राज्य सरकारों की आधी अधूरी तैयारी के चलते आपके हाथ में तनख्वाह पूरी आएगी। एक अप्रैल से सैलरी स्ट्रक्चर में होने वाले बदलाव को केंद्र सरकार ने फिलहाल टाल दिया है। बताया जा रहा है कि नए श्रम कानून को लेकर कुछ राज्यों की तैयारी अभी अधूरी है। केंद्र सरकार ने बीते दिनों में 29 श्रम कानूनों को बदल कर चार श्रम कानून बनाए हैं। इसी के तहत कंपनियों को अपने कर्मचारियों के वेतन ढांचे में कई अहम बदलाव करने हैं।
इस बदलाव को टालने के पीछे की वजह राज्यों की आधी अधूरी तैयारी के साथ साथ कोरोना वायरस का बढ़ता प्रकोप भी है। सरकार मानती है कि कोरोना वायरस महामारी के बीच लोगों को नकदी की जरूरत है। इसलिए इस संबंध में अभी तक कोई सरकारी अधिसूचना भी जारी नहीं की गई है। जानकारी मिली है कि कई राज्यों में कोरोना का दोबारा प्रकोप बढ़ने से फ्रेमवर्क भी तैयार नहीं हो पाया है। इन्हीं सब कारणों के चलते इसे फिलहाल स्थगित कर दिया गया है।
नए कानून से क्या बदलेगा
श्रम कानूनों में बदलावों से कर्मचारी की इन हैंड सैलरी यानी हाथ में आने वाली तनख्वाह कम हो जाती लेकिन प्रॉविडेंट फंड बढ़ जाता। अभी कर्मचारियों को पीएफ पर हर साल आठ से साढ़े आठ फीसदी की दर से ब्याज मिलता है जिसमें रकम की ज्यादा कटौती होने पर भविष्य की चिंता कम होती।
क्या है वेतन का फार्मूला
वेतन को दो तरह से बांटा जाता है। इसमें एक होती है सीटीसी यानी कॉस्ट टू कंपनी। दूसरा इन हैंड सैलरी या टेक होम सैलरी।
क्या होता है अंतर
आपके काम के लिए कंपनी जितनी कुल राशि खर्च करती है, उसे सीटीसी कहते हैं। इसमें आपके बेसिक वेतन के साथ कंपनी की ओर से मिलने वाले विभिन्न भत्ते भी शामिल होते हैं। आपकी सीटीसी से कुछ पैसा स्वास्थ्य बीमा के लिए कटता है तो कुछ प्रॉविडेंट फंड के लिए। इन्हीं कटौतियों के बाद जितना वेतन आपको मिलता है उसे इन हैंड या टेक होम सैलरी कहते हैं।
नए नियम से क्या बदलेगा
नए नियमों के तहत किसी भी कर्मचारी का बेसिक वेतन सीटीसी से 50 फीसदी से कम नहीं होगा। ऐसे में जिसका बेसिक वेतन सीटीसी का 50 फीसदी है, उसे कुछ खास फर्क नहीं पड़ेगा। लेकिन, जिनकी बेसिक सैलरी सीटीसी का 50 फीसदी नहीं है उन पर इसका असर पड़ेगा। ऐसा इसलिए क्योंकि पीएफ की राशि आपके बेसिक वेतन से कटता है, जो उसका 12 फीसदी होता है।
इससे कर्मचारी की बेसिक सैलरी कुल वेतन का 50 फीसद हो जाएगी वहीं, कर्मचारी और कंपनी दोनों का ही पीएफ योगदान बढ़ जाएगा। साथ ही ग्रेच्युटी की रकम भी बढ़ जाएगी। इसका सीधा मतलब है कि कर्मचारी की बचत बढ़ जाएगी। हालांकि, कर्मचारी की इन-हैंड सैलरी घट जाएगी। श्रम सुधारों के अंतर्गत प्रावधान है कि एक हफ्ते में 48 घंटे से ज्यादा काम नहीं करना चाहिए, इससे ज्यादा काम करने पर ओवर टाइम दिया जाए।
सरकार ने जिन 4 लेबर कोड्स में बदलाव किया है उसमें वेतन/मजदूरी संहिता, औद्योगिक संबंधों पर संहिता, काम विशेष से जुड़ी सुरक्षा, स्वास्थ्य एवं कार्यस्थल की दशाओं पर संहिता और सामाजिक व व्यावसायिक सुरक्षा संहिता शामिल हैं।
टीम स्टेट टुडे
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