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जम्मू कश्मीर को आतंक की आग में सीमा पार से नुकसान हुआ उससे कहीं ज्यादा कट्टर मुस्लिम सोच और जम्मू कश्मीर में सियासत करने वाले मुस्लिम नेताओं ने हालात बिगाड़े। जम्मू कश्मीर राज्य की सत्ता को ही ऐसा उद्योग बना दिया जिसमें अब्दुल्ला परिवार और मुफ्ती परिवार के साथ साथ हुर्रियत और अन्य अलगाववादियों ने अकूत धन इक्ट्ठा किया। विदेशों में संपत्तियां बनाई और जम्मू कश्मीर के आम आदमी के बीच कट्टर मुस्लिम सोच और भारत के प्रति नफरत भरकर पूरी की पूरी पीढ़ियां बर्बाद कर दीं।
धारा 370 हटने के बाद जिस तरह केंद्र सरकार ने राज्य को बांट कर लद्दाख और जम्मू कश्मीर को अलग अलग कर विकास की बयार बहाना शुरु किया उससे बहुत कुछ बदल रहा है।
अब जम्मू-कश्मीर की जुड़वां राजधानियों श्रीनगर और जम्मू के बीच हर छह महीने पर होने वाली 'दरबार मूव' की 149 साल पुरानी प्रथा को खत्म कर दिया गया है। इसके साथ ही जम्मू-कश्मीर सरकार ने कर्मचारियों को दिए जाने वाले आवास आवंटन को भी रद्द कर दिया है। अफसरों को भी अगले 3 हफ्ते के अंदर आवास खाली करने का आदेश दिया गया है।
दरअसल जम्मू कश्मीर को केंद्र के अधीन लेने के बाद से मोदी सरकार हर दिन राज्य में अपने कदम आगे बढ़ा रही है। मनोज सिन्हा को उपराज्यपाल बनाने के बाद ई-ऑफिस के काम में तेजी आई और अब इसे पूरा कर लिया गया है। इसके बाद अब सरकारी ऑफिसों के साल में दो बार होने वाले ‘दरबार मूव’ की प्रथा को जारी रखने की कोई जरूरत नहीं है।
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बेहद खर्चीला प्रथा थी “दरबार मूव’
कल्पना कीजिए भारत को जम्मू कश्मीर से एक रुपए की आमदनी नहीं थी। जनता और सरकार का खर्च शेष भारत के टैक्सपेयर के धन से हिंदुस्तान की सरकार चलाती थी। जिस पर जम्मू कश्मीर के सत्तारुढ़ दल हर छ महीने में करीब इस काम के लिए 200 करोड़ रुपए खर्च कर देता था।
‘दरबार मूव’ को खत्म करने के फैसले के बाद अब जम्मू और श्रीनगर दोनों जगहों पर सरकारी ऑफिस सामान्य रूप से काम करेंगे। राजभवन, सिविल सचिवालय, सभी प्रमुख विभागाध्यक्षों के कार्यालय पहले दरबार मूव के तहत जम्मू और श्रीनगर के बीच सर्दी और गर्मी के मौसम में ट्रांसफर होते रहते थे।
क्या है 'दरबार मूव', कब हुई इसकी शुरुआत?
मौसम बदलने के साथ हर छह महीने में जम्मू-कश्मीर की राजधानी भी बदल जाती है। राजधानी शिफ्ट होने की इस प्रक्रिया को 'दरबार मूव' के नाम से जाना जाता है। छह महीने राजधानी श्रीनगर में रहती है और छह महीने जम्मू में। राजधानी बदलने की यह परंपरा 1862 में डोगरा शासक गुलाब सिंह ने शुरू की थी। गुलाब सिंह महाराजा हरि सिंह के पूर्वज थे जिनके समय ही जम्मू-कश्मीर भारत का अंग बना था। सर्दी के मौसम में श्रीनगर में असहनीय ठंड पड़ती है तो गर्मी में जम्मू की गर्मी थोड़ी तकलीफदायक होती है। इसे देखते हुए गुलाब सिंह ने गर्मी के दिनों में श्रीनगर और ठंडी के दिनों में जम्मू को राजधानी बनाना शुरू कर दिया। राजधानी शिफ्ट करने की यह प्रक्रिया जटिल और खर्चीली है, इस वजह से इसका विरोध भी होता रहा है। एक बार राजधानी शिफ्ट होने में करीब 110 करोड़ रुपये खर्च होता था।
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क्या है इसके पीछे का इतिहास
‘दरबार मूव’ का इतिहास जानने के लिए हमें 19वीं सदी में जाना होगा। जम्मू और कश्मीर के महाराजा, रणबीर सिंह ने श्रीनगर को जम्मू और कश्मीर की दूसरी राजधानी करार किया था। पहली राजधानी जम्मू ही थी। हालांकि, इसके पीछे उस समय अपने अलग कई तर्क और विचार पेश किए गए थे।
पहली बात क्या है
पहले पहल, ट्रीटी ऑफ अमृतसर (1846) के दौरान जम्मू और कश्मीर क्षेत्र ‘डोगरा साम्राज्य’ के अंतर्गत आता था। कश्मीर के लोगों को खुशी देने के लिए श्रीनगर को छह महीने के लिए राजधानी करार किया गया था। जम्मू को बाकी के बचे छह महीनों के लिए राजधानी करने के लिए कहा गया था।
दूसरी बात
दूसरा, कश्मीर, गर्मियों के मौसम में काफी सुहाना, सुंदर और आनंदमय जगह मानी जाती थी। इसलिए, राजाओं के लिए गर्मियों का समय यहां छुट्टियां बिताने जैसा था। कुल मिलाकर कहें तो ये काफी रणनीति-संबंधी और मौसमी निर्णय था।
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क्यूं 21वीं सदी में भी ऐसा हो रहा था
जो लोग श्रीनगर को एकमात्र राजधानी मानते हैं उनका कहना है कि श्रीनगर, जम्मू और कश्मीर की जान है। कश्मीर एक तरफ उत्तर में है तो जम्मू, दक्षिण में बसा है। राजनीतिक और भौगोलिक दोनों ही रूप से ये सही है। वहीं, कई लोग इस विचार के खिलाफ भी हैं।
सर्दियों में श्रीनगर का तापमान इतना कम हो जाता है कि लोग ठंड से परेशान हो जाते हैं। इसके चलते वे अपना दफ्तर और घर दोनों ही चीजें जम्मू में शिफ्ट होना सही समझते हैं। हालांकि, जम्मू में भी ठंड पड़ती है लेकिन इतनी नहीं जितनी श्रीनगर में होती है। दूसरी ओर दुकानदार और बाकी के व्यापारी श्रीनगर को स्थायी राजधानी मानने से इंकार करते हैं। क्योंकि सर्दियों के समय में वे जम्मू को अपना घर समझकर वहां कमाई का जरिया ढूंढ सकते हैं।
गर्मी के दिनों में श्रीनगर बहुत खुशगवार हो जाता है। तब यहां कामकाज बेहतर तरीके से चलता है।
फारुक अब्दुल्ला ने कोशिश की थी स्थिति पलटने की
साल 1987 में, डॉ. फ़ारुक अब्दुल्ला जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री थे। उस समय उन्होंने श्रीनगर को एकमात्र राजधानी बनाने के लिए एक ऑर्डर पास किया था। इसका जम्मू स्थित दुकानदारों और राजनीतिक लोगों ने जमकर विरोध किया। उन्हें विरोध प्रदर्शन के बाद फैसला बदलना पड़ा।
श्रीनगर अकेली राजधानी नहीं जो इतनी ठंडी हो
‘दरबार मूव’ करने का मुख्य कारण सर्दियां हैं। श्रीनगर में इस दौरान काम करना काफी मुश्किल होता है। लेकिन, क्या श्रीनगर इकलौती राजधानी है जहां कड़ाके की ठंड पड़ती है? तापमान गिरता है?
मॉस्को के बारे में सोचिए! ये दुनिया की तीसरी सबसे ठंडी राजधानी है। ठंड में मॉस्को का तापमान माइनस 10 डिग्री सेल्सियस होता है। वहीं, अगर श्रीनगर को देखा जाए तो ठंड के मौसम में तीन डिग्री तक ही तापमान गिरता है।
क्या है बड़ा सवाल
सबसे बड़ा सवाल यही है कि जम्मू-कश्मीर में दो राजधानियां बनी रहेंगी या फिर एक ही राजधानी रहेगी। इसको अभी सरकार ने स्पष्ट नहीं किया है. सरकार ने केवल दरबार मूव को ही रोका है।
भारत के तीन राज्यों की हैं दो राजधानी
जम्मू और कश्मीर के बाद महाराष्ट्र की भी दो राजधानियां हैं। एक नागपुर और दूसरी मुंबई। हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री ने भी शिमला के बाद धर्मशाला को इस राज्य की दूसरी राजधानी के तौर पर एलान किया हुआ है। भारत में ये तीसरा ऐसा राज्य है जिसकी दो राजधानियां हैं।
1947 से पहले जब भारत राजे-रजवाड़ों में बंटा हुआ था तब अलग अलग रियासतों में ऐसे कई प्रयोग होते थे जो स्वतंत्रता के बाद बंद कर दिए गए। लेकिन जम्मू कश्मीर राज्य को आतंक का ऐसा कारखाना बना दिया गया जहां अलगवादवादियों, आतंकियों और अब्दुल्ला, मुफ्ती परिवार की तरह अन्य भी भारत सरकार से पैसे ऐंठ कर ऐश करते रहे। भारत से गद्दारी करने के लिए और जम्मू कश्मीर की जनता को लगातार भड़काने के लिए इन सबको पाकिस्तान समेत कई मुस्लिम देशों से भी मोटी फंडिंग होती रही।
अब बदलते दौर में मोदी सरकार लगातार ऐसे फैसले ले रही है जिससे जनता का धन जनता की बेहतरी और कल्याणकारी योजनाओं में लगाया जा सके।
टीम स्टेट टुडे
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