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उस दिन 1969 में पहला पीएम गैर-कोंग्रेसी हुआ था !!

Updated: Nov 23, 2022



के. विक्रमराव (वरिष्ठ पत्रकार) : भारतके संसदीय इतिहासमें आज (12 नवंबर 1969), आधी सदी पूर्व, एक जबरदस्त जलजलाआया था। दिल्लीके साथ देशभी थरथराया था।सत्तासीन कांग्रेस पार्टी नेअपनी ही प्रधानमंत्रीइंदिरा गांधी की प्राथमिकसदस्यता समाप्त कर डालीथी। उसके पाँचदिन बाद इन्दिरागांधी की 52वींजयंती थी। उसकेदो दिन बादपिता जवाहरलाल नेहरूकी अस्सीवीं। पार्टीआलाकमान नई दिल्लीके 7 जंतर मंतररोड (अब जनतादल, यूनाइटेड कार्यालय) की पहली मंजिलके सभागार सेबाहर आकर प्रतीक्षारतपत्रकारों को वरिष्ठसांसद एसके (सदाशिवकान्होजी) पाटिल ने तबघोषणा की थी: “अनुशासनहीनता के अपराधमें इंदिरा गांधीको कांग्रेस कीप्राथमिक सदस्यता से निलंबितनहीं, निष्कासित करदिया गया है।”

उसक्षण से काँग्रेसका जुगराफिया हीबदरंग हो गयाथा। हजार किलोमीटरदूर (यमुना तटसे साबरमती तट) अहमदाबाद भी इसभूचाल का अधिकेंद्ररहा था। मुख्यमंत्री (कांग्रेस कार्य समिति केसदस्य) चौवन-वर्षीयहितेंद्र कन्हैया लाल (हितूभाई) देसाई उसी शामको अहमदाबाद लौटेथे। शाहीबाग हवाईअड्डे पर उनकीप्रेसवार्ता में सवालमैंने पूछा था : “देश को पहलागैर-कांग्रेसी प्रधानमंत्रीमिला है। क्याख्याल है आपका?” आदतन भी उनकेहोंठ खुले हीनहीं। जवाब टालगए। उनके प्रणेतामोराजी देसाई इन्दिरा गांधीके घोरतम प्रतिद्वंदीरहें।

इंदिरा गांधी कोअपदस्थ करने मेंहितेंद्र देसाई के वोटका अत्यधिक वजनथा। इंदिरा गांधीके समर्थन औरविरोधी सांसदों का वोट 10 बनाम नौ था।हितेंद्र देसाई का वोटमिलाकर दोनों गुट बराबरहो गए थे।अतः पार्टी अध्यक्षएस. निजलिंगप्पा कानिर्णायक वोट पड़ाथा। उसी सेइंदिरा गांधी निकाली गईथीं। इस घटनाके ठीक छसप्ताह पूर्व (सितंबर 1969) प्रधानमंत्रीअहमदाबाद आई थीं।तब स्वाधीन भारतके गुजरात मेंभयंकरतम हिंदू-मुस्लिम दंगाहुआ था। इसकीजांच न्यायमूर्ति जगमोहन रेड्डी नेकी थी। रपटके अनुरसार 660 लोगमरे थे, 1074 घायलहुए थे, 4,800 परिवारकी संपत्ति कोहानि हुई। करीबपाँच करोड़ रुपएकी संपत्ति खत्महुई थी। मृतकअधिकतर मुसलमान थे।



प्रेसवार्तामें मेरा प्रश्न था : “प्रधानमंत्री जी, गुजरात जल रहाथा तो कांग्रेसीमुख्यमंत्री अपने काबीनाबैठक में चर्चाकरते घंटों तकमशगूल था। क्याआप ऐसे नाकारामुख्यमंत्री को बर्खास्तकरेंगी?” इन्दिरा गांधी उत्तरटाल गई। कारण? उसी दौर मेंराष्ट्रपति जाकिर हुसैन केइंतकाल पर एन. संजीव रेड्डी कांग्रेसके अधिकृत प्रत्याशीथे। वीवी गिरीबागी। इंदिरा गांधीने संजीव रेड्डीको हरवा दियाथा। इसी पार्टी-विरोधी हरकत कीवजह से उनकानिष्कासन हुआ था।कहने का तात्पर्ययही है किमुस्लिम नरसंहार के अपराधीहितेंद्र देसाई के एकवोट का कोपाने हेतु प्रधानमंत्रीने गुजरात केअल्पसंख्यकों की कतईमदद नहीं की।मरने दिया। अबभले ही सोनियाने कांग्रेस मेंगुजरात के मुख्यमंत्रीरहें नरेंद्र मोदीको 2002 के गोधरादंगे का दोषीमानकर “मौतों का सौदागर”कहा हो !


सासऔर बहू नेअपनी दलीय लाभके लिए मुसलमानोंपर दृष्टिकोण बनायाऔर बदला था।पार्टी विभाजन के बादअपनी अल्पमत वालीसरकार को इंदिरागांधी कम्युनिस्ट सांसदोंकी बैसाखी परचलाती रही। तभीअपनों को सोशलिस्ट, क्रांतिकारी और वामपंथीदर्शाने के ढोंगमें उन्होंने बैंकोंका राष्ट्रीयकरण करदिया था। राजाओंका प्रिवी पर्सनिरस्त कर दियाथा। “गरीबी हटाओ”का नारा दियाथा। मगर फिरजेपी आंदोलन केबवंडर मे वेउड़ गई।
तो आजका इतिहास यहीदर्शाता है।

अबकुछ अंतरंग निजीप्रसंग पेश हैं।इन्दिरा गांधी की रिपोर्टिंग (''टाइम्स आफ इंडिया'' के लिए) मैंने इक्कीस वर्षों (1963 से 1984) तक कियाहै। प्रेस कान्फ्रेंसऔर जनसभायें मिलाकर।स्थल भी दूर—दूर तकरहे। पहली कोलकाता (अप्रैल 1963) से औरआखिरी हैदराबाद (15 अक्टूबर 1984)। उनकी हत्याके ठीक दोसप्ताह पूर्व तक। बीचमें आये मुम्बई, अहमदाबाद, वडोदरा, लखनऊ, रायबरेलीआदि। वे तबसरकार में थीं। मैकवर करता रहाउनकी पराजय केबाद भी। फिरजब दोबारा सत्तासीनहुईं। तीन दशककी अवधि थी।यादें धुंधली नहींहुईं, स्मृति ताजीही है। आखिरीभेंट का पहलेउल्लेख ही करें।सोमवार का अपराह्नथा (15 अक्टूबर 1984)। उसदिन हैदराबाद केहुसैन सागर सेसटे राज भवनके निजामी सभागृहमें इन्दिरा गांधीपधारीं थीं। पत्रकारवार्ता थी। प्रश्नोत्तरके बाद मैंमिलने मंच परगया। आईएफडब्ल्यूजे काज्ञापन मुझे देनाथा। श्रमजीवी पत्रकारवेतन बोर्ड गठितकरने हेतु।

न्यायमूर्तिडीजी पालेकर बोर्डकी संस्तुति केबाद दस वर्षबीत रहे थे।ज्ञापन पढ़कर इन्दिरा गांधीका वाक्य था : '' यसयू जर्नलिस्ट्स हेवए केस''।फिर राजीव गांधीने न्यायमूर्ति भाचावतवेतन बोर्ड बनाया।

के. विक्रम राव (वरिष्ठ पत्रकार)

उसी वक्त हैदराबाद मेंही मैंने प्रधानमंत्रीको सूचित कियाथा कि ''लखनऊमें दैनिकों (नेशनलहेरल्ड, नवजीवन तथा कौंमीआवाज) के कार्मिकोंको कई माहसे वेतन नहींमिला है। अत: आईएफडब्ल्यूजे की अपील पर लखनऊ के अखबार हड़ताल पर होंगे। आप जब लखनऊ में रहेगी तभी सभी दैनिक बंद रहेंगे। क्याआप चाहती हैकि हेरल्ड कर्मचारियोंकी दीपावली अंधकारमयरहे?'' नवजीवन के चीफरिपोर्टर हसीब सिद्दीकी ( मो. 9369774311) ने मुझे बताया था कि तब प्रधानमंत्री नेमुख्यमंत्री नारायणद त्त तिवारी सेवार्ता की। वेतन का बकाया राज्य सूचना विभाग के विज्ञापन—बिलों का तुरंत भुगतान द्वारा मिली राशि से तनख्वाह दे दी गयी।


लेखक - श्री के. विक्रम राव वरिष्ठ पत्रकार हैं।


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