भारतीय जनता पार्टी 2024 में कई मोर्चों पर नए इतिहास रचने की तैयारी में है। इसके लिए उसे कुछ बदलाव लाने हैं तो कई जगहों पर निरंतरता का दामन थामने की रणनीति है।
तीन मुख्यमंत्रियों के चुनाव में छिपे संकेत समझें
हाल ही में मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान के मुख्यमंत्री चुने गए हैं और उनके नामों से ये संकेत मिल रहे हैं कि आने वाले लोकसभा चुनावों में पार्टी का एक 'नया अवतार' दिखेगा। पार्टी नेताओं का कहना है, 'देखना होगा कि किसे लोकसभा का टिकट नहीं मिलता है और क्या किसी मुख्यमंत्री को चुनाव लड़ने के लिए कहा जाता है। कई सांसद अपना टिकट खो सकते हैं, कुछ मंत्री भी हटाए जा सकते हैं और चुनाव लड़ने वाले मुख्यमंत्रियों पर नई भूमिका में खरे उतरने की तलवार लटकी रहेगी।' इनका मकसद केंद्र की सत्ता में लगातार तीसरा कार्यकाल सुनिश्चित करके नेहरू वाली कांग्रेस पार्टी के रिकॉर्ड की बराबरी करने के का है।
राष्ट्रीय अध्यक्ष के पद पर भी होगा बदलाव?
हाल की विधानसभा चुनावों में जीत के बाद भाजपा को केंद्र में लगातार तीसरी बार सरकार बनाने का भरोसा है। एक पार्टी सूत्र के मुताबिक, अगर बीजेपी जीतती है तो नए मंत्रिमंडल पर गौर करना होगा। कुछ पुराने चेहरों को हटाया जा सकता है और नए लोगों को मंत्रालय दिए जा सकते हैं। कुछ नेताओं का मानना है कि पार्टी संगठन में भी बदलाव हो सकते हैं। बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा का कार्यकाल जून 2024 तक बढ़ा दिया गया है। कुछ लोगों का कहना है कि संगठन के अनुभवी नेता धर्मेंद्र प्रधान या भूपेंद्र यादव, नड्डा की जगह ले सकते हैं। हालांकि, एक नेता ने कहा कि किसी को भी यकीन से कुछ नहीं कहा जा सकता। भाजपा सूत्र ने कहा, 'कुछ नहीं कहा जा सकता। एमपी और राजस्थान के मुख्यमंत्री चुनाव देखिए। जिन नामों की चर्चा हो रही थी, उनमें से कोई नहीं चुना गया। आज की बीजेपी में किसी अप्रत्याशित नाम को नकारा नहीं जा सकता।'
कोई इस बात को लेकर सटीक जानकारी नहीं दे सकता कि 2024 में भाजपा किस तरह के चेहरों में बदलाव देखेगी, लेकिन बड़े पैमाने पर नेतृत्व परिवर्तन होने की उम्मीद है। जिस तरह 2019 में कुछ चेहरे गुमनामी में चले गए और नए चेहरे सामने आए, 2024 में शायद इससे भी बड़ा बदलाव देखने को मिलेगा।
लोकसभा के बाद तीन विधानसभा चुनावों पर नजर
भाजपा को लोकसभा चुनाव के बाद तीन राज्यों में विधानसभा चुनावों की तैयारी करनी होगी। 2024 में महाराष्ट्र, हरियाणा और झारखंड में चुनाव होने हैं। इसके अलावा सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के मुताबिक जम्मू-कश्मीर में भी सितंबर तक चुनाव कराए जाने हैं। पार्टी के अंदरूनी सूत्रों का कहना है कि विधानसभा वाले राज्यों में भी कुछ चौंकाने वाले फैसले हो सकते हैं। हरियाणा में मनोहर लाल खट्टर का भविष्य इस बात पर निर्भर करेगा कि पार्टी सामूहिक नेतृत्व का रास्ता अपनाती है या नहीं। किसान आंदोलन के बाद हरियाणा को जीतना आसान नहीं हो सकता है। जाटों ने बड़े पैमाने पर आंदोलन किया था और कांग्रेस के पास जाट नेता भूपेंद्र सिंह हुड्डा हैं।
चुनावो में जाट समुदाय को साधने की कवायद
21 दिसंबर को भारतीय कुश्ती संघ (WFI) के अध्यक्ष पद के लिए बीजेपी सांसद बृज भूषण शरण सिंह के सहयोगी के चुने जाने के बाद सरकार विरोध को कम करने के लिए तेजी से हरकत में आई और तीन दिन बाद कुश्ती संघ को निलंबित कर दिया। ज्यादातर कुश्ती खिलाड़ी जो बृज भूषण पर यौन उत्पीड़न का आरोप लगा रहे हैं, हरियाणा से हैं और बीजेपी के इस कदम को राज्य और खासकर जाट समुदाय को दिए जा रहे संकेत के रूप में लिया गया है कि वह उनके साथ खड़ी है। पार्टी ने उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ के कथित अपमान को लेकर विपक्ष पर भी हमला किया है। धनखड़ भी जाट समुदाय से हैं।
फडणवीस की किस्मत पर लग गया ग्रहण?
महाराष्ट्र में यह देखना होगा कि क्या देवेंद्र फडणवीस को मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार बनाया जाएगा क्योंकि एनडीए का विस्तार हुआ है और सत्ता के और भी दावेदार हैं। एक भाजपा नेता ने कहा कि नेतृत्व की दावेदारियां बढ़ रही हैं और पार्टी संतुलन बनाने की कोशिश कर सकती है, जो फडणवीस के पक्ष में नहीं हो सकता है। एक ब्राह्मण होने के नाते फडणवीस अल्पसंख्यक जाति से आते हैं और राजस्थान में भजनलाल शर्मा के रूप में पहले ही एक ब्राह्मण को मुख्यमंत्री बनाया जा चुका है।
झारखंड में सरकार बनाने की उम्मीद
भाजपा झारखंड में मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के खिलाफ सत्ता विरोधी लहर का फायदा उठाने की उम्मीद कर रही है। भाजपा के झारखंड प्रदेश प्रमुख बाबूलाल मरांडी का ग्राफ हाल के महीनों में बढ़ता हुआ दिख रहा था, लेकिन एक आदिवासी विष्णु देव साई को छत्तीसगढ़ का मुख्यमंत्री बना देने के बाद आदिवासी सीएम कोटा पर गहन विचार हो सकता है। भाजपा के अंदरूनी सूत्रों को संदेह है कि अगर पार्टी झारखंड मुक्ति मोर्चा (जेएमएम) को हरा देती है तो बाबूलाल मरांडी ही झारखंड के मुख्यमंत्री होंगे, इसकी गारंटी अब नहीं दी जा सकती है।
दिल्ली में केजरीवाल के खिलाफ रणनीति
दिल्ली में 2025 के शुरू में चुनाव होंगे। यहां पार्टी अगले सालभर अरविंद केजरीवाल और आम आदमी पार्टी (आप) पर कथित भ्रष्टाचार पर दबाव बनाए रखने की रणनीति पर कायम रह सकती है, ताकि वह राष्ट्रीय राजधानी में मतदाताओं के बीच आप की छवि बिगाड़ सके। आप गरीबों को सब्सिडी के आधार पर विधानसभा चुनावों में भाजपा को हराने में सफल रही है, हालांकि संसदीय चुनावों में पूरा माहौल बदल जाता है। भाजपा चाहेगी कि मतदाताओं का ध्यान सस्ते बिजली-पानी के मुद्दे से हटाकर केजरीवाल सरकार के भ्रष्टाचार की तरफ आकर्षित किया जाए।
2024 में भाजपा किस तरह के चेहरों में बदलाव देखेगी, लेकिन बड़े पैमाने पर नेतृत्व परिवर्तन होने की उम्मीद है। जिस तरह 2019 में कुछ चेहरे गुमनामी में चले गए और नए चेहरे सामने आए, 2024 में शायद इससे भी बड़ा बदलाव देखने को मिलेगा।
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