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वैक्सीनेशन के नाम पर कमीशनखोरी चाहती हैं कई राज्य सरकारें, “सुझाव” के नाम पर जाहिर हो रही मंशा




भारत में कई राज्य सरकारें ऐसी हैं जिन्हें वैक्सीन निर्माता कंपनियों से कमीशन चाहिए। एक तरफ राज्य सरकारें वैक्सीन की कीमत ना चुका पाने का रोना रोकर केंद्र सरकार से मुफ्त वैक्सीन की मांग कर रही हैं तो दूसरी तरफ भारत में जो दो कंपनियां वैक्सीन बना रही हैं अब उनसे कमीशनखोरी की डिमांड सामने आई है।


सिर्फ इतना ही नहीं कई राज्यों के मुख्यमंत्री बाकयदा प्रेस कांफ्रेंस करके ऐसी दलीलें दे रहे हैं जिससे लगता है कि उन्हें अपने राज्य की जनता की बड़ी चिंता है लेकिन हकीकत इससे बिल्कुल उलट है।


दरअसल ऐसे मुख्यमंत्री जनता की आड़ लेकर फार्मा कंपनियों से दलाली फिक्स कर रहे हैं जो कोरोना की वैक्सीन के फार्मूले को बिना रिसर्च और मेहनत के सिर्फ सियासी दबाव और जनता के नाम पर हासिल करना चाहते हैं।




ताजा मामला दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल का है। जिन्होंने बाकयदा प्रेस कांफ्रेंस कर के कहा कि वो दिल्ली में तीन लाख से ज्यादा लोगों को रोज वैक्सीन देना चाहते हैं। इसलिए वैक्सीन बनाने का फार्मूला सार्वजनिक हो और सभी कंपनियों को मिले। केजरीवाल ने कहा कि भारत सरकार दूसरी कंपनी को भी वैक्सीन बनाने का आदेश दे। दिल्ली वैक्सीन की कमी से जूझ रही है।


आपको बताते चलें कि दिल्ली सरकार के आंकड़ों के मुताबिक ही अभी दिल्ली में रोजाना 1.25 लाख लोगों को वैक्सीन लगाई जा रही है। केजरीवाल का कहना है कि उनका लक्ष्य अगले 3 महीने के अंदर दिल्ली के सभी लोगों का टीकाकरण करना है। लेकिन हम टीके की कमी का सामना कर रहे हैं।


दिल्ली के मुख्यमंत्री केजरीवाल की दलील के मुताबिक भारत में जो दो कंपनियां कोरोना वैक्सीन बना रहीं हैं वो एक महीने में 6-7 करोड़ वैक्सीन तैयार करती हैं। ऐसे में सबको टीका लगाने के लिए 2 साल से अधिक का समय लगेगा। तब तक कई लहरें आ चुकी होंगी। इसलिए युद्धस्तर पर वैक्सीन का उत्पादन बढ़ाना होगा। जब तक हर भारतीय को वैक्सीन नहीं लग जाती तबतक यह जंग नहीं जीती जा सकती।



कमीशन के दबाव में ही अदार पूनावाला भी शिफ्ट हुए लंदन


हालात ऐसे बुरे हैं कि कोविशील्ड वैक्सीन बनाने वाली सिरम इंस्टीट्यूट के मालिक अदार पूनावाला पूरे परिवार के साथ लंदन चले गए हैं। भारत सरकार ने पूनावाला को पहले वाई श्रेणी श्रेणी की सुरक्षा मुहैया कराई। बावजूद इसके पूनावाला भारत से चले गए।


अदार पूनावाला की तरफ से जारी बयान में कहा गया कि “ वैक्सीन सप्लाई को लेकर वो भारी दबाव में हैं और उन्हें कई धमकी भरे कॉल्स आ रहे हैं। वैक्सीन को लेकर सारा बोझ मेरे कंधों पर डाल दिया गया है। कई मुख्यमंत्रियों और बिजनेसमैन ने उन्हें वैक्सीन सप्लाई को लेकर कॉल किए हैं। मुझे जो कॉल आए हैं उनकी भाषा बेहद खराब है। वे लोग कह रहे हैं अगर आप हमें वैक्सीन नहीं देंगे तो अच्छा नहीं होगा। इस भाषा और तरीके को सही नहीं कहा जा सकता है।“


महाराष्ट्र भी बना रहा है दबाव


महाराष्ट्र के स्वास्थ्य मंत्री राजेश टोपे ने कहा कि 18 से 44 साल के लोगों के लिए फिलहाल टीकाकरण इसलिए रोका है, क्योंकि इस आयु वर्ग के लिए मौजूद वैक्सीन के स्टॉक से 45 या उससे ऊपर की उम्र वालों को टीका लगाया जाएगा। टीकाकरण कुछ समय के लिए ही स्थगित किया गया है। टोपे ने कहा कि फिलहाल 18 से 44 साल वाली आयु के लोगों के लिए 2.75 लाख टीके बचे हैं, इनका इस्तेमाल फिलहाल 45 या उससे ज्यादा उम्र वालों के लिए किया जाएगा। फिलहाल लोगों को टीके की दूसरी खुराक देना अहम है। टोपे की बात तथ्यपूर्ण लगती है लेकिन जिस तरह से वैक्सीन की बर्बादी महाराष्ट्र में हुई है वैसी किसी अन्य राज्य में नहीं हुई।


सुझाव की आड़ में कैसी सियासत और कितना कमीशन


केजरीवाल का ये सुझाव या डिमांड ऐसे समय पर आई है जब भारत सरकार ने टीकाकरण को लेकर सुप्रीम कोर्ट को भी अपने जवाब से संतुष्ट किया है और अदालत से टीकाकरण के मामले में किसी भी तरह के हस्तक्षेप ना करने का आग्रह किया है।


दरअसल भारत में ऐसी कई लॉबी इस समय काम कर रही हैं जो संक्रमण के इस कालखंड में हर वो नाजायज काम जायज तरीके से कर लेना चाहती हैं जिसमें उन्हें मेहनत बगैर मुनाफा ही मुनाफा नजर आ रहा है। इसके लिए पहले वकीलों के साथ सेटिंग कर जनहित के नाम पर अदालत में याचिका डलवाई गई। जब वहां से मुंह की खानी पड़ी तो अब शुद्ध रुप से वैक्सीन के मामले पर सियासी खेल शुरु हो गया है।


मुफ्त में वैक्सीन का फार्मूला हासिल करने और करवाने की इस सियासी पहल का पहला शॉट अरविंद केजरीवाल ने खेला है। कमीशनखोरी का ये मामला कितना गंभीर है इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि दिल्ली में ऑक्सीजन सिलेंडर की कालाबाजारी करने के आरोप से जुड़ा संदेश सोशल मीडिया पर वायरल होने के बावजूद अब तक आम आदमी पार्टी के राज्यसभा सांसद संजय सिंह चुप्पी साधे बैठे हैं। उन्होंने ना तो इस प्रकरण पर ना तो सफाई दी है और ना ही खंडन किया है।


जाहिर है कमीशन के लालच में जिन राज्यों के मुख्यमंत्रियों की अब तक धमकियों और अदालतों के जरिए नहीं चली है वो अब जनता की आड़ लेकर सियासी वार करके ऐसी लूट मचाना चाहते हैं जिसका कोई ओर-छोर ही नहीं है।


अगर वैक्सीन बनाना और उसका फार्मूला इतना ही सस्ता, बिकाऊ और आसान होता तो दुनिया की सिर्फ गिनी-चुनी कंपनियां ही वैक्सीन का उत्पादन ना कर रहीं होतीं। कोरोना वैक्सीन का निर्माण और उसकी सप्लाई हर देश की केंद्रीय सरकार ही कर रही है। कुछ समय पहले तक भारत के लिए ये गर्व की बात थी दो भारतीय कंपनियों ने दुनिया के तमाम देशों को पीछे छोड़ वैक्सीन बनाने में कामयाबी हासिल की। अब भारत में कई राज्य सरकारें उसी वैक्सीन के नाम पर दलाली करना चाहती हैं।



क्या है वैक्सीनेशन की हकीकत


आपके लिए यह जानना भी जरुरी है कि भारत में वैक्सीनेशन शुरु होने के 114 दिन दिन के भीतर सत्रह करोड़ से ज्यादा लोगों को वैक्सीन लग चुकी है। इसमें कोरोना वारियर्स से लेकर अब 18 साल से ऊपर की उम्र का हर व्यक्ति शामिल है। ये आंकड़ा दुनिया के किसी भी देश में हो रहे वैक्सीनेशन के आंकड़े से बड़ा है। जिन देशों की आबादी कम है वहां पर भी इतनी तेजी से वैक्सीनेशन नहीं हुआ है।


कैसे होती है कमीशनखोरी


कोरोना वैक्सीन के जब दाम तय किए गए तो उस पर काफी हो-हल्ला मचा था। कई राज्यों ने केंद्र से मुफ्त में वैक्सीन देने की मांग की। इसी बीच कई राज्य सरकारों ने मुफ्त वैक्सीनेशन की घोषणा की। दरअसल आम जनता को मुफ्त में लगने वाली वैक्सीन की कीमत राज्य सरकारें कंपनियों को चुकाती हैं। कई राज्य सरकारें चाहती हैं कि अपने राज्य में मुफ्त टीकाकरण के नाम पर जो रकम वो वैक्सीन निर्माता कंपनियों को चुका रही हैं उसमें उनका कमीशन कंपनियां तय करें। चूंकि पूरे मामले की निगरानी केंद्र सरकार कर रही है इसलिए राज्य सरकारों की कमीशनखोरी की मंशा पूरी नहीं हो सकी। इसलिए अब कभी वो वैक्सीन निर्माताओं को धमकी दे रही हैं, कभी जनहित याचिका डलवा रही हैं और अब तो वैक्सीन फार्मूला सार्वजनिक करने की मांग रख कर पूरी मंशा ही जाहिर हो गई है।


टीम स्टेट टुडे



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