बिहार में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को लेकर अटकलों का दौर जारी है। कहा जा रहा है कि नीतीश कुमार अगले हफ्ते महागठबंधन के अपनी सहयोगी पार्टी राजद को छोड़ सकते हैं। वह भाजपा के समर्थन से नई सरकार बना सकते हैं।
कयासों के बीच भाजपा नेता ने भी दावा किया है कि जेडीयू और बीजेपी के बीच अब अंतिम दौर की बातचीत हो रही है। अगले 48 घंटे में फैसला भी हो सकता है। यदि वाकई ऐसा होता है तो नई सरकार बनाने के लिए 125 का फॉर्मूला बाकी दलों पर भारी पड़ सकता है।
राजभवन में संकेत के दो कारक --
राजभवन में भाजपा नेता से बातचीत करते दिखे नीतीश
बिहार में सियासत कैसे रंग बदल रही है, इसकी एक बानगी शुक्रवार शाम राजभवन में देखने को मिली। यहां मुख्यमंत्री नीतीश कुमार बीजेपी नेता और नेता प्रतिपक्ष विजय कुमार सिन्हा के साथ बातचीत करते हुए नजर आए। हालांकि, इस दौरान उनके बीच में अशोक चौधरी भी बैठे हुए थे।
अशोक चौधरी ने नीतीश के सामने फाड़ा तेजस्वी का स्टिकर
गणतंत्र दिवस के मौके पर पटना राजभवन में हाई-टी का आयोजन किया गया था। इसमें सीएम नीतीश कुमार और उनके कैबिनेट के मंत्री शामिल हुए। पूर्व सीएम जीतन राम मांझी पहुंचे थे। किसको कहां बैठना है, उस हिसाब से सभी कुर्सी पर नाम वाला स्टीकर लगाया गया था। सरकार में नंबर दो की हैसियत रखने वाले तेजस्वी यादव की कुर्सी नीतीश कुमार के बगल में लगी थी। सभी लोग राज्यपाल के आने का इंतजार कर रहे थे। तभी नीतीश कुमार के पास अशोक चौधरी आए और बगल की कुर्सी पर लिखे तेजस्वी यादव के स्टीकर को फाड़ दिया और खुद उस पर बैठ गए।
कांग्रेस के नेता भी राजभवन में आयोजित इस हाई-टी में शामिल नहीं हुए।
सत्ता की चाबी एक बार फिर शिफ्ट होने की मूड में है। ऐसी रिपोर्ट है कि तेजस्वी यादव से नीतीश कुमार की बातचीत भी बंद हो चुकी है। इस बीच जो राजभवन में दिखा उससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि खाई कितनी बढ़ गई है।
जानिए क्या है बिहार में 125 का फॉर्मूला
कयास हैं कि बिहार में अगली सरकार जेडीयू, बीजेपी और हिन्दुस्तानी आवाम मोर्चा के बीच गठबंधन के माध्यम से बन सकती है।
बिहार विधानसभा में कुल सीटों की संख्या 243 है। सरकार बनाने के लिए दो तिहाई बहुमत के तहत 122 विधायकों के समर्थन का जरूरत होती है।
विधानसभा में जेडीयू के पास अभी 45 विधायक हैं। भाजपा के 76 विधायक हैं। हम के पास 4 विधायक हैं। इनको जोड़ने पर कुल संख्या 125 हो जाती है।
ऐसे में बिहार में इस नए फॉर्मूले और नए गठबंधन के माध्यम से नई सरकार बन सकती है। इसमें नीतीश की जदयू का रोल सबसे अहम है, क्योंकि उसके समर्थन के बगैर भाजपा या राजद अपने बल पर सरकार नहीं बना सकते हैं।
वहीं, विधानसभा में कांग्रेस के 12 विधायक हैं। यह संख्या बल के लिहाज से बहुत ही मामूली संख्या है।
भाजपा विधायक का बड़ा दावा
इससे पहले भाजपा विधायक ज्ञानेंद्र सिंह ज्ञानू ने शुक्रवार को साफ कहा कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार महागठबंधन को छोड़कर एनडीए में आने के लिए तैयार हैं। उन्होंने कहा कि यह सबकुछ बीते एक महीने से चल रहा है।
ज्ञानू ने सियासी अटकलों को लेकर अपनी बात आगे बढ़ाते हुए कहा कि बात बहुत आगे तक बढ़ चुकी है। उन्होंने दावा करते हुए यह भी कहा कि अगले 48 घंटे में इस पर फैसला हो जाएगा।
भाजपा सांसद ने नीतीश को बताया हार्ड बार्गेनर
इससे पहले भारतीय जनता पार्टी के सांसद गिरिराज सिंह ने मुख्यमंत्र नीतीश कुमार को हार्ड बार्गेनर बताया था। हालांकि, उन्होंने यह भी कहा था कि नीतीश कुमार ने भाजपा की ओर इशारा करके लालू यादव को डरा दिया है। उन्होंने कहा कि नीतीश जब टाइट हो गए तो दूसरे ही दिन लालू पिता-पुत्र उनके घर पहुंच गए थे।
यूपी में बढ़ीं विपक्ष की बेचैनी
बंगाल के बाद बिहार में सामने आई खलबली के बीच उत्तर प्रदेश में छाई खामोशी ने कम से कम सपा-कांग्रेस के उन नेताओं की बेचैनी बढ़ा दी है, जो सपा-कांग्रेस गठबंधन के पक्षधर हैं।
यहां विपक्षी गठबंधन में कांग्रेस, सपा और राष्ट्रीय लोकदल हैं। बसपा को साथ लाने के लिए कांग्रेस की ओर से पुरजोर होते रहे प्रयासों पर मायावती के स्पष्ट इनकार के बाद फिलहाल मामला ठंडे बस्ते में है। तब माना जा रहा था कि बसपा को लेकर बनी संशय की स्थिति के कारण सीटों का बंटवारा उलझ रहा है, लेकिन सूत्रों के अनुसार सपा और कांग्रेस के बीच भी सीटों को लेकर बात जहां से शुरू हुई थी, वहां से बहुत आगे नहीं बढ़ पा रही है।
कांग्रेस की ओर से वरिष्ठ नेताओं की टीम राज्यवार इस पर बात करने के लिए बना दी गई तो सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव ने भी अपने नेताओं का पैनल बना रखा है। दोनों दलों की इन समितियों के बीच एक सप्ताह पहले दिल्ली में बैठक हुई। सीटवार चर्चा के दावे किए गए। रामगोपाल ने दावा किया था कि आधा रास्ता तय हो गया है और आधा बाकी है। तब माना जा रहा था कि अब समन्वय और समझौते को गति मिलेगी, लेकिन उसके बाद से यूपी को लेकर कोई हलचल सुनाई नहीं दी।
जब जब नीतीश ने मारी पलटी और बदले समीकरण
2013 में नीतीश ने मारी पहली पलटी
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जिन्हें 10 साल पहले 'सुशासन बाबू' के नाम से जाना जाता था. वहीं अब इधर उधर के चक्कर में 'पलटू राम' बन गए है. जब भी नीतीश राजनीति में असहज हुए तब-तब उन्होंने अपना सियासी पार्टनर बदला है. बात है साल 2005 की, जब नीतीश पर लोगों ने भरोसा जताया था. 2005 से 2012 तक सब कुछ ठीक ठाक था, नीतीश ने भी सब की उम्मीदों पर खरे उतरने की पूरी कोशिश की. साल 2012 में जब नरेंद्र मोदी का नाम प्रधानमंत्री उम्मीदवार के नाम पर आया तब साल 2013 में नीतीश कुमार ने NDA से 17 साल पुराना नाता तोड़ लिया.
बात है साल 2013 की जब बीजेपी ने नीतीश को लोकसभा चुनाव 2014 के लिए नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित कर दिया गया था तो ये बात नीतीश कुमार को रास नहीं आई और उन्होंने बीजेपी का दामन छोड़ दिया. 2014 में लोकसभा चुनाव में नरेंद्र मोदी को प्रचंड बहुमत मिला और 10 साल बाद बीजेपी ने सत्ता में धूमधाम से वापसी की. 2014 के लोकसभा चुनाव में ही नीतीश कुमार बीजेपी के खिलाफ बिहार में चुनाव लड़े थे और उन्हें केवल 2 सीटें मिली थी. जिसके बाद इस हार का सदमा नीतीश सह नहीं पाए और उन्होंने सीएम की कुर्सी से इस्तीफा दे दिया. नीतीश ने कुर्सी अपनी सरकार के मंत्री और दलित नेता जीतन राम मांझी को सौंप दी और वे खुद बिहार विधानसभा चुनाव 2015 की तैयारी में जुट गए.
साल 2015 के लोकसभा चुनाव में जुटे नीतीश कुमार ने आरजेडी और कांग्रेस के साथ मिलकर महागठबंधन बनाया. इस महागठबंधन के साथ नीतीश ने लोकसभा चुनाव में बीजेपी को धूल चटा दी और शानदार जश्न के साथ एक बार फिर बिहार की सत्ता पर कब्जा किया.
वक्त गुजर ही रहा था करीब दो साल पूरे होने वाले थे लेकिन उससे पहले ही महागठबंधन में दरार आने लगी. जहां एक ओर नीतीश कुमार ने साल 2017 में नोटबंदी और जीएसटी जैसे मुद्दों पर बीजेपी का समर्थन कर दिया. वहीं दूसरी ओर सीबीआई ने लालू यादव और तेजस्वी यादव संग उनके परिवार के कई सदस्यों के खिलाफ भ्रष्टाचार का मामला दर्ज हुआ. जिसकी आंच धीरे-धीरे नीतीश तक भी पहुंचने लगी. जिसके बाद माहौल को देखते हुए नीतीश ने लालू को मैसेज डाला कि तेजस्वी को पद से इस्तीफा देना चाहिए. मगर लालू नहीं माने और फिर नीतीश ने इस्तीफा दे दिया और महागठबंधन की सरकार गिर गई. हालांकि कुछ ही घंटों में नीतीश बीजेपी के समर्थन में मुख्यमंत्री बन गए. वहीं सत्ता पलट का ये पूरा घटनाक्रम नाटकीय तरीके से पूरे 15 घंटे के भीतर हुआ. वहीं साल 2020 में बिहार विधानसभा चुनाव में एनडीए की वापसी हुई, मगर नीतीश कुमार की पार्टी तीसरे नंबर पर आई. हालांकि, मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ही रहें.
बात है साल 2022 की, जब नीतीश कुमार तीसरी बार ब्रेक के लिए तैयार थे. जेडीयू ने बीजेपी पर पार्टी तोड़ने की साजिश का आरोप लगाया था. जिसके बाद 15 अगस्त से पहले ही 9 अगस्त 2022 को नीतीश कुमार ने ऐलान किया था कि जदयू-भाजपा गठबंधन खत्म हो गया. जिसके बाद अगले दिन ही नीतीश आरजेडी के समर्थन में फिर से मुख्यमंत्री बने. हालांकि उस वक्त आरजेडी ने नीतीश के साथ किसी भी गठबंधन के लिए मना कर दिया था. वहीं तेजस्वी नीतीश से गले मिलकर काफी खुश थे.
क्या चौथी पलटी मारने के लिए तैयार है नीतीश?
नीतीश कुमार एक बार फिर पलटी मार सकते है और ये नीतीश की चौथी पलटी होगी।
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