सियासत आगे बढ़ने के लिए अपना वक्त और मुद्दा तलाश कर ही लेती है। उत्तर प्रदेश चुनाव के मुहाने पर खड़ा है। ऐसे में सबसे बड़ी चुनौती उस पार्टी के लिए होती है जो सत्ता में होती है।
वर्तमान में भारतीय जनता पार्टी बम-बम बहुमत के साथ यूपी की सत्ता में हैं। योगी आदित्यनाथ के हाथों में प्रदेश के नेतृत्व की बागडोर है। भारतीय जनता पार्टी की उत्तर प्रदेश में जब जब सरकार रहीं हैं कोई भी पूरे पांच साल प्रदेश की बागडोर अपने हाथ नहीं रख सका। ऐसे में योगी आदित्यनाथ एक इतिहास लिख रहे हैं। सिर्फ सत्ता संभालने को लेकर नहीं बल्कि जिस तरह कोरोना काल में पहली और दूसरी लहर में योगी आदित्यनाथ ने एक पैर पर खड़े रहकर प्रदेश को पटरी पर लाने के लिए दिनरात एक किया उसकी मिसाल वर्तमान समय में पूरे भारत में नहीं है।
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की इतनी तारीफ के लिए पर्याप्त कारण भी हैं। उत्तर प्रदेश देश का सबसे ज्यादा और सघन आबादी वाला राज्य है। 23 करोड़ से ज्यादा की आबादी, शहरों के साथ साथ अति पिछड़े और दूरस्थ इलाके, गांव-गांव तक कोरोना के हर दौर में पहुंचना और प्रदेश को बचाना आसान है ही नहीं। सीएम योगी आदित्यनाथ ने यह काम बखूबी किया है। दूसरी लहर में खुद कोरोना का शिकार होने के बावजूद जिस तरह से अप्रैल और मई के महीने में मुख्यमंत्री की सक्रियता रही वो भारत में बिरले ही देखने को मिली है।
वैक्सीनेशन को लेकर भी प्रदेश में हाय-तौबा की स्थिति नहीं है। चरणबद्ध तरीके से हर जिले में वैक्सीनेशन का काम हो रहा है। चार जिलों को छोड़कर बाकी प्रदेश पटरी पर लौट रहा है। कोरोना के कहर से जिन लोगों की जान गईं उनके परिवार की चिंता खुद मुख्यमंत्री योगी कर रहे हैं। अनाथ हुए बच्चे अब सरकार के बच्चे हैं। जिन घरों में कमाने वाले नहीं रहे उनके परिवारों की चिंता सरकार खुद कर रही है।
फिर भी ये उत्तर प्रदेश है। सोते-जागते अगर सियासी खुराक ना मिले तो सेहत बराबर रहती ही नहीं। इसलिए बीजेपी की वैक्सीन ना लगवाने के दुष्प्रचार, आए दिन विपक्ष के हमले और पार्टी की अंदरुनी खींचतान अगर वर्तमान उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री को अपने कर्तव्यपथ से डिगा नहीं पाई तो इसके पीछे एक योगी की तपस्या और प्रदेश की जनता के लिए पूर्ण समर्पण की भावना ही सर्वोपरि है। सरकार की बेदाग छवि भी सोने पर सुहागे का काम कर रही है। इस बीच पार्टी के भीतर की अंदरुनी खींचतान का कोई प्रभाव खुद योगी और योगी सरकार पर नहीं पड़ा है।
वैसे बंगाल चुनाव ने विपक्ष का मनोबल बढ़ा दिया है, लेकिन उत्तर प्रदेश खास है और इसका अंदाजा विपक्ष से ज्यादा सत्ताधारी भाजपा को है। विपक्ष ने योगी सरकार को घेरने की रणनीति तय की है, खुद भाजपा के अंदर कुछ स्तरों पर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से नाराजगी भी जताई जा रही है। लेकिन शीर्ष नेतृत्व से लेकर पर्दे के पीछे बैठने वाले रणनीतिकार आज के दिन योगी के चेहरे को ही जिताऊ मानते हैं और उनके चेहरे पर ही भाजपा दांव लगाएगी। खुद योगी को भी साबित करना होगा कि केंद्रीय नेतृत्व ने जिस भरोसे के साथ प्रदेश की जिम्मेदारी सौंपी थी, वह उस पर खरे हैं और लोगों का भी विश्वास है। माना जा रहा है कि जनवरी में विधानसभा चुनाव की घोषणा होगी।
पिछले दिनों उत्तर प्रदेश में भाजपा के बड़े नेताओं की समीक्षा बैठक ने अटकलों को तेज हवा दी। लेकिन भाजपा के भीतर से खबर है कि प्रदेश सरकार और संगठन में किसी बड़े बदलाव की संभावना और मुख्यमंत्री उम्मीदवार में बदलाव को खारिज करते हैं। यह सच है कि राष्ट्रीय महासचिव बीएल संतोष और प्रभारी राधामोहन सिंह के साथ मुलाकात में प्रदेश के कई नेताओं ने थोड़ी नाराजगी जताई थी। नौकरशाही को मिल रही वरीयता और कार्यकर्ताओं को नजरअंदाज करने का आरोप लगा था। बावजूद इसके योगी ने तब सक्रियता दिखाई जब कोरोना काल में कई जनप्रतिनिधि घर में घुसे बैठे थे। उन्होंने दौरा किया और लोगों का हौसला बढ़ाया। उस वक्त सपा के मुखिया अखिलेश भी दूर रहे और कांग्रेस प्रभारी प्रियंका ट्विटर पर ही दिखीं।
सामान्य प्रशासन में वह धमक दिखाने में कामयाब रहे हैं। बाहुबली हों या उपद्रवी, योगी ने प्रशासन का इकबाल दिखाया। मंत्रिमंडल में भले कई विवाद खड़े हुए हों, लेकिन व्यक्तिगत तौर पर योगी की ईमानदारी पर कोई अंगुली नहीं उठी। उत्तर प्रदेश में हिंदुत्व हमेशा से एक मुद्दा रहा है और योगी उस पहलू पर सबसे फिट बैठते हैं। उन्हें जाति के खांचे में गढ़ने की कोशिश हुई, लेकिन उनका हिंदुत्व का चोला बड़ा है।
जानकारी के मुताबिक अब तक किसी भी स्तर पर मुख्यमंत्री चेहरे में बदलाव को लेकर न तो चर्चा हुई है और न ही इसकी कोई संभावना है। बल्कि प्रदेश स्तर पर उनकी कार्यप्रणाली को लेकर शिकायत करने वाले नेताओं की ओर से भी उन्हें बदलने को लेकर कोई सुझाव नहीं दिया गया।
जातिगत और दूसरे समीकरणों के लिहाज से मंत्रिमंडल या संगठन में छोटे मोटे बदलाव किए जा सकते हैं। गठबंधन के नए साथियों की खोज और उन्हें भविष्य के संबंध में वादों का जिम्मा भी केंद्रीय नेतृत्व के साथ समन्वय के साथ किया जाएगा, लेकिन चेहरा योगी ही होंगे।
ये भी सच है कि योगी आदित्यनाथ के चुंबकीय व्यक्तित्व के आगे उनके प्रभाव और आभा मंडल से विपक्ष के भी पसीने छूट रहे हैं। ऐसे में अगर पार्टी संगठन भीतर की उठापटक को शांत रख कर एक बार फिर सत्ता में आने का ही लक्ष्य सर्वोपरि रख कर चला तो 2022 के चुनाव में चुनौती विपक्ष के सामने होगी।
टीम स्टेट टुडे
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