारी में थे। विवादित स्थल के चारों तरफ भारी सुरक्षा थी। अयोध्या में लगे कर्फ्यू के बीच सुबह करीब 10 बजे चारों दिशाओं से बाबरी मस्जिद की ओर कारसेवक बढ़ने लगे। इनका नेतृत्व कर रहे थे अशोक सिंघल, उमा भारती, विनय कटियार जैसे नेता. विवादित स्थल के चारों तरफ और अयोध्या शहर में यूपी पीएसी के करीब 30 हजार जवान तैनात किए गए थे। इसी दिन बाबरी मस्जिद के गुंबद पर शरद (20 साल) और रामकुमार कोठारी (23 साल) नाम के भाइयों ने भगवा झंडा फहराया।
बस से बैरिकेडिंग तोड़कर विवादित स्थल तक पहुंचे थे कारसेवक
साधु-संतों और कारसेवकों ने 11 बजे सुरक्षाबलों की उस बस को काबू कर लिया जिसमें पुलिस ने कारसेवकों को हिरासत में लेकर शहर के बाहर छोड़ने के लिए रखा था। इन बसों को हनुमान गढ़ी मंदिर के पास खड़ा किया गया था। इसी बीच, एक साधु ने बस ड्राइवर को धक्का देकर नीचे गिरा दिया। इसके बाद वो खुद ही बस की स्टीयरिंग पर बैठ गया। बैरिकेडिंग तोड़ते हुए बस विवादित परिसर की ओर तेजी से बढ़ी। बैरिकेडिंग टूटने से रास्ता खुला तो 5000 हजार से ज्यादा कारसेवक विवादित स्थल तक पहुंच गए।
हालात को संभालने के लिए चलानी पड़ीं गोलियां
मुलायम सिंह यादव उस वक्त यूपी के मुख्यमंत्री थे। उनका साफ निर्देश था कि मस्जिद को कोई नुकसान नहीं पहुंचना चाहिए। पुलिस को पहले स्पष्ट निर्देश दिया गया था कि लोगों को तितर-बितर करने के लिए केवल आंसू गैस के गोले छोड़े जाएं। लेकिन, बैरिकेडिंग टूटने के बाद कारसेवक विवादित ढांचे के गुंबद पर चढ़ गए। वहां, कोठारी बंधुओं ने भगवा झंडा फहरा दिया। इसके बाद पुलिस ने कारसेवकों पर फायरिंग की। सरकारी आंकड़ों के अनुसार 30 अक्टूबर 1990 को अयोध्या में हुई फायरिंग में 5 कारसेवकों की जान चली गई। सीआरपीएफ के जवानों ने दोनों कोठारी भाइयों को पीटकर खदेड़ दिया।
200 किमी पैदल चल अयोध्या पहुंचे थे कोठारी बंधु
22 अक्टूबर की रात शरद और रामकुमार कोठारी कोलकाता से चले थे। बनारस आकर रुक गए थे। सरकार ने ट्रेनें और बसें बंद कर रखी थीं। तो वे टैक्सी से आजमगढ़ के फूलपुर कस्बे तक आए। इसके बाद यहां से सड़क का रास्ता भी बंद था। लेकिन दोनों 25 अक्टूबर को अयोध्या की तरफ पैदल निकले पड़े। करीब 200 किलोमीटर पैदल चलने के बाद 30 अक्टूबर को दोनों अयोध्या पहुंचे। 30 अक्टूबर को गुंबद पर चढ़ने वाला पहला आदमी शरद कोठारी ही था। फिर उसका भाई रामकुमार भी चढ़ा। दोनों ने वहां भगवा झंडा फहराया था।
2 नवंबर को दोनों भाइयों को लगी गोली, गई जान
30 अक्टूबर को गुंबद पर झंडा लहराने के बाद शरद और रामकुमार 2 नवंबर को विनय कटियार के नेतृत्व में दिगंबर अखाड़े की तरफ से हनुमानगढ़ी की तरफ जा रहे थे। जब पुलिस ने गोली चलाई तो दोनों पीछे हटकर लाल कोठी वाली गली के एक घर में छिप गए। लेकिन थोड़ी देर बाद जब वे दोनों बाहर निकले तो पुलिस फायरिंग का शिकार बन गए। दोनों ने मौके पर ही दम तोड़ दिया।
4 नवंबर को अंतिम संस्कार में उमड़े थे हजारों लोग
4 नवंबर 1990 को शरद और रामकुमार कोठारी का सरयू के घाट पर अंतिम संस्कार किया गया। उनके अंतिम संस्कार में हजारों लोग उमड़ पड़े थे। दोनों भाइयों के लिए अमर रहे के नारे गूंज रहे थे। शरद और रामकुमार का परिवार पीढ़ियों से कोलकाता में रह रहा है। मूलतः वे राजस्थान के बीकानेर जिले के रहने वाले थे। दोनों भाइयों के अंतिम संस्कार के करीब एक महीने बाद ही 12 दिसंबर को इनकी बहन की शादी होने वाली थी।
टीम स्टेट टुडे
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