झारखंड में मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने इस्तीफा दे दिया है। वहीं, चंपई सोरेन अब झारखंड के नए मुख्यमंत्री होंगे। बता दें कि कथित भूमि घोटाले से जुड़े मनी लॉन्ड्रिंग मामले की जांच के तहत प्रवर्तन निदेशालय (ED) ने रांची में प्रदेश के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन से बुधवार को घंटों तक पूछताछ की है।
झारखंड प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष राजेश ठाकुर ने बताया कि सीएम हेमंत सोरेन राज्यपाल से मुलाकात कर अपना त्यागपत्र दिया। उसके बाद उसकी गिरफ्तारी हुई। उन्होंने बताया कि चंपई सोरेन को विधायक दल का नया नेता चुना गया है।
झारखंड मुक्ति मोर्चा के विधायक स्टीफन मरांडी ने की पुष्टि की है कि चंपई सोरेन को विधायक दल का नेता चुना गया है। वहीं, दूसरी ओर मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन इस्तीफा देंगे।
बीजेपी सांसद निशिकांत दुबे का दावा है कि चंपई सोरेन को नेता चुना गया है। बताया जा रहा है कि कल्पना सोरेन के नाम पर मतभेद होने के कारण चंपई सोरेन का नाम आगे बढ़ाया गया। हालांकि अभी सत्तापक्ष की ओर से इसे लेकर आधिकारिक घोषणा नहीं की गई है।
सत्तापक्ष के सभी विधायकों को राजभवन से बाहर किया गया। अंदर जाने के बाद वाहनों को बाहर भेजा गया।
विपक्षी विधायकों में 32 विधायक
झारखंड में विपक्षी खेमे में 32 विधायक है। इसमें बीजेपी के 25 विधायकों के अलावा बाबूलाल मरांडी को अभी भी झाविमो का विधायक ही माना जा रहा है। बाबूलाल मरांडी की सदस्यता को लेकर स्पीकर की अदालत में दल-बदल का मामला चल रहा है। इसके अलावा विपक्षी खेमे में आजसू पार्टी के 3 और 2 निर्दलीय सरयू राय, अमित यादव शामिल है। साथ ही एनसीपी के कमलेश कुमार सिंह ने भी हेमंत सरकार से समर्थन वापस ले लिया है। जिसके बाद वे एनडीए खेमे में आ गए हैं।
सत्तापक्ष को 47 विधायकों का समर्थन
सत्तापक्ष के विधायकों की संख्याअ भी 47 है। इसमें जेएमएम के 29, कांग्रेस के 16, झाविमो में 1, सीपीआई-माले के 1, आरजेडी के 1 और 1 मनोनीत विधायक का समर्थन हासिल है।
82 सदस्यीय झारखंड विधानसभा में दलीय स्थिति
82 सदस्यीय झारखंड विधानसभा में झारखंड मुक्ति मोर्चा सबसे बड़ी पार्टी है। जेएमएम विधायकों की संख्या 29 है। जबकि बीजेपी विधायकों की संख्या 25, कांग्रेस के 16, झारखंड विकास मोर्चा के 2, आजसू पार्टी के 3, सीपीआई-माले के 1, एनसीपी के 1, आरजेडी के 1, दो निर्दलीय और 1 मनोनीत शामिल है। वहीं गांडेय के जेएमएम विधायक सरफराज अहमद के इस्तीफे के कारण एक सीट खाली है।
क्या मुख्यमंत्री गिरफ्तार हो सकता है- जानिए क्या कहता है कानून
रांची के कथित जमीन घोटाले को लेकर प्रवर्तन निदेशालय पूछताछ कर रही है और ऐसा माना जा रहा है कि उनकी गिरफ्तारी हो सकती है। इस पूछताछ की वजह से मुख्यमंत्री आवास और राजभवन की सुरक्षा बढ़ाई गई है।
मुख्यमंत्री को इन मामलों में छूट नहीं
संविधान के अनुच्छेद 361 के तहत मुख्यमंत्री को सिविल मामलों में गिरफ्तारी और हिरासत से छूट मिली हुई है। हालांकि, क्रिमिनल मामलों में वह गिरफ्तार हो सकते हैं। बिल्कुल ऐसी ही स्थिति प्रधानमंत्री, केंद्रीय मंत्री, लोकसभा और राज्यसभा के सदस्य, विधानसभा और विधान परिषद के सदस्यों के लिए भी है। हालांकि, राष्ट्रपति और राज्यपाल को पद पर रहते हुए गिरफ्तार नहीं किया जा सकता है।
क्या कहता है अनुच्छेद 361
अनुच्छेद 361 के तहत राष्ट्रपति या किसी भी राज्यपाल के खिलाफ उनके कार्यकाल के दौरान किसी भी अदालत में कोई क्रिमिनल कार्यवाही शुरू नहीं की जा सकता है। न ही कोई भी अदालत हिरासत का आदेश दे सकती है।
गिरफ्तारी से पहले लेनी होगी अनुमति
कोड ऑफ सिविल प्रोसिजर 135 के तहत मुख्यमंत्री या विधान परिषद के सदस्य को सिविल मामलों में गिरफ्तारी से छूट दी गई है, लेकिन क्रिमिनल मामलों में ऐसा नहीं है। हालांकि, क्रिमिनल मामलों में गिरफ्तारी से पहले सदन के अध्यक्ष की मंजूरी लेनी होती है। जिसका मतलब साफ है कि विधानसभा अध्यक्ष की मंजूरी के बाद ही मुख्यमंत्री को गिरफ्तार किया जा सकता है।
कब-कब गिरफ्तार नहीं हो सकते मुख्यमंत्री
बता दें कि मुख्यमंत्री या विधान परिषद के सदस्य की गिरफ्तारी कब हो सकती है इसको लेकर भी बकायदा नियम बने हुए हैं। कोड ऑफ सिविल प्रोसिजर 135 के तहत विधानसभा सत्र शुरू होने से 40 दिन पहले और खत्म होने के 40 दिन बाद तक मुख्यमंत्री या विधान परिषद के सदस्य को गिरफ्तार नहीं किया जा सकता है। इसके अतिरिक्त मुख्यमंत्री को सदन से गिरफ्तार नहीं किया जा सकता है।
इन नेताओं की हो चुकी है गिरफ्तारी
साल 1997 में चारा घोटाला मामले में सीबीआई ने पहली चार्जशीट दाखिल की थी। इस चार्जशीट में तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव का नाम था। ऐसे में उन्होंने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया और कमान पत्नी राबड़ी देवी को सौंप दी। इसके बाद लालू प्रसाद यादव की गिरफ्तारी हुई।
तमिलनाडु की दिवंगत मुख्यमंत्री जे जयललिता की भी गिरफ्तारी हो चुकी है। हालांकि, उन्होंने आय से अधिक संपत्ति मामले में दोषी ठाहराये जाने के बाद मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया था, लेकिन जब तक मामले की जांच चली वह मुख्यमंत्री पद पर बनी हुई थीं। जयललिता के पद से इस्तीफा दिये जाने के बाद गिरफ्तार किया गया था।
साल 2011 में कर्नाटक के तत्कालीन मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा ने अवैध खनन मामले को लेकर लोकायुक्त की रिपोर्ट सामने आने के बाद इस्तीफा दिया था। इसके बाद राज्य की कमान डीवी सदानंद गौड़ा को सौंपी गई थी और फिर कुछ दिनों बाद येदियुरप्पा की गिरफ्तारी हुई थी।
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