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केंद्रीय बजट आने वाला है। कुछ सस्ता होगा। कुछ मंहगा होगा। कोरोनाकाल के बाद का ये बजट काफी महत्वपूर्ण है। बाजार सरकार की तरफ निहार रहा है। आम लोग राहत की उम्मीद में हैं। रुपया बाजार में रफ्तार पकड़ने को बेताब है।
इस बजट मौसम में स्टेट टुडे टीवी आपके लिए बहुत ही दिलचस्प जानकारी लाया है।
अक्सर हम लोग लेन-देन या कहा-सुनी के दौरान कुछ कहावतों का जिक्र करते हैं। जिसमें कौड़ी, धेला, आना, दमड़ी आदि शब्द आते हैं। अगर आप सोचते हैं कि ये शब्द महज पुरानी कहावतें भर हैं तो आप बिल्कुल गलत सोचते हैं।
आज का जो रुपया भारत में चलन में हैं उसने रुपया बनने तक लंबा सफर तय किया है। ये तो हम सब जानते हैं कि एक रुपए में सौ पैसे होते हैं।
अब सवाल ये है कि पैसे से पहले क्या होता है। एक पैसा कैसे बना।
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रुपए के इतिहास को जानने से पहले जरा इन कहावतों पर गौर कर लीजिए ताकि याद थोड़ी ताज़ा हो जाए -
- मैं तुम्हें एक फूटी कौड़ी नहीं दूंगा।
- कंजूस की चमड़ी जाए पर दमड़ी ना जाए।
- एक धेले की औकात नहीं है।
- पाई-पाई का हिसाब देना पड़ेगा।
- सोलह आना खरा सौदा है साहब।
आइये अब आपको बताते हैं रुपए का इतिहास
कागज का नोट हो या धातु का बना सिक्का। लेन-देन का सिस्टम जब शुरु हुआ तो इंसान ने शुरुआत में ही कागज का नोट या धातु का सिक्का नहीं बनाया। बल्कि कुदरत की देन कौड़ी से शुरुआत की। अगर साबुत कौड़ी कीमती थी तो फूटी कौड़ी की भी कीमत थी।
अगर किसी के पास तीन फूटी कौड़ी होती थीं तो उसे एक कौड़ी माना जाता था।
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अगर किसी के पास 10 कौड़ी होती थीं तो उसे एक दमड़ी माना जाता था।
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2 दमड़ी या 20 कौड़ी से बनता था 1 धेला।
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1 धेला 1.5 पाई के बराबर माना जाता था।
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3 पाई की कीमत होती है एक पैसा और सौ पैसे मिलाकर बनता है एक रुपया।
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चार पैसा एक आना के बराबर होता है।
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16 आना मिलकर तैयार करते हैं 1 रुपया
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256 दमड़ी = 192 पाई = 128 धेला = 64 पैसा = 16 आना = 1 रुपया
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और चलते चलते एक बार और - आजाद हिंद फौज ने सिर्फ अंग्रेजों को भारत से खदेड़ने का ही काम नहीं किया था फौज ने अपने सिक्कों को भी चलन में लाया था। नेताजी सुभाष चंद्र बोस की बनाई आजाद हिंद फौज का एक सिक्का भी देखते चलिए
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टीम स्टेट टुडे
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