google.com, pub-3470501544538190, DIRECT, f08c47fec0942fa0
top of page
chandrapratapsingh

Holi 2022: 17 या 18 कब है होली? होलिका दहन की पूजा के लिए मिलेगा बस इतना सा समय


मंजू जोशी (ज्योतिषाचार्य)

आप सभी सनातन धर्म प्रेमियों को सादर प्रणाम आपको अवगत कराना चाहूंगी बुराई पर अच्छाई की जीत का पर्व होली 13 मार्च रविवार को चीर बंधन व रंग धारण के साथ शुभारंभ होगा। आपको अवगत करा दें कि आंवला एकादशी का उपवास 14 मार्च सोमवार को रखा जाएगा परंतु एकादशी तिथि को संपूर्ण दिवस भद्रा व्याप्त (13 मार्च रात्रि 11:20 से 14 मार्च को दिन में 12:08 तक भद्रा) होने के कारण रंग धारण व चीर बंधन 13 मार्च को 10:22 के उपरांत किया जाएगा।

17 मार्च को होलिका दहन रात्रि 9:04 से 10:22 के बीच किया जाएगा क्योंकि पूर्णिमा तिथि व प्रदोष काल भद्रा से व्याप्त होने के कारण होलिका दहन रात्रि 9:04 के बाद ही किया जाएगा। रंग भरी होली 18 मार्च को एवं उत्तराखंड में 19 मार्च को होली उत्सव मनाया जाएगा क्योंकि पूर्णिमा तिथि संपूर्ण पूर्वाहन में अपराहन 12:49 है तक रहेगी अतः (छलड़ी) रंग भरी होली 19 मार्च को उदययापिनी चैत्र कृष्ण पक्ष प्रतिपदा तिथि में मनाई जाएगी। होलीकाष्टमी से रंग भरी होली तक मांगलिक कार्य वर्जित रहेंगे (10 मार्च से 19 मार्च तक)। आप सभी के मन में यह विचार अवश्य आता होगा कि चीर बंधन क्यों किया जाता है

मंदिरों में होली से पूर्व एकादशी पर खड़ी होली के पहने दिन चीर बांधने का अपना ही महत्व है। इस दिन लोग एक लंबे डंडे में नए कपड़ों की कतरन को बांधकर मंदिर में स्थापित करते हैं। फिर चीर के चारो ओर लोग होली गायन करते हैं और घर-घर जाकर होली गाते हैं। होलिका दहन के दिन इस चीर को होलिका दहन वाले स्थान पर लाते हैं और डंडे में बंधे कपड़ों की कतरन को प्रसाद के रूप में वितरित करते हैं। जिसे लोग अपने घरों के मुख्य द्वार पर बांधते हैं। ऐसी मान्यता है कि इससे घर में बुरी शक्तियों का प्रवेश नहीं होता और घर में सुख शांति बनी रहती है।

होली पर्व मनाने का वैज्ञानिक कारण

हिंदू धर्म एकमात्र ऐसा धर्म है जिसमें एक पर्व त्योहार मनाने के पीछे वैज्ञानिक रहस्य भी होते हैं हम आपको बताने का प्रयास करते हैं कि होली पर्व मनाने का वैज्ञानिक कारण क्या है। होली पर्व बसंत ऋतु के आगमन पर मनाया जाता है शरद ऋतु का समापन और बसंत ऋतु के आगमन का समय पर्यावरण और शरीर में बैक्टीरिया की वृद्धि को बढ़ा देता है लेकिन जब होलिका जलाई जाती है तो उससे करीब 145 डिग्री फारेनहाइट तक तापमान बढ़ता है। होलिका दहन पर आग आग की परिक्रमा करने से सभी बैक्टीरिया समाप्त हो जाते हैं और आसपास का वातावरण शुद्ध होता है। इसके अतिरिक्त वसंत ऋतु के आसपास मौसम परिवर्तन होने के कारण मनुष्य आलस/सुस्ती से ग्रसित हो जाता है जिसे दूर करने हेतु जोर-जोर से संगीत सुनता एवं गाता है प्राकृतिक रंगों का प्रयोग करने से शरीर नई ऊर्जा का संचार होता है।



75 views0 comments

Comments


bottom of page
google.com, pub-3470501544538190, DIRECT, f08c47fec0942fa0