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सियासी एकजुटता के साथ ही तबाही की तरह बढ़ा इज़राइल,मुस्लिम राष्ट्रों और अमेरिकी षडयंत्र का हुआ शिकार





- किसी देश का वजूद तब तक रहता है जब तक एकजुट रहे। 

- सिर्फ तख्तापलट के लिए विपरीत विचारधाराओं की सियासी एकजुटता का प्रदर्शन राष्ट्रध्वंस 
  का पहला और आखिरी संकेत है। 

बेंजामिन नेतन्याहू के खिलाफ संपूर्ण एकजुटता के साथ ही इजराइल दुनिया के नक्शे से अपने खात्मे की तरफ चल पड़ा है। ऐसा इसलिए नहीं कि नेतन्याहू के अलावा कोई दूसरा प्रधानमंत्री इजराइल के लोगों की देशभक्ति या देश की सुरक्षा को लेकर सतर्क नहीं है या नहीं रहेगा। बल्कि इसलिए क्योंकि इजराइल का निर्माण जिस सोच और मकसद के साथ हुआ था उस जड़ में अमेरिका और अरब ने मिलकर मट्ठा डाल दिया।


हमास के खिलाफ इजराइल के हालिया युद्ध में देश के भीतर अरब के मुसलमानों ने गृहयुद्ध की स्थिति पैदा कर दी। वो तस्वीरें अभी भी ताजा हैं जिसमें एक तरफ हमास को इजराइल मुंहतोड़ जवाब दे रहा था तो दूसरी तरफ इजराइल में रहने वाले अरबी मुसलमान यहूदियों को सड़कों पर मार रहे थे, उन पर पत्थर बरसा रहे थे। कमजोर पड़ी यहूदी जनता को वहां की स्थानीय पुलिस और सेना प्रोटेक्शन दे रही थी।


अब स्थिति ये है कि वामपंथी, दक्षिणपंथी और मध्यमार्गी जैसी विरोधी विचारधाराओं वाले दल अरब पार्टी के साथ ही एकजुट होंगे। जिसके इजराइल में महज पांच प्रत्याशी जीते हैं लेकिन उसने इजराइल को उसी के लोकतंत्र में फंसा दिया। इसमें दोराय नहीं कि अरब पार्टी पूरी तरह से मुसलमानों का ऐसा जत्था है जिसका यहूदियों के देश इजराइल में कोई काम नहीं था। इस्लामी कट्टरपंथी अरब पार्टी ने जिस तरह इजराइल की मूल उत्पत्ति या उद्देश्य की जड़ों में मठ्ठा डालते हुए सरकार का नियंत्रण अपने हाथ में लिया है वो अगले कुछ दशकों में इजराइल को तहस-नहस कर देगा।



इजराइल के वामपंथी, दक्षिणपंथी और मध्यमार्गी जैसे तमाम दल एक राष्ट्रीय एकता की सरकार बनाने के लिए सहमत होने जा रहे हैं, जो प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू को सत्ता से बेदखल करेगी।


विपक्षी गठबंधन की सरकार बनाने की जिम्मेदारी उठा रहे येश अतीद पार्टी के नेता याइर लापिद और राष्ट्रपति रुवेन रिवलिन की सरकार बनाने की उम्मीद धूमिल होने लगी। हालांकि, एक बिल्कुल ही अलग अंदाज में जिस व्यक्ति को सरकार बनाने की विपक्षी कवायद के पटरी से उतरने से सबसे ज्यादा फायदा होता दिख रहा था वही इन ताकतों को एकजुट करने में सबसे अहम कड़ी भी बनकर उभरा।


इस्राइल के 'डिवाइडर इन चीफ' के तौर पर देखे जाने वाले 71 वर्षीय नेतन्याहू ही एक अलग अंदाज में अपने विरोधियों को एकजुट करने वाले भी साबित हुए, जिनके कारण इस्राइल के इतिहास में जिन लोगों के एक साथ आने की कल्पना भी नहीं की गई थी वे राष्ट्रीय एकता की सरकार बनाने के लिए मिल गए। उससे भी बड़ी बात सूत्रों के हवाले से ये आ रही है कि अरब पार्टी के झंडे के नीचे लाने के लिए इजराइल में सउदी अरब, टर्की, ईरान, चीन और यहां तक कि अमेरिका की तरफ से मोटी फंडिंग की गई है। अलग अलग तरह के प्रलोभन दिए गए हैं। सिर्फ इतना ही नहीं जिस तरह से हमास के साथ युद्धविराम की घोषणा में अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन की भूमिका रही वो भी बेहद संदेहास्पद है। चीन तो शुरु से ही नेतन्याहू और इजराइल की जड़े खोदने में जुटा था। तमाम मुस्लिम राष्ट्रों ने नेतन्याहू को हटाने के लिए बहुत ही महीन तरीके से इजराइल के लोकतंत्र और मूल भावना को ऐसा कुतर दिया है कि इजराइल के लोग लंबे समय तक इस चाल को समझ ही नहीं पाएंगे।


मीडिया की भूमिका भी संदिग्ध


लापिद द्वारा राष्ट्रपति रिवलिन को गठबंधन को एकजुट रखने में कामयाबी मिलने की खबर देने से घंटों पहले दैनिक ‘हारेट्ज’ के पत्रकार अंशेल प्फेफ्फर ने कहा, 'आज रात जो हुआ और विश्वास मत अगर होता है तो उसमें जितने भी दिन बचे हैं उससे पहले, यह एक ऐतिहासिक तस्वीर है। अरब-इजराइली पार्टी के नेता और जूइश-नेशनलिस्ट पार्टी के नेता एक साथ सरकार में शामिल होने के लिये समझौते पर हस्ताक्षर कर रहे हैं।'

राम पार्टी के प्रमुख मंसूर अब्बास की दक्षिणपंथी यामिना पार्टी के नेता नफ़्ताली बेनेट और मध्यमार्गी येश अतीद पार्टी के याइर लापिद की समझौते पर हस्ताक्षर करते हुए एक तस्वीर भी अपने ट्वीट के साथ पोस्ट की। यह तस्वीर बृहस्पतिवार को हर किसी के बीच चर्चा का विषय थी और आने वाले दिनों में क्या होगा इस पर ज्यादा तवज्जो दिए बगैर सभी मीडिया संस्थान इस 'ऐतिहासिक पल' के बारे में बात कर रहे थे।


इजराइल की सरकार का गणित


इजराइल की 120 सदस्यीय संसद नेसेट में लापिद के पास 61 सांसदों के समर्थन के साथ बेहद मामूली बहुमत है, जबकि सामने चुनौतियां कई हैं लेकिन उसे उम्मीद है कि यह बहुमत मजबूती के साथ कायम रहेगा क्योंकि इसके पीछे 2009 से लगातार 12 सालों से देश की निर्बाध रूप से कमान संभाल रहे नेतन्याहू को हटाने का 'एकजुटता का उद्देश्य' है।


दोनों दलों के नेता बारी- बारी से प्रधानमंत्री बनेंगे


विपक्षी दलों के बीच गठबंधन को लेकर हुए समझौते के मुताबिक, अब दोनों पार्टी के नेता बारी-बारी से प्रधानमंत्री बनेंगे। सबसे पहले दक्षिणपंथी यामिना पार्टी के नेता नेफ्टाली बेनेट प्रधानमंत्री पद की शपथ लेंगे। वे 2023 तक इस पद पर रहेंगे। उसके बाद येश एटिड पार्टी के येर लेपिड प्रधानमंत्री बनेंगे।


दो साल में अब तक 4 बार चुनाव हो चुके


अगर विपक्ष भी सरकार बनाने में नाकाम होता तो तय था कि इजराइल में 5वीं बार चुनाव कराए जाते। यहां पिछले दो साल से राजनीतिक अस्थिरता बनी हुई थी। मार्च में हुए आम चुनाव में नेतन्याहू की पार्टी बहुमत जुटाने में कामयाब नहीं हो पाई थी और सहयोगी पार्टियों का समर्थन भी उन्हें नहीं मिला था। उन्हें बहुमत साबित करने के लिए 120 में 61 सीट की जरूरत थी। इसके बाद विपक्ष के नेताओं को सरकार बनाने के लिए 28 दिन का समय दिया गया था। लेकिन गाजा में संघर्ष के चलते प्रोसेस में देरी होती रही।


पहली बार गठबंधन की सरकार


हालांकि, इस नए गठबंधन में लेफ्ट विंग की मेरेटज से लेकर बेनेट की दक्षिणपंथी यामिना पार्टी हिस्सा है। साथ ही इसमें इस्लामिस्ट पार्टी यूनाइटेड अरब भी शामिल है। ऐसा पहली बार है, जब अरब इजराइल पार्टी किसी गठबंधन का हिस्सा है।



क्यों कामयाब थे नेतन्याहू


नेतन्याहू इस्राइल के इतिहास में सबसे लंबे समय तक प्रधानमंत्री के पद पर बने रहने वाले नेता हैं, जिन्होंने देश के संस्थापक डेविड बेन गुरियन के रिकॉर्ड को भी तोड़ दिया। बड़ी बात यह है कि नेतन्याहू को पद से हटाने के लिए एकजुट हुए लोगों में से एक तिहाई वैचारिक तौर पर उनके 'प्राकृतिक सहयोगी' हैं और पूर्व में उनके करीबी सहयोगियों के तौर पर काम भी कर चुके हैं। जाहिर है ऐसी स्थिति लोकप्रियता का वो शिखर होती है जहां भितरघात और षडयंत्र के बगैर सत्ता परिवर्तन नहीं हो सकता।


अब इंतजार कीजिए अगले कुछ दशक में इजराइल अगर रहा तो भी यहूदी अपने ही एकमात्र देश में दर-दर की ठोकरें खाते मिलेंगे जिसकी शुरुआत हो चुकी है।


टीम स्टेट टुडे


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