पहले चरण में कार्बन क्रेडिट से लाभान्वित होंगे यूपी के छह मंडल के किसान
25,140 किसानों को अनुमानित 42,19,369 कार्बन क्रेडिट किया जाएगा
प्रत्येक पांचवें वर्ष में छह डॉलर प्रति कार्बन होगा क्रेडिट
2024-26 के मध्य 25140 किसानों को वितरित किए जाएंगे 202 करोड़ रुपये
द्वितीय चरण में सात मंडलों का भी कर लिया गया चयन
लखनऊ, 15 जुलाईः योगी सरकार एक तरफ जहां 20 जुलाई को 36.50 करोड़ पौधरोपण कर रिकॉर्ड बनाने की तरफ अग्रसर है, वहीं दूसरी तरफ कार्बन फाइनेंस के जरिए पौधरोपण करने वाले कृषकों की आय में भी वृद्धि का भी मार्ग प्रशस्त कर रही है। भारत सरकार ने 2070 तक देश को नेट जीरो कार्बन उत्सर्जन में सक्षम बनाने की घोषणा की है। किसानों द्वारा पौधरोपण करने से कार्बन क्रेडिट के माध्यम से उनकी आय में अतिरिक्त वृद्धि की जाएगी। इसके तहत किसानों को अधिक से अधिक तेज गति से बढ़ने वाले पौधों (पापुलर, मीलिया डूबिया, सेमल आदि) का रोपण करना होगा। प्रत्येक पांचवें वर्ष में छह अमेरिकी डॉलर के हिसाब से प्रति कार्बन क्रेडिट की खऱीद होगी। उल्लेखनीय है कि इससे लगाए गए पेड़ों से किसानों को अतिरिक्त आय भी होगी। इसके लिए योगी सरकार की ओर से किसानों को इंसेंटिव के माध्यम से लाभान्वित किया जाएगा। सीएम ने कार्बन फाइनेंस का प्रचार-प्रसार अधिक से अधिक किसानों तक करने का भी आदेश दिया है।
पहले चरण में कार्बन क्रेडिट से छह मंडलों के किसान होंगे लाभान्वित
कार्बन क्रेडिट से पहले चरण में उत्तर प्रदेश के छह मंडलों के किसान लाभान्वित होंगे। विगत दिनों हुई उच्च स्तरीय बैठक में सीएम ने किसानों को तत्काल इसका लाभ मुहैया कराने का आदेश दिया था। पहले चरण में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के गृह जनपद गोरखपुर, राजधानी लखनऊ, बरेली, मेरठ, मुरादाबाद व सहारनपुर को चयनित किया गया है। इस प्रक्रिया में टेरी व वीएनवी एडवाइजरी सर्विस का सहयोग प्राप्त किया जा रहा है।
25,140 किसानों को मिलेगी 202 करोड़ का इंसेंटिव
2024-2026 के मध्य कृषकों को 202 करोड़ का इंसेंटिव मिलेगा। प्रथम चरण में चयनित गोरखपुर के 2406 किसानों को 34.66 करोड़, बरेली के 4500 किसानों को 24.84 करोड़, लखनऊ में 2512 किसानों को 21.26 करोड़, मेरठ में 3754 किसानों को 21.67 करोड़, मुरादाबाद में 4697 किसानों को 38.05 करोड़, सहारनपुर मंडल के 7271 किसानों को 61.52 करोड़ रुपये की सहायता मिलेगी यानी कुल 25140 किसानों को 202 करोड़ रुपये का लाभ मिलेगा। पहले चरण में गोरखपुर मंडल के चयनित 100 किसानों को कार्बन क्रेडिट से प्राप्त 50 लाख वितरित किया जाएगा।
प्रत्येक पांचवें वर्ष होगा छह डॉलर प्रति कार्बन क्रेडिट
प्रत्येक पांचवें वर्ष छह डॉलर प्रति कार्बन क्रेडिट होगा। अनुमानित कार्बन क्रेडिट42,19,369 होगा। वहीं द्वितीय चरण में सात मंडल देवीपाटन, अयोध्या, झांसी, मीरजापुर, कानपुर, वाराणसी व अलीगढ़ का चयन किया गया है। तीसरे चरण में पूरे प्रदेश को कार्बन फाइनेंसिंग से आच्छादित करना प्रस्तावित है।
क्या है कार्बन अवशोषण-कार्बन क्रेडिट व्यापार
कार्बन फाइनेंसिंग अभिनव वित्तीय साधन है, जो कार्बन उत्सर्जन को मौद्रिक मूल्य प्रदान करता है। उत्सर्जन की भरपाई करने के इच्छुक व्यवसायों को कार्बन क्रेडिट के माध्यम से एक प्रकार का व्यापार योग्य परमिट उपलब्ध कराता है। कार्बन क्रेडिट अपने धारक को एक टन कार्बन डाईऑक्साइड या अन्य ग्रीनहाउस गैसों की समान मात्रा उत्सर्जित करने की अनुमति देता है। किसानों के परिपेक्ष्य में उनके द्वारा लगाए गए पेड़ों के जरिए कार्बन उत्सर्जन में आई कमी को यह लक्षित करेगा। किसानों को प्रति टन कार्बन डाईऑक्साइड उत्सर्जन रोकने के लिए कार्बन क्रेडिट दिया जा रहा है, जो उन्हें इंसेंटिव के तौर पर वित्तीय रूप से लाभ उपलब्ध कराएगा।
बीज पर योगी सरकार दे रही है 50 फीसद अनुदान
कम लागत में अगले फसल की उपज बढ़ेगी
बदल जाएगी मिट्टी की भौतिक संरचना
लखनऊ, 15 जुलाई। अगर रबी की फसल (गेंहू, आलू, तोरिया ,सरसों) के लिए आपने खेत को खाली छोड़ा हो तो मौसम देखकर आप ढैचा बो सकते है। यही नहीं जलजमाव या बाढ़ के कारण अगर किसी क्षेत्र की फसल नष्ट हो गई हो तो भी मौजूदा समय में उसमें ढैचे की खेती सबसे आसान विकल्प है।
इससे न केवल रबी की फसलों का उत्पादन बेहतर होगा,बल्कि उर्वरक खासकर नेत्रजन कम लगने से खेती की लागत भी करीब 25 फीसद घट जाएगी। और उपज इसी अनुपात में बढ़ जाएगी। भूमि में कार्बनिक तत्त्वों की वृद्धि से लंबे समय में भूमि की भौतिक संरचना बदलने से होने वाला लाभ बोनस होगा। जैविक खेती के लिए ढैंचा और हरी खाद की अन्य फसलें संजीवनी साबित होगी। पूर्व उप निदेशक भूमि संरक्षण डॉक्टर अखिलानंद पांडेय के अनुसार रबी की फसलों के लिए अब भी ढैचा बोने का पर्याप्त समय है।
ढैचें की खूबियों के मद्देनजर ही योगी सरकार लगातार किसानों को ढैंचा और हरी खाद की अन्य फसलों को बोने के लिए प्रोत्साहित कर रही है। इनके बीजों पर 50 फीसद अनुदान भी दे रही है। इस साल भी प्रति किलो दाम 90 रुपए था। इस बार अनुदान की राशि घटाकर कृषि केंद्रों पर पोओएस मशीन से विक्री हुई। पहले किसान को पूरा दाम देना पड़ता था। अनुदान की राशि संबंधित किसान के खाते में बाद में डीबीटी की जाती थी।
सरकार के प्रयास से हरी खाद के प्रति जागरूक हुए किसान
डॉक्टर पांडेय के अनुसार सरकार और के प्रयासों की वजह से पिछले दो दशकों के दौरान किसान हरी खाद (ढैचा, सनई, उड़द एवं मूंग) की उपयोगिता को लेकर जागरूक हुए हैं। लिहाजा इनके बीजों की मांग भी बढ़ी है। प्राकृतिक एवं जैविक खेती को प्रोत्साहन देने के लिए प्रतिबद्ध योगी सरकार भी भूमि में कार्बनिक तत्वों को बढ़ाने के लिए हरी खाद को प्रोत्साहित कर रही है। इन सबमें हरी खाद के लिहाज से सबसे उपयोगी ढैचा ही है।
उर्वरता के साथ भूमि की जलधारणा, वायुसंचरण व लाभकारी जीवाणुओं में होती है वृद्धि
ढैचा की फसल की जड़ों में ऐसे जीवाणु होते हैं जो हवा से नाइट्रोजन लेकर मिट्टी में स्थिर कर देते हैं। इसका लाभ अगली फसल को मिलता है। उनके मुताबिक कार्बनिक तत्व मिट्टी की आत्मा होते हैं। भूमि में ऑर्गेनिक रूप से इसे बढ़ाने का सबसे आसान एवं असरदार तरीका है हरी खाद। कार्बनिक तत्वों की उपलब्धता खुद में सभी फसलों की उत्पादकता बढ़ाने में सहायक होती है। साथ ही यह रासायनिक खादों के लिए भी उत्प्रेरक का काम कर उसकी क्षमता को बढ़ाती है।
खेत खाली न रहने से अगली फसल में खर-पतवारों का प्रकोप भी कम हो जाता है। इससे उर्वरता के अलावा संबंधित भूमि में जलधारणा, वायुसंचरण व लाभकारी जीवाणुओं में वृद्धि होती है। लगातार फसल चक्र में इसे स्थान देने से क्रमशः भूमि की भौतिक संरचना बदल जाती है।
बोआई के 6 से 8 हफ्ते बाद पलट दें फसल
इफको के मुख्य क्षेत्र प्रबंधक डा. डीके सिंह के अनुसार अगर हरी खाद के लिए ढैचा बोया गया है तो फसल की पलटाई बोआई के लगभग 6-8 हफ्ते बाद फूल आने से पहले कर लें। इसके बाद खेत में पानी में लगा दें। फसल का ठीक तरीके से और जल्दी डीकंपोजिशन (सड़न) हो, इसके लिए फसल पलटने के बाद और सिंचाई के पहले प्रति एकड़ 5 किलोग्राम यूरिया का बुरकाव भी कर सकते हैं। फसल के अवशेष करीब 3-4 हफ्ते में सड़ जाते हैं। इसके बाद अगली फसल की बोआई करें। प्रति हेक्टेअर खेत में 60-80 किग्रा बीज लगता है।
ढैचा के अलावा सनई ,मूंग, उर्द भी हरी खाद के कारगर विकल्प
ढैचा के अलावा सनई ,मूंग, उर्द भी हरी खाद के कारगर विकल्प हैं। बोआई का समय,मौसम, बीज की
उपलब्धता व जरूरत के अनुसार इनमें से किसी का भी चयन कर सकते हैं। इसमें से ढैचा एवं सनई हरी खाद के लिहाज से सर्वाधिक उपयुक्त हैं। मूंग एवं उड़द की बोआई से हरी खाद के साथ प्रोटीन से भरपूर दलहन की अतिरिक्त फसल भी संबंधित किसान को मिल जाती है। अलबत्ता इनके लिए खुद का सिंचाई का संसाधन होना जरूरी है। प्रति हेक्टेअर 15-20 किग्रा बीज की जरूरत होती है।
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