google.com, pub-3470501544538190, DIRECT, f08c47fec0942fa0
top of page

साजिश थी यूपी के रास्ते दिल्ली को हिलाने की!मोदी,शाह,नड्डा से योगी की मुलाकात में पकड़ा गया षडयंत्र

Writer's picture: statetodaytvstatetodaytv

Updated: Jun 12, 2021




दिल्ली का रास्ता यूपी से तय होता है इसमें कोई संदेह नहीं।


अब मुद्दे की बात। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ दिल्ली गए। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृहमंत्री अमित शाह, बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जे.पी.नड्डा से उनकी मैराथन बैठकें हुईं। सीएम योगी भारत के राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद से भी मिले।


इन मुलाकातों से पहले बीजेपी यूपी प्रभारी राधामोहन सिंह, राष्ट्रीय महामंत्री बी.एल.संतोष यूपी के दौरे पर आए और योगी सरकार के मंत्रिपरिषद के तमाम मंत्रियों, विधायकों और अन्य नेताओं से मुलाकात की।

जाहिर है मुलाकातों का दौर चले, उत्तर प्रदेश में चले तो चर्चा तो होगी ही। चूंकि प्रदेश चुनाव के मुहाने पर खड़ा है इसलिए इसलिए इन मुलाकातों की गंभीरता और भी बढ़ जाती है।


और सबसे बड़ा सवाल इस पूरी कवायद की आवश्यकता ही क्यों पड़ी।


योगी के दिल्ली दौरे से जो बात सबसे आखिर में निकली उसे सबसे पहले जानना आपके लिए जरुरी है।

चुनाव से ठीक पहले भारतीय जनता पार्टी की राज्य और केंद्रीय इकाई के साथ साथ केंद्र और राज्य सरकारों के खिलाफ ये एक ऐसा बड़ा षडयंत्र था जिसका खुलासा तो हुआ जिसे सबको बताया गया है लेकिन खुल कर कोई नहीं बोलेगा, ये तय किया गया है। सरकार और संगठन को लेकर अतिरिक्त सावधानी हर स्तर पर बरती जाएगी और हर बात को तूल देने से बचना है, ये तय हुआ है। यूपी में भारतीय जनता पार्टी से जुड़ा हर नेता, मंत्री, कार्यकर्ता कितना महत्वपूर्ण है इसे सिर्फ बीजेपी ही नहीं संघ भी जानता है। इसलिए तय हुआ है कि आपसी मतभेदों को मनभेद बनाने से बचना है और संयम नहीं छोड़ना है।


चलती हुई सरकारों के खिलाफ साजिशें होती हैं। ये कोई नई बात नहीं है। उत्तर प्रदेश राजनीतिक लिहाज से कितना महत्वपूर्ण है इसका अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी वाराणसी से दूसरी बार सांसद हैं और विपक्ष कई प्रयोगों के बावजूद अब तक बीजेपी की बढ़त की काट नहीं निकाल पाया है। इसलिए राज्य इकाई का केंद्रीय इकाई से टकराव का एक ऐसा षडयंत्र रचा गया जिससे कुछ देर के लिए सब स्टैंडबॉय पर चला गया।



अब आपको एक एक कर इस पूरे षडयंत्र की व्यूह रचना बताते हैं


कैसे तैयार हुआ षडयंत्र का आधार


बीते साढ़े चार साल से योगी आदित्यनाथ यूपी की बागडोर संभाले हैं। ये भी सच है कि योगी को जितना केंद्रीय नेतृत्व का साथ मिला उतना ही आशीर्वाद संघ से भी मिला।


मुख्यमंत्री बनने के बाद योगी को संगठन और सरकार में शामिल बीजेपी के ही सहयोगियों से चुनौती मिलीं। ये स्वाभाविक भी था क्योंकि योगी आदित्यनाथ के सीएम बनने से पार्टी के भीतर चल रहे बहुत सारे समीकरण एक झटके में किनारे लग गए।


प्रदेश की राजनीति में संतुलन कायम रखने के लिए केशव प्रसाद मौर्या और डॉ.दिनेश शर्मा को उपमुख्यमंत्री बनाया गया। संगठन मंत्री सुनील बंसल हैं जो पार्टी और सरकार के बीच संघ की कड़ी हैं।


सरकार और संगठन के भीतर संघर्ष के पांच चरण


- मुख्यमंत्री के रुप में योगी आदित्यनाथ के प्रति अलग अलग स्तरों पर पूर्वाग्रह

- उपमुख्यमंत्री से ज्यादा प्रदेश अध्यक्ष रहते हुए केशव प्रसाद मौर्या के प्रदेश व्यापी समीकरण और उनसे आकांक्षाएं

- सर्वसुलभ होने की खूबी और जमीनी स्तर पर कार्यकर्ताओं के बीच लोकप्रिय संवाद रखने वाले डॉ.दिनेश शर्मा से आमजन की अपेक्षाओं की गठरी

- "भाजपा नहीं संघ कैडर" के चक्कर में संगठन मंत्री सुनील बंसल के साथ खासमखास दिखने की होड़

- संपूर्ण असमंजस में विधायकों के अनुत्तरित यक्ष प्रश्न और स्थानीय जनता का दबाव


इतनी सारी रस्साकशी के बीच विपक्ष की निगाह सिर्फ इस बात पर थी कि उत्तर प्रदेश को चलाएगा कौन- केंद्र या राज्य सरकार


इस बार विपक्ष ने बगैर कोई खाना खाली छोड़े अपनी व्यूह रचना को अंजाम दिया। यूपी में अब तक बीजेपी का कोई मुख्यमंत्री पांच साल का कार्यकाल पूरा नहीं कर सका। बल्कि 90 के दशक में जब पूरे पांच साल बीजेपी की सरकार चली तो प्रदेश की जनता ने तीन मुख्यमंत्री बदलते देख लिए।


कल्याण सिंह, रामप्रकाश गुप्ता और राजनाथ सिंह।


इस बार संघर्षों के कई स्तर होने के बावजूद जिस सहजता से प्रदेश सरकार चल रही थी वो विपक्ष और मीडिया दोनों के गले नहीं उतर रहा था। ऐसे में योजना बनाई गई कि असंतोष के कारणों को हवा दी जाए।


  • नतीजा ये हुआ कि पहले योगी और केशव के बीच दूरियां बढ़ीं।

  • फिर मंत्रिमंडल विस्तार में योगी ने कई ऐसे चेहरों की छुट्टी कर दी जो “बीजेपी नहीं संघ” के नाम पर खेल रहे थे। इससे सरकार और संगठन के बीच भ्रम पैदा कर उसे हवा दी गई।

  • संतुलित सरकार के जातिगत समीकरणों पर हथौड़ा ठाकुरवाद का चला और सरकार को ब्राह्मण विरोधी कह कर हवा दी गई।

  • रही सही कसर बसपा और सपा के शासनकाल में विधायकों और पार्टी नेताओं की ठसक याद दिलाकर विधायकों के जरिए पूरी कर दी गई।

  • इस पूरे प्रकरण में ना चाहते हुए भी सरकार और संगठन के भीतर मनभेद पनपे। खींचतान शुरु हुई। वर्चस्व और अहं का टकराव भी हुआ। ऐसे में पार्टी और संगठन से जुड़ा आम कार्यकर्ता उपेक्षित हुआ और उसे अपनी सरकार होने का जो मानसिक संतोष होना था वो भी जाता रहा।

  • इस बीच दूसरी पार्टियों से बीजेपी में आए और विधायक बने नेताओं के साथ साथ बीजेपी के विधायकों के सामने भी कहां जाएं, किससे कहें का संकट खड़ा हो गया।

  • इस पूरे झंझावत में मुख्यमंत्री योगी का निष्काम कर्मयोगी भाव, अपनी सरकार की छवि की चिंता, केंद्र की राज्य सरकार से अपेक्षा, निरंतर विकास के कार्यों को आगे बढ़ाने का लक्ष्य और यूपी की महीन और पेचींदा ब्यूरोक्रेसी की उलझी डोर ने भारतीय जनता पार्टी की सरकार और संगठन को फांस लिया।



इतना सब होने के बावजूद 2019 लोकसभा चुनाव में बीजेपी के प्रदर्शन ने विपक्ष को यूपी में एक सूत्री मंत्र दिया कि असंतोष फैलाओ, असंतोष दिखाओ और असंतोष का वातावरण बनने के बाद जब तक राज्य का धक्का केंद्र को लग ना जाए...जारी रहो।


और ये हो गया। विपक्ष अपने षडयंत्र में उस माहौल को बनाने में कामयाब हो गया जिससे जनता के बीच ये संदेश जाए कि मोदी और योगी में कौन बड़ा...केंद्र में मोदी नहीं योगी...यूपी में योगी नहीं कोई और...जितिन आ गए...ए.के.शर्मा को जगह नहीं मिली...सरकार में कोई सुनवाई नहीं...केशव नाराज हैं...दिनेश शर्मा काम नहीं करा पाते...सुनील बंसल तो मिलते ही नहीं...और ना जाने क्या क्या।


बावजूद इस पूरे षडयंत्र और षडयंत्र की कामयाबी के विपक्ष के हाथ क्या लगा। क्या आपने इस पर भी गौर किया।


कोई है जो दूर बैठा एक एक हरकत पर निगाह रखे है। कोई है जो विपक्ष की साजिश को बहुत पहले समझ कर सिर्फ वक्त का इंतजार कर रहा था कि षडयंत्रो की हवाओं को सुधार के तूफान से कैसे पटरी पर लाना है।

यूपी से उठा तूफान दिल्ली की यात्रा के बाद ठंडा ना भी दिखाई दे तो अब यहां से सीधे बीजेपी इसी नेतृत्व के साथ चुनाव में जाएगी।


प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हों, गृहमंत्री अमित शाह हों, बीजेपी अध्यक्ष जे.पी.नड्डा हों, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ हों, उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्या और डॉ.दिनेश शर्मा हो, बीजेपी के सांसद और विधायक हों, पार्टी का आम कार्यकर्ता हो सब ये जानते हैं कि अगर 2022 में सरकार फिर से ना बनी तो उनका क्या नुकसान होगा।


इसलिए कभी मुख्यमंत्री रहे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आज योगी आदित्यनाथ को ऐसा मंत्र दिया है जिसका आभार उन्होंने ह्रदयतल की गहराईयों से दिया है।


आज योगी आदित्यनाथ के पास यूपी की कमान है। उस कमान में हर दौर की बीजेपी का मान-सम्मान है। इसलिए सबका साथ और सबका विश्वास हासिल करने का काम अगर योगी की तरफ से शुरु हुआ है तो जिम्मेदारी सरकार और संगठन के हर उस छोटे-बड़े नेता, मंत्री, कार्यकर्ता, पदाधिकारी की भी है कि बंद कमरों की बातें ना बाहर जाएं और ना बाहर का शोर 2022 में सत्ता फिर से हासिल करने के लक्ष्य को प्रभावित कर सके।


टीम स्टेट टुडे


विज्ञापन
विज्ञापन

Comments


bottom of page
google.com, pub-3470501544538190, DIRECT, f08c47fec0942fa0