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कैराना का मास्टरस्ट्रोक बदलेगा बीजेपी का माहौल पश्चिमी उत्तर प्रदेश में !



2022 के विधानसभा चुनाव को देखते हुए पश्चिम उत्तर प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी ने नए सिरे से जान फूंकी है। 2017 के चुनाव में वेस्ट यूपी का कैराना हॉटस्पॉट था। 2022 के चुनाव में एक बार फिर इसी कैराना के जरिए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने सियासत को साधा है।

2017 से अब तक योगी आदित्यनाथ के कैराना में दो दौरे बेहद महत्वपूर्ण हैं। पहला दौरा 2017 का था, जब मुख्यमंत्री बनने के बाद वो वहाँ गए थे और दूसरा 8 नवंबर 2021 का है जब वो बार दोबारा मुख्यमंत्री बनने की हसरत लिए वहाँ पहुँचे ।


एक समय था जब कैराना का ज़िक्र भारत के शास्त्रीय संगीत के केंद्र बिंदु और कभी व्यापारिक केंद्र के तौर पर हुआ करता था लेकिन बीते एक दशक में कैराना हिंदुओं के पलायन की वजह से सुर्खियों में रहा।


2017 में हिंदुओं का पलायन कैराना समेत पश्चिमी उत्तर प्रदेश का मुख्य चुनावी मुद्दा बना तो 2022 के चुनाव से ठीक पहले पलायन कर गए हिंदू परिवारों की वापसी चर्चा में है।


मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने एक जनसभा को संबोधित करते हुए कहा, "मुज़फ़्फ़रनगर का दंगा हो या कैराना का पलायन, यह हमारे लिए राजनीतिक मुद्दा नहीं, बल्कि प्रदेश और देश की आन, बान और शान पर आने वाली आंच का मुद्दा रहा है।


जब हम सत्ता में नहीं थे, तब भी कहते थे कि इस तरह की कायराना हरकत को हम स्वीकार नहीं करेंगे और सत्ता में आए तो अपराध और अपराधियों के प्रति ज़ीरो टॉलरेंस की नीति के तहत कार्य प्रारंभ हुआ। कभी कैराना कस्बे में व्यापारी और कारोबारी को पलायन करने को मजबूर करने वाले को अपराधी विगत चार वर्षों में ख़ुद पलायन करने को मजबूर हो गए। शामली ज़िले में पड़ने वाला कैराना , पश्चिमी उत्तर प्रदेश का इलाक़ा है।


उत्तर प्रदेश प्रशासन का दावा है कि कैराना से पूर्व में पलायन करने वाले कुछ परिवार वापस आ रहे हैं. ऐसे कुछ परिवारों से मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने सोमवार को मुलाक़ात की, जिसका वीडियो भी उन्होंने सोशल मीडिया पर शेयर किया।


सबसे पहले कैराना से हिंदुओं के पलायन का मुद्दा बीजेपी सांसद हुकुम सिंह ने उठाया था। तब उन्होंने 300 से ज़्यादा परिवारों के पलायन की लिस्ट भी जारी की थी।


हुकुम सिंह ने जोर देकर कहा था पश्चिमी उत्तर प्रदेश खासकर कैराना से 'हिंदुओं का पलायन अपराध के डर से' हुआ है।


बीजेपी ने पलायन के मुद्दे पर स्थानीय जनता के साथ जिस तरह साथ देने की बात कही उसका फायदा बीजेपी को उसके बाद के दोनों चुनाव में हुआ। 2017 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी को उत्तर प्रदेश में 41 फ़ीसदी वोट मिले थे, लेकिन पश्चिमी उत्तर प्रदेश में औसत से ज़्यादा 43-44 फ़ीसदी वोट मिले। 2019 के लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश में बीजेपी को 50 फ़ीसदी से ज़्यादा वोट मिले थे, पश्चिम उत्तर प्रदेश के इलाक़े में बीजेपी को 52 फ़ीसदी वोट मिले थे।


अब जब कैराना में हिंदू परिवार वापस लौटे हैं तो मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने खुद कैराना जाकर उनसे मुलाकात की। साथ ही भयमुक्त वातावरण बने रहने का आश्वासन भी दिया। मुख्यमंत्री के दौरे के बाद कैराना समेत पश्चिमी उत्तर प्रदेश का माहौल बदला है। डरे सहमें लोगों के बीच ना सिर्फ भरोसा पैदा हुआ है बल्कि अराजक तत्व बैकफुट पर भी गए हैं।


चाहे पलायन की बात हो या फिर 2013 के मुज़फ़्फ़नगर के दंगे जिसकी वजह से हिंदू-मुसलमान में एक दरार आई, वो ज़ख़्म अब भी हरे हैं।


इस बीच चुनावी हार से बौखलाए विपक्ष ने भी पश्चिमी उत्तर प्रदेश में बीते सालों में अपनी ताकत झोंकी। खासतौर से राष्ट्रीय लोकदल ने जाट-मुस्लिम एकता का नारा फिर से जिंदा करने का प्रयास किया। चौधरी अजित सिंह ने बीते चुनाव में खुद कई इलाकों का दौरा कर लोगों को जोड़ने का प्रयास किया। अब जब चौधरी अजित सिंह दुनिया में नहीं हैं तो उनके बेटे जयंत विरासत को आगे बढ़ाने के लिए जुटे हैं।


लेकिन बात सिर्फ इतनी भर नहीं है। दरअसल पश्चिमी उत्तर प्रदेश पर बीते सालों में बीजेपी की पकड़ ढीली हुई है। एक के बाद एक कई मुद्दों ने यहां ऐसी जड़े जमाई हैं जिससे इस इलाके में बीजेपी की पकड़ कमजोर हुई।

इसमें सबसे खास दिल्ली यूपी बार्डर पर चल रहा किसान आंदोलन है जिसने पूरे पश्चिम में प्रभाव डाला है। विपक्ष का मानना है कि इसका नुकसान बीजेपी को चुनावी में होगा।


दूसरी तरफ केंद्रीय कृषि कानूनों पर बीजेपी का रुख साफ है। कृषि क़ानून को लेकर मोदी सरकार ने ख़ुद की पीठ थपथपाई है, उसे देख कर लग रहा है कि बीजेपी आश्वस्त है कि किसान आंदोलन की वजह से पश्चिमी

पश्चिमी उत्तर प्रदेश में 70 फ़ीसद़ी जनता किसानी करती है और उनकी भी जाति होती है। अब ये किसान, किसान के तौर पर वोट करेंगे या फिर हिंदू-मुसलमान के तौर पर, या फिर जाति के आधार पर, किसी पार्टी की जीत और हार इस पर भी तय होगी।


ऐसा इसलिए भी क्योंकि कभी महेंद्र सिंह टिकैत के खास रहे गुलाम मोहम्मद जौला ने मुजफ्फरनगर दंगों के बाद भारतीय किसान यूनियन से नाता तोड़ लिया था। बाद में अजित सिंह उनसे मिले और पैर छुए जबकि राकेश टिकैत ने जौला को गले लगाया। इस पर एक मंच से जौला ने कहा था कि जाटों ने दो गलतियां की पहली अजित सिंह को हरा दिया और दूसरी मुसलमानों पर हमला किया।


पश्चिमी उत्तर प्रदेश में मुसलमान 32 फ़ीसदी और दलित तकरीबन 18 फ़ीसदी हैं. यहाँ जाट 12 फ़ीसदी और ओबीसी 30 फ़ीसदी हैं।


फिलहाल उत्तर प्रदेश की राजनीति में पश्चिमी उत्तर प्रदेश एक प्रयोगशाला है, सभी राजनीतिक पार्टियाँ वहाँ नए-नए प्रयोग करती हैं। पलायन कर गए हिंदुओं का वापस लौटना अगर बीजेपी के पक्ष में जाता है तो दूसरी तरफ जयंत की अखिलेश से जुगलबंदी नए समीकरण पैदा कर सकती है।



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