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कोरोनाकाल में सियासत कुछ ऐसा हावी रही कि भारत की उन संस्थाओं के प्रति घनघोर दुष्प्रचार किया गया जो दरअसल लोकतंत्र में आस्था और लोकतंत्र की मजबूती का आधार है।
सिर्फ दुष्प्रचार या आलोचना नहीं मामले अदालत तक पहुंचें। ऐसा ही एक आपराधिक दुष्प्रचार भारत की नई संसद सेंट्रल विस्टा के निर्माण कार्य को लेकर भी किया गया। जनसामान्य के बीच इस मोदी का घर बताते हुए निर्माण कार्य पर ना सिर्फ रोक लगाने की मांग की गई बल्कि गलत तथ्यों और बेहद गंदी भावनाओं के साथ लोकतंत्र के इस नए भवन की गरिमा को भी तार-तार किया गया। यहां तक कहा गया कि इसी भवन निर्माण के चलते कोरोना फैल रहा है।
अब दिल्ली हाईकोर्ट ने इस सेंट्रल विस्टा के निर्माण कार्य को लेकर दायर की गई याचिका को खारिज किया है और याचिकाकर्ता को कठघरे में खड़ा कर एक लाख का जुर्माना भी ठोंका है।
जाहिर सी बात है अदालत द्वारा दूध का दूध और पानी का पानी किए जाने के बाद विपक्ष के दुष्प्रचार पर हमला करने की बारी सत्तापक्ष की थी। अब केंद्र सरकार ने विपक्ष को आड़ेहाथों लिया है।
केंद्रीय शहरी आवास मंत्री हरदीप सिंह पुरी ने पार्लियामेंट की नई बिल्डिंग बनाने के पीछे विस्तार से तर्क रखे हैं। केंद्रीय मंत्री ने कहा कि सेंट्रल विस्टा पर पिछले कुछ समय से विपक्षी दलों की ओर से झूठी जानकारी फैलाई जा रही है। लोगों में गलत धारणा बनाकर पूरे देश को भ्रम में डाल दिया गया है। यह दूर्भाग्यपूर्ण है।
हरदीप सिंह पूरी ने कहा कि सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट अगले ढाई से तीन सौ साल के लिए है। इस प्रोजेक्ट को तेजी से बढ़ाने के पीछे सरकार का मकसद है कि आजादी की 75वीं वर्षगांठ नए संसद भवन में मनाया जाएगा। केंद्रीय मंत्री हरदीप सिंह पुरी ने कहा कि सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट को लेकर एक गलत कहानी गढ़ी जा रही है। इस पर महामारी के बहुत पहले फैसला ले लिया गया था।
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कब से चल रहा है सेंट्रल विस्टा का निर्माण कार्य
संसद का नया भवन बनाना इसलिए जरूरी है क्योंकि पुराना भवन सेस्मिक ज़ोन 2 में आता है। तेज भूंकप आए तो अब ये भवन सेस्मिक ज़ोन 4 में है। जब 2012 में मीरा कुमार लोकसभा अध्यक्ष थीं तो उनके एक OSD ने आवास मंत्रालय के सचिव को एक पत्र लिख कर कहा था कि एक फैसला ले लिया गया है कि एक नई संसद भवन बननी चाहिए। पुरी ने कहा कि आजादी के समय हमारी जनसंख्या 350 मिलियन के करीब थी। संसद भवन में हमें जगह की जरुरत होती है ताकि संसद सदस्य बैठ सकें। राजीव गांधी प्रधानमंत्री थे तब से यह मांग की जा रही है। कुल खर्चा 1300 करोड़ रुपये के आसपास है।
क्या कहा हाईकोर्ट ने
सेंट्रल विस्टा प्रोजेक्ट को लेकर सोमवार को दिल्ली हाईकोर्ट ने रोक लगाने वाली याचिका को खारिज कर दिया। कोर्ट ने कहा कि राष्ट्रीय महत्ता के लिए इसका निर्माण जरूरी है, ऐसे में इसके निर्माण कार्य को नहीं रोका जा सकता है।
क्या है धन आवंटन की स्थिति
केंद्रीय मंत्री से जब कोरोना वैक्सीन के लिए आवंटित पैसे पर उठ रहे सवाल के बारे में पूछा गया, तो उन्होंने कहा, 'देखिए, ऐसा कहा जा रहा है 20,000 करोड़ रुपये मरामारी के दौरान खर्च कर रहे हैं, ये वैक्सीनेशन कार्यक्रम में लगाइये। मैं बता दूं कि केंद्र ने वैक्सीनेशन के लिए 35,000 करोड़ आवंटित किया है। वैक्सीनेशन के लिए पैसे की कमी नहीं है, पर्याप्त पैसा है। वैक्सीन की उपलब्धता दूसरी बात है।
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विपक्ष ने क्यों किया दुष्प्रचार
दरअसल नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद कई ऐसे फैसले रहे हैं जिससे विपक्ष के पास ना सिर्फ धन की आमद रुकी बल्कि नोटबंदी के फैसले से उनकी कमर ही टूट गई। अलग अलग तरीके से जमा किया कालाधन एक झटके में स्वाहा हो गया। आमतौर पर ऐसा कालाधन निर्माण कार्य और रियल स्टेट से पैदा किया जाता रहा है। पूर्ववर्ती सरकारें आपदा के समय धन आवंटन जैसे सुनामी, केदारनाथ आपदा में मदद के लिए धन आवंटन, बड़े आयोजनों के धन आवंटन जैसे कामनवेल्थ खेलों के समय के प्रोजेक्ट, खनन एवं अन्य सरकारी योजनाओं के जरिए लूटपाट करती आई हैं। सेंट्रल विस्टा जैसा बड़ा प्रोजेक्ट अगर कई वर्षों के लिए खटाई में चला जाए तो ना सिर्फ इसकी लागत कई गुना बढ़ जाएगी बल्कि फिर जो धन आवंटन होगा उसमें मोटी मलाई काटने की पुरानी परंपरा को जिंदा कर अगला-पिछला बराबर करने की भी कोशिश होगी। इसलिए ऐसे तमाम कार्य जिससे सरकार को बदनाम कर भविष्य में लूटपाट की जा सकती है वो सभी प्रोजेक्ट विपक्ष के टारगेट पर हैं।
टीम स्टेट टुडे
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