आम चुनाव के बीच ही भारत के लगभग सभी विपक्षी दलों ने अपनी रणनीति बदल दी है। विपक्ष के निशाने पर अब मोदी नहीं अमित शाह हैं। अमित शाह को चौतरफा घेरने के लिए जो चक्रव्यूह तैयार किया गया है उसकी जड़े विदेशों तक फैली हैं।
“अमित शाह पर हमला करो तो मोदी का ध्यान बटेंगा”,
अमित शाह पर हमला करो तो बीजेपी संगठन निचले स्तर तक प्रभावित होगा,
अमित शाह पर हमला करो तो केंद्रीय मंत्रीमंडल का सबसे ताकतवर मंत्री और मंत्रालय हिलेगा,
अमित शाह पर हमला करो तो गृह मंत्रालय और विभिन्न जांच एंजेसियों का मनोबल प्रभावित होगा।
ऐसे विभिन्न बिंदुओं पर गहरी साजिश रचकर अलग-अलग तरह से केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह को विपक्ष अपने चक्रव्यूह में ले रहा है।
चूंकि अमित शाह पर सीधा वार नहीं किया जा सकता, इसलिए झूठ, छल, प्रपंच का सहारा लेकर साम-दाम-दंड-भेद की रणनीति पर विपक्ष खेल रहा है। विपक्ष के चक्रव्यूह का प्रभाव जैसे ही अमित शाह तक पहुंचा उसके नतीजे भी दिखने लगे।
अमित शाह को घेरने की रणनीति के कुछ ताजा उदाहरण और उनका प्रभाव देखिए –
आरक्षण पर अमित शाह का झूठा वीडियो वायरल हुआ। इस वीडियो के वायरल होते ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की रैलियों का एजेंडा बदलना पड़ा। चुनावी मंच से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को ना सिर्फ तकनीक के सहारे गढ़े जा रहे झूठ पर जनता को सचेत करना पड़ा बल्कि विपक्ष की अचनाक बदली रणनीति से चुनावी मौसम में अफवाहें अपना काम कर गईं।
फेक वीडियो वायरल करने के षडयंत्र में अपना सच सामने आता देख तेलंगाना के सीएम ने चुनावी मंच से दिल्ली पुलिस और गृह मंत्रालय पर हमला बोल दिया।
केंद्रीय गृहमंत्री का फेक वीडियो वायरल होने पर मंत्रालय को हरकत में आना पड़ा। चुनावी मौसम में चाहते- ना चाहते तमाम सोशल मीडिया प्लेटफार्म्स के साथ साथ षडयंत्रकारियों को पहचानने और पकड़ने के लिए जिस तरह की तत्परता की आवश्यकता हुई उससे विपक्ष को सरकार के खिलाफ नेरैटिव सेट करने का एक और मौका मिला।
बदलती तकनीक का गलत इस्तेमाल ना हो इसका बंदोबस्त करना भी सरकार की ही जिम्मेदारी है। विपक्ष इस बात को भी भुना रहा है।
दूसरा उदाहरण दिल्ली-एनसीआर के विभिन्न स्कूलों में बम लगाए जाने का ईमेल है।
दिल्ली-एनसीआर के स्कूलों में आंतकी धमकी के ईमेल का असर पूरे देश पर पड़ा। दिल्ली में आम लोगों के बीच मची अफरा-तफरी के बीच गृहमंत्रालय भी सकते में आ गया।
चूंकि अमित शाह भारतीय जनता पार्टी के सबसे बड़े रणनीतिकारों में से एक हैं इसलिए पहले दो चरणों में हुई कम वोटिंग ने भी उन पर दबाव बढ़ाया है। खासतौर से उत्तर प्रदेश में अस्सी सीटों को जीतने का लक्ष्य लेकर चल रही भाजपा पहले दो राउंड की वोटिंग के बाद असमंजस से है। खुद अमित शाह को हाई-एंड पर एक्टिव होना पड़ा है। प्रदेश संगठन के ढुलमुल रवैये और कार्यकर्ताओं के साथ-साथ पन्ना प्रमुख के स्तर तक जिस तरह का ढीलापन पार्टी के अंदर ही देखने को मिला है उसने बीजेपी के चाणक्य की पेशानी पर बल पैदा कर दिया है। इसी लिए अमित शाह कानपुर, बुंदेलखंड, वाराणसी के बाद जल्द ही लखनऊ में संगठनात्मक बैठक करने वाले हैं।
“अमित शाह और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की नहीं बनती”,
“योगी मंत्रिमंडल में अमित शाह ने अपने लोगों को फिट किया तो योगी ने यूपी की ब्यूरोक्रेसी को अपने तरफ किया”,
“पहले दो चरणों में मतदान का प्रतिशत गिराने के लिए लगातार लखनऊ से फोन किए गए”
इस प्रकार की चर्चाएं हमेशा से होती रहीं लेकिन हाल-फिलहाल पार्टी के भीतर और बाहर दोनों ही जगहों पर जोर पकड़ रही हैं। जो बातें हवा में उछाली जा रही हैं उनका सच जब सामने आएगा तब आएगा लेकिन इसका सीधा प्रभाव अमित शाह की रणनीति और आगे उनके करियर ग्राफ पर पड़ेगा ही पड़ेगा। यानी, अगर ये चर्चाएं विपक्ष की रणनीति हैं, तो अमित शाह को नुकसान पहुंचा कर बीजेपी का नुकसान विपक्ष की बड़ी रणनीति का ही हिस्सा है।
भारतीय राजनीति में मोदी-शाह की जोड़ी अब तक वो कमाल करने में कामयाब रही है जिसका बीजेपी समेत अन्य राजनीतिक दल सिर्फ सपना ही देखा करते थे।
इसलिए विपक्ष ने बीच चुनाव अपनी रणनीति बदल कर मोदी के बजाय अमित शाह को निशाने पर लिया है और कुछ इस तरह से लिया है जिसका प्रभाव सिर्फ अमित शाह या नरेंद्र मोदी या बीजेपी तक नहीं बल्कि विदेशों में भारत की छवि पर भी पड़ेगा।
इस बात से भी इंकार नहीं किया जा सकता कि विपक्ष के इस नए चक्रव्यूह में शुरुआत अमित शाह, उनके मंत्रालय और उनके संगठनात्मक दायरे से की गई हो जो आगे चल कर टीम मोदी के अन्य सदस्यों तक चली जाए।
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