लेखक - श्री के.के. शुक्ला
2024 लोक सभा चुनाव भाजपा क्यों हुई कमजोर मित्रों व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी के ज्ञान लेकर उत्तर प्रदेश में भाजपा के पराजय और देश में 400 पार न कर पाने के मोदी जी के नारे पर राजनीतिक पंडितों जो राजनीति का एबीसीडी भी नहीं जानते ऐसे धुरंधर विद्वानों द्वारा विभिन्न प्रकार के कारण बताए जा रहे हैं।
मैं काफी दिनों से सोच रहा था जब यूनिवर्सिटी व्हाट्सएप के प्रोफेसरो का ज्ञान समीक्षा लेखन समाप्त हो जाए तब किंचित रूप से बहुत थोड़ा सा राजनीतिक सोच रखने के कारण और एक राजनीतिक दल से जुड़ाव के कारण मेरे मन में जो विचार आ रहे हैं उन्हें सार्वजानिक रूप से प्रकट करें। भाजपा के उत्तर प्रदेश में कम सीटों के आने और देश में भी पहले जैसी स्थिति न रहने के कारण विवेचना करने के पूर्व हमें यह जानना होगा कि 2014 और 2019 में भाजपा की जीत के क्या कारण थे।
2014 में सारे देश में कांग्रेस के विरुद्ध व्यापक रोष था, भ्रष्टाचार के विरुद्ध अन्ना हजारे के आंदोलन ने देश में परिवर्तन की लहर चला रखी थी, भाजपा ही एकमात्र राष्ट्रीय स्तर पर विकल्प थी और भाजपा का नारा था "बहुत हुईं भ्रष्टाचार और महंगाई की मार इस बार भाजपा सरकार" और देश में मोदी जी के नेतृत्व में भाजपा सरकार 283 सीट्स लेकर गठित हुई, मेरा यहां यह भी मानना है कि मोदी जी की जगह उस समय भाजपा का कोई भी बड़ा नेता नेतृत्व करता तो भी लगभग इसी के आसपास सीट्स आती ।
अब 2019 का चुनाव पर भाजपा की जीत का विश्लेषण करें तो हम पाते हैं कि भाजपा ने बालाकोट और सर्जिकल स्ट्राइक करके राष्ट्रवाद की जो लहर चलाई और नारा दिया राष्ट्रवाद की ललकार इस बार फिर से भाजपा सरकार और भाजपा 283 से बढ़कर 303 सीट्स जीतने में सफल रही । इस बार 2024 का चुनाव देखें इस चुनाव में कोई लहर थी ही नहीं । कोई भावनात्मक मुद्दे नहीं उभर पाए। यदि हम सन 1952 से आज तक के चुनावी सफर को देखें तो चुनाव हमेशा पार्टियों ने भावनात्मक मुद्दे उभार कर जीते। चाहे वह कांग्रेस रही हो चाहे वह भाजपा रही हो पर जब भावनात्मक मुद्दे नहीं होते हैं तो भारत में जातिवादी भावनाएं उभर कर आती हैं और जातिवाद के पंजे में जकड़ कर भाजपा वांछित परिणाम नहीं ला पाती है।
सन 1952 और 57 के चुनाव कांग्रेस ने राजनीतिक रूप से राष्ट्रीय आंदोलन की भावना जो स्वतंत्रता के प्राप्त के तत्काल बाद हो रहे थे की लहर में सवार होकर जीते सन 1967 में हुए लोकसभा के चुनाव में कांग्रेस बहुत ही कम बहुमत प्राप्त कर पाई और वामपंथी दलों के सहयोग से सरकार 5 साल चली सन 1971 में इंदिरा गांधी ने भावनात्मक मुद्दा उभार और गरीबी हटाओ का नारा दिया बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया राजाओं के प्रीविपर्स बंद किया जिससे कि देश की आम जनता को लगा कि कांग्रेस वास्तव में गरीबी हटाने के नारे को पूरा कर सकती है और कांग्रेस को स्पष्ट बहुमत दिया गया लेकिन वहीं कांग्रेस 1977 का चुनाव बुरी तरह हार जाती है क्योंकि परिवार नियोजन और आपातकाल के कठोर तानाशाही रवैया के खिलाफ जनता पार्टी एकजुट खड़ी हुई और भारी बहुमत से जीती। विभिन्न दलों के गठन से गठित जनता पार्टी आपसी लड़ाई में बिखर कर 1980 में हुए मध्यवर्ती चुनाव में पूरी तरह हार गई और कांग्रेस देगी मजबूत सरकार नारे के साथ इंदिरा गांधी अपने साथ किए गए जनता पार्टी के राज्य में हुए अत्याचारों के खिलाफ जनता की भावना उभार कर फिर से चुनाव जीत जाती हैं
1984 के चुनाव में इंदिरा गांधी की हत्या के बाद उपजी सहानुभूति की लहर चलती है और राजीव गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस 400 से अधिक जीत हासिल करती है लेकिन वहीं कांग्रेस सन 1989 में बुरी तरह हारती है और विश्वनाथ प्रताप सिंह ने भ्रष्टाचार के विरुद्ध राजा नहीं फकीर है भारत की तकदीर है के नारे के साथ भाजपा के सहयोग से सरकार बनाई और 1984 में दो सीटों पर समिति भाजपा 1989 में 89 सिम प्राप्त कर ले भागी।
लेकिन फिर 1991 में राम मंदिर आंदोलन और आडवाणी जी द्वारा पूरे देश में चलाए गए राम रथ यात्रा के कारण जो राम लहर पैदा हुई उससे भाजपा मजबूत स्थिति में आकर खड़ी हो गई। इतना सब विश्लेषण करने का कारण यह है कि हमने देखा कि सारे चुनाव भावनात्मक मुद्दे पर कोई लहर पैदा करके ही जीतेंगे यह ऐसा पहला चुनाव था जिसमें वर्तमान सट्टा रोड पार्टी ने कोई लहर पैदा नहीं की परिणाम स्वरुप सभी जगह जातीय भावनाएं और निजी स्वार्थ उभर आए और भाजपा का नुकसान हुआ।
इससे पहले हम यह भी देखें सैन 1967 में भाजपा लोकसभा में 37 सिम जीती है उसमें गौ हत्या का तेज आंदोलन चला था और पूरे उत्तर भारत में भाजपा की सीट्स बढ़ गई थी यह मेरी भी समझ में नहीं आ रहा है इस चुनाव में जाने के पहले वर्तमान सरकार ने कोई लहर चलने की पहल करने में क्यों कंजूसी की। मैं समझता हूं की स्थिति स्पष्ट हो गई होगी अतः यह 2024 का चुनाव हम अति आत्मविश्वास और और भ्रम की स्थिति में लड़ते रहे। इस चुनाव में नारा था इस बार 400 लेकिन 400 पार और यह 400पार किस लिए यह नहीं बताया जा रहा था जिसको बताने का काम किया विरोधी दलों ने कि भाजपा चार सौ पार करके संविधान को बदल देंगे आरक्षण को खत्म कर देंगे और हमारे लिए ऐसी धारणा बनने का काम हमारे ही कुछ लोगों ने किया याद रखिए लल्लू सिंह का अयोध्या का बयान अगर हमें 400 पर हो गया तो हम संविधान की समीक्षा करेंगे इसलिए हम किसी को दोष नहीं दे सकते यहां तक की यह भी बात लोगों को समझ में नहीं आ रही थी कि इस बार भाजपा सरकार की जगह कहने के बजाय कहा जा रहा था इस बार मोदी सरकार भाजपा की गारंटी ने देकर कहा जा रहा था मोदी की गारंटी यह बात भी बहुत से लोगों को जो वैचारिक धरातल से जुड़े हुए हैं और विचार संस्थान से जुड़े हुए हैं उनको व्यक्ति वादी राजनीति समझ में नहीं आई।
यही नहीं यदि हम चुनाव में देखें तो पहले जितने भी चुनाव दो हुए 14 और 19 उसमें बचाव की मुद्रा में विरोधी दल होते थे और वह हमारी पिच पर खेलते थे इस बार हम उनके पिच पर खेल रहे थे विरोधी दलों के प्रश्नों के प्रश्नों का जवाब दे रहे थे। इसमें कितनी सच्चाई है मैं नहीं जानता हूं लेकिन यदि उत्तर प्रदेश में 30% से ज्यादा लोकसभा प्रत्याशी बदल दिए जाते आज हम 272 से ज्यादा सीट्स जीत चुके होते हैं। केंद्रीय नेतृत्व को यह जांच करनी चाहिए कि आखिर इन सीटों को क्यों नहीं बदला गया क्या कोई दिल्ली का नेता लखनऊ स्थित मुख्यमंत्री को कमजोर करना चाह रहा था। भाजपा के पुराने समर्पित कार्यकर्ताओं की उपेक्षा, अयोग्य लोगों को संगठन में भागीदारी, चमचा संस्कृत का अत्यधिक बढ़ावा, यह बड़े छोटे-छोटे कारण भी हो सकते हैं ये कारण कुछ हद तक लेकिन कोई खास प्रभाव नहीं डाल पाते हैं। हां इस सुंदर में नद्धा का यह बयान कि भाजपा को प्रसंग की जरूरत नहीं है भाजपा अपने पैरों में खड़ी हो गई है उन्हें भी समर्पित कार्यकर्ताओं को चुनावी प्रचार से दूर रखने में योगदान दिया तो वही मोदी जी के सबसे प्रिय पुरुषोत्तम रुपाला गुजरात में क्षत्रिय समाज के प्रति दिए गए बयान ने भी घी में आज डाला यही नहीं प्रतापगढ़ में जाकर राजा भैया के गढ़ में अनुप्रिया पटेल ने भी ठाकुरों को भाजपा से दूर करने में पूरी कोशिश की पर यह सब कारण होते हुए भी इतने महत्वपूर्ण नहीं थे कि भाजपा की दशा खराब होती।
लेखक - श्री के.के. शुक्ला बीजेपी के वरिष्ठ कार्यकर्ता हैं।
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