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Pro-Incumbency सेट कर बीजेपी ने विपक्ष को लड़ाया मुद्दाविहीन लोकसभा चुनाव 2024 - अपने दम पर बीजेपी गठबंधन संग पार करेगी 372 का आंकड़ा




ऐसा नहीं है कि 140 करोड़ से ऊपर के देश में चले आम चुनाव में जनता से जुड़े असल मुद्दे नहीं थे। लेकिन, दस साल से सत्ता में बैठी मोदी सरकार ने अपने काम के आधार पर जो रास्ता तैयार किया उस पर जनता तो चलती रही लेकिन किसी और की राजनीति नहीं चल पाई, खासतौर से जब बात केंद्रीय सत्ता की हो।


2024 के आम चुनाव में मतदान की प्रक्रिया 1 जून 2024 को सात चरणों में पूरी हो गई। 4 जून को नतीजे आएंगें। उससे पहले का समय एक्ज़िट पोल पर चर्चा करने में जाता है। मतदान के बाद भारत के 543 लोकसभा निर्वाचन क्षेत्रों में मतदाता के मन को टटोलना आसान नहीं। जो इस काम को कर रहा है उसे अपनी साख का ख्याल भी रखना है।


साख का सवाल इसलिए जरुरी है क्योंकि बीते दस साल में मोदी सरकार की असल कमाई ही साख की है। भारत के भीतर और विदेश में भारत की साख जिस तरह से मजबूत हुई है उसने हवाबाजों और कयासवीरों की लंका लगा दी है। तर्क हो सकते हैं , कुतर्क नहीं। सत्य भी तथ्य के साथ जरुरी है।


राज्यवार सीटों के आंकड़ों में कुछ भिन्नता हो सकती है लेकिन भारतीय जनता पार्टी नरेंद्र मोदी की अगुवाई में वर्ष 2024 के आम चुनाव में अपने दम पर 372 का आंकड़ा पार करने जा रही है।


ऐसा नहीं है कि मोदी सरकार भारत की जनता अपेक्षाओं पर पूरी तरह खरी उतर गई है लेकिन बड़ी बात यह है कि पिछले दस साल में केंद्र की बीजेपी सरकार ने जो भी फैसले लिए उसके बारे में जनता को इतना ज्यादा बताया कि लोग सुन-सुन कर ऊब गए। विपक्ष यहीं चूक गया। दरअसल विपक्ष को यह लगा कि जनता मोदी सरकार की बातें सुन-सुन कर ऊब गई है लेकिन भारत में वंचितों की संख्या भी इतनी बड़ी है कि किसी ना किसी स्तर पर लाभ लेने वालों की भी कोई कमी नहीं रही।


विपक्ष इस बात को समझने में भी चूक गया कि भारतीयों की दिलचस्पी अपने घर से ज्यादा पड़ोसी के घर क्या हो रहा है इस बात पर होती है। मोदी सरकार ने इसी बात को भुना लिया। जो सड़क पर था उसे पक्का मकान दे दिया, जो पक्के मकान में था उसे शौचालय दे दिया, जिसके पास शौचालय भी था उसे कृषि निधि दे दी, जिसके पास सही मायनों में हुनर था उसे पद्म सम्मान दे दिया, जो बेरोजगार था और कुछ करना चाहता था उसे कुछ नहीं तो पकौड़े तलने का विकल्प दे दिया, जो पहले से गुमटी लगा कर बैठा था उसे व्यापार बढ़ाने के लिए मुद्रा लोन दे दिया, जो बड़े कारोबारी थे उन्हें विदेशों में कारोबार का विकल्प दे दिया, देश के भीतर स्टार्टअप लगाकर नए उद्योगपति पैदा कर दिए, रसोई में गैस कनेक्शन दे दिया तो जिनके पास सिलेंडर था उन्हें सौ रुपए का डिस्काउंट दे दिया। ऐसा नहीं मोदी सरकार ने सिर्फ जनता की ही चिंता की। राजनीतिक दलों को इलेक्टोरल बांड दिया, जो ज्यादा सयाने थे उन्हें तिहाड़ दिया, जो वृक्ष झुक गए उन्हें अभयदान भी दिया। सबको कुछ ना कुछ दिया।


अब कांग्रेस पूछ सकती है कि मोदी सरकार ने उसे क्या दिया। इस चुनाव की सबसे बड़ी बात यही है कि बीजेपी ने वर्ष 2024 के चुनाव को मोदी बनाम राहुल और राहुल गांधी ने मोदी बनाम इंडी बना दिया। ऐसे में क्षेत्रीय छत्रपों की जमीन बीजेपी ने नहीं कांग्रेस ने खत्म कर दी।



चुनावी भाषणों में खटाखट-फटाफट-सफाचट जैसे शब्दों ने विपक्ष के हमले की धार को भोंथरा कर दिया। विपक्ष इस बात को इस चुनाव में भी समझने से चूक गया कि उसके बड़े से बड़े वक्ता के पास भी ऐसा शब्दकोष नहीं है जैसे बीजेपी के टाइमपास नेता के पास मिल जाएगा।


अगर देश के 543 निर्वाचन क्षेत्रों में बीजेपी और उसके सहयोगी दलों की ओर से प्रत्याशियों को देखेंगे तो समझ आएगा कि इस बार देश का चुनाव विशुद्ध स्थानीय स्तर पर जातीय गोलबंदी के बीच प्रो-इनकम्बैंसी के साथ लड़ना बीजेपी की रणनीति थी और वो इसमें कामयाब रही। विपक्ष मंहगाई, भ्रष्टाचार और सरकार की योजनाओं की आलोचनाओं के बीच जिस प्रकार अपने संकल्प पत्र या घोषणा पत्र लाया वो उसके अतीत के अंधेरे में ढकेलने में बीजेपी ने देर नहीं लगाई। जो राजनीति के नए रंगरुट थे वो दिल्ली के राजा बने-बने तिहाड़ पहुंच गए।


गौर करने वाली बात है कि पश्चिम बंगाल से दिल्ली तक बीजेपी ने कई बार मुंह की खाई, नेतृत्व ने बेइज्जती सह कर खून का घूंट पिया लेकिन बीते दस साल में किसी भी राज्य में धारा 356 का इस्तेमाल नहीं किया। चुनी हुई सरकार से बदला ना लेते हुए इस बात का इंतजार किया कि सामने वाला गलती करे और फिर कानून अपना काम करे। कानून बनाना और उसका सही तरह से इस्तेमाल करना ही सरकार का असल काम है, फिलहाल भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस एक बात को बहुत बेहतर समझते हैं और इस्तेमाल भी करते हैं।


जो नरेंद्र मोदी से छूटा वो अमित शाह ने पकड़ा। जो अमित शाह ने कहा वो जेपी नड्डा ने शत-प्रतिशत किया। शत प्रतिशत को जन के मन में बैठाने का काम योगी आदित्यनाथ, भजनलाल शर्मा, मोहन यादव, हेमंत बिस्व सरमा, विष्णुदेव साय, भूपेंद्र पटेल, नायब सिंह सैनी, पुष्कर सिंह धामी जैसे कार्यकर्ताओं ने कर दिया।


और हां, चलते चलते एक पते की बात जो मंहगाई से जुड़ी है। मोदी सरकार जीएसटी लागू कर चुकी है। जिस दिन देश का प्रत्येक नागरिक यह तय कर लेगा कि अपनी हर छोटी से छोटी खरीद का दुकानदार से पक्का बिल लेना है उस दिन से मंहगाई कम होने लगेगी। अगर आपको यकीन ना आए तो इस बात से यकीन को पुख्ता कर लीजिए कि एमेजॉन, फ्लिपकार्ट या बड़े-बड़े मॉल शोरुम में आपको सामान इसलिए सस्ता मिलता है क्योंकि वहां जीएसटी लगा पक्का बिल ही आपको मिलता है। जिस दिन सरकार को छोटी से छोटी दुकान पर बिक्री होने वाले माल की सही जानकारी मिलने लगेगी उस दिन वस्तुओं के दाम घटने लगेंगें। वर्तमान समय में देश के चार्टर्ड एकाउंटेंट बड़े व्यापारियों के पास इकट्ठा हो रहे बिलों को इधर-उधर एडजस्ट कर रहे हैं जिससे कुछ लोगों के पास नंबर दो का पैसा बन रहा है और जनता मंहगाई झेल रही है। अगर जनता हर खरीद के लिए पक्के बिल पर सचेत नहीं हुई तो वो दिन भी दूर नहीं जब मोदी सरकार एक वेबसाइट लांच करेगी और बिलिंग का पूरा जिम्मा सरकार अपने कंधे पर उठा लेगी।

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