जिस तरह जेम्स बॉण्ड सीरीज़ की फिल्मों में बॉण्ड के पास हर परिस्थिति से निपटने का फार्मूला तैयार रहता है ठीक उसी प्रकार भारत में हाल फिलहाल चल रहे “बॉण्ड” के खेल का सच ये है कि जो नहीं खेल पाए वो चाहते हैं कि “हमें भी खिलाओ” वर्ना खेल खराब करेंगें।
मुगालते में मत रहियेगा। कोई कम नहीं है। ना ही कोई सच है जिसे उजागर होना है। ये कारोबार है। जिसमें हर कारोबारी सिर्फ मार्केट अपने फेवर में आने का इंतजार कर रहा था। जिसके फेवर में जब-जब जैसे जैसे पहिया घूम रहा है पूरे खेल में उसकी “Bonding” पक्की हो रही है।
इसलिए भारत के “The ग्रेट electoral bond शो” में राजनीतिक दलों की दलीलों को जानिए और अपनी दुनिया में मस्त रहिए।
Electoral bond को लेकर सियासत तेज है। सुप्रीम कोर्ट की फटकार के बाद चुनाव आयोग ने रविवार को विभिन्न राजनीतिक दलों द्वारा सौंपे गए सैकड़ों सीलबंद लिफाफों का खुलासा किया। इस खुलासे में चुना आयोग ने बताया कि किस पार्टी ने कितने चुनावी बॉन्ड भुनाए हैं और ये उन्हें किस-कंपनी या व्यक्ति ने दिए थे। हालांकि रविवार को जो जानकारी सामने आई वो भी बड़ी रोचक है। कई दलों ने बताया कि कोई उनके कार्यालय में बॉन्ड रख गया तो कई दलों ने बताया कि उन्हें डाक द्वारा बिना किसी नाम के चुनावी बॉन्ड मिले। वहीं कई दलों ने तो तमाम कानूनी प्रावधानों का हवाला देते हुए चुनावी बॉन्ड देने वालों की जानकारी देने से ही इनकार कर दिया।
जदयू की जबरई
इलेक्टोरल बॉन्ड से मिलने वाले चुनावी चंदे के बारे में बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की पार्टी का दावा है कि उनके कार्यालय में लिफाफे में बंद 10 करोड़ रुपये मूल्य के बॉन्ड अज्ञात स्रोत से आए। पार्टी ने कहा कि इस बॉन्ड को भुनाने के बाद पूरे पैसे चंदे के तौर पर जदयू के खजाने में जमा हुए। इस दिलचस्प फाइलिंग में पार्टी के बिहार कार्यालय ने बताया कि उसे 3 अप्रैल, 2019 को अपने पटना कार्यालय में प्राप्त बॉन्ड के दाताओं के विवरण के बारे में जानकारी नहीं थी, और न ही उसने जानने की कोशिश की क्योंकि उस समय सुप्रीम कोर्ट से कोई आदेश नहीं था।
डीएमके की लाटरी
तमिलनाडु की पार्टी डीएमके ने बताया कि उसे सर्वाधिक चंदा एक लॉटरी फार्म के जरिए मिला। तमिलनाडु की पार्टी को फंड का लगभग 77 प्रतिशत लॉटरी किंग सैंटियागो मार्टिन के फ्यूचर गेमिंग से प्राप्त हुआ। डीएमके के अपनी फाइलिंग में बताया कि चुनावी बॉन्ड के लिए दान प्राप्तकर्ता को दानकर्ता का विवरण देने की भी आवश्यकता नहीं है। अब सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों का पालन करते हुए हमने अपने दानदाताओं से संपर्क किया है।
कानून वाली बीजेपी
बीजेपी ने विभिन्न कानूनी प्रावधानों का हवाला देते हुए इस बात की जानकारी नहीं दी कि उसे किससे चुनावी बॉन्ड मिले। देश की सत्तारूढ़ पार्टी ने इसके लिए जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 में संशोधन और भारतीय रिजर्व बैंक अधिनियम और आयकर अधिनियम के संबंधित हिस्सों का हवाला दिया। भाजपा ने चुनावी बॉन्ड को लिखे अपने पत्र में कहा कि यह विधिवत बताया गया है कि चुनावी बांड को केवल राजनीतिक फंडिंग में धन का हिसाब-किताब लाने और दानदाताओं को किसी भी परिणाम से बचाने के उद्देश्य से पेश किया गया था।
गजब समाजवाद
समाजवादी पार्टी ने भी अपनी फाइलिंग में दिलचस्प बात बताई है। सपा ने एक लाख रुपये और 10 लाख रुपये की राशि वाले बॉन्ड की जानकारी तो दी है, लेकिन बड़ी रकम वाले बॉन्ड को लेकर कहा कि उसे एक करोड़ रुपये के 10 बॉन्ड डाक के जरिए मिले हैं। ये बांड किसने भेजे हैं इसकी जानकारी उसके पास नहीं है क्योंकि ये बिना नाम के भेजे गए थे।
टीएमसी को ड्रॉप बॉक्स में मिले चुनावी बांड
तृणमूल कांग्रेस ने बताया है कि चुनावी बॉन्ड उसके कार्यालय में भेजे गए थे। पार्टी कार्यालय के ड्रॉप बॉक्स में कोई चुनावी बॉन्ड डाल गया था। इसके अलावा टीएमसी ने यह भी बताया कि कुछ लोगों ने भी उन्हें कुछ बॉन्ड भेजे थे, इनमें से कई गुमनाम रहना पसंद करते हैं।
और सुनो ...
तेलुगु देशम पार्टी और बिहार की राजद ने दानदाताओं के नाम नहीं बताए हैं। दोनों ने कहा है कि उसके पास इसकी तत्काल कोई जानकारी नहीं है। शरद पवार के नेतृत्व वाली एनसीपी ने भी दानदाताओं का विवरण देने में असमर्थता जताई। पार्टी ने कहा, पार्टी ने दान का विवरण नहीं रखा है। एनसीपी ने चुनाव आयोग को लिखे पत्र में कहा कि फिलहाव वो चुनाव प्रचार में व्यस्त हैं। ऐसे में जहां भी संभव हुआ हमने उस व्यक्ति का नाम बताया है जिसके माध्यम से पार्टी को बॉन्ड प्राप्त हुए थे।
वैसे आपकी की भी उम्र होगी...कभी हुआ ऐसा कि कोई खजाना आपके घर के सामने, बॉक्स में या किसी और तरीके से दे गया हो ....रख गया हो....मिल गया हो..... It happens only if you have a "Bond", Bond with Politics, Bond with Justice , Bond with System.
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