रेलवे की मदद से काकोरी शौर्यगाथा पर आधारित 12 बोगी वाली ट्रेन करेगी विभिन्न जनपदों का भ्रमण
दो माह तक विभिन्न जनपद व नगरों का भ्रमण करेगी ट्रेन, स्कूली बच्चों व युवाओं को बताएगी शौर्यगाथा
ट्रेन में काकोरी शौर्यगाथा पर आधारित सचल प्रदर्शनी का भी होगा आयोजन
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के निर्देश पर 9 अगस्त से हो रहा है काकोरी ट्रेन एक्शन की 100वीं वर्षगांठ का शुभारंभ
लखनऊ, 8 अगस्त। काकोरी ट्रेन एक्शन की 100वीं वर्षगांठ पर योगी सरकार काकोरी ट्रेन एक्शन शताब्दी महोत्सव का आयोजन करने जा रही है। सीएम योगी आदित्यनाथ की पहल पर वर्तमान और भावी पीढ़ी को काकोरी व स्वतंत्रता सेनानियों की शौर्यगाथा के जरिए प्रेरित किया जाएगा। इसके लिए स्कूली बच्चों, किशोर-युवाओं की सहभागिता से कार्यक्रम आयोजित किए जा रहे हैं। वहीं,रेलवे के सहयोग से काकोरी शौर्यगाथा एक्सप्रेस भी चलाई जा रही है। इस ट्रेन के माध्यम से प्रदेशवासियों को काकोरी ट्रेन घटना से परिचित कराया जाएगा। यह ट्रेन आगामी दो माह तक प्रदेश के विभिन्न स्थानों का भ्रमण करेगी और लोगों को इस घटना के विषय में जानकारी देगी।
सचल प्रदर्शनी का आयोजन
काकोरी ट्रेन एक्शन की 100वीं वर्षगांठ का शुभारंभ 9 अगस्त से होगा। शताब्दी महोत्सव पूरे प्रदेश में विभिन्न गतिविधियों के साथ वर्ष पर्यंत मनाया जाएगा। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने हाल ही में एक उच्चस्तरीय बैठक में काकोरी ट्रेन एक्शन सेंटेनरी फेसिटवल को लेकर अधिकारियों को आवश्यक दिशा निर्देश दिए थे। मुख्यमंत्री ने काकोरी ट्रेन एक्शन को भारत के स्वतंत्रता संग्राम की एक महत्वपूर्ण घटना बताते हुए निर्देश दिया था कि रेलवे के सहयोग से प्रदेश में एक ट्रेन 'काकोरी शौर्यगाथा एक्सप्रेस' संचालित की जाए, जो लोगों तक काकोरी शौर्यगाथा पहुंचाएगी। काकोरी शौर्यगाथा पर आधारित 12 बोगी वाली ट्रेन आगामी दो माह तक विभिन्न जनपदों और नगरों का भ्रमण करेगी। इसमें काकोरी शौर्यगाथा पर आधारित सचल प्रदर्शनी होगी।
दो दिन तक रहेगा पड़ाव
काकोरी शौर्यगाथा एक्सप्रेस का प्रत्येक जनपद में दो दिन तक पड़ाव रहेगा। इस दौरान स्कूली बच्चों को ट्रेन में सचल प्रदर्शनी दिखाई जाएगी और इस दौरान अन्य सामूहिक गतिविधियों का आयोजन किया जाएगा। इसमें बच्चों के बीच क्विज प्रतियोगिता एवं जीवन गाथा पर आधारित गतिविधियां सम्मिलित होंगी। ट्रेन में काकोरी ट्रेन एक्शन के अभिलेखों को भी प्रदर्शित किया जाएगा। यही नहीं, काकोरी गाथा का एआर/वीआर के माध्यम से 3डी मॉडल भी प्रदर्शित होगा। ट्रेन के अंदर और बाहर भारतेंदु नाट्य अकादमी द्वारा नुक्कड नाटक का भी मंचन होगा। काकोरी शौर्यगाथा एक्सप्रेस का आजादी से जुड़े प्रदेश के विभिन्न नगरों के साथ-साथ देश के प्रमुख नगरों में ठहराव होगा।
9 अगस्त को प्रदेश भर में होंगे ये आयोजन
काकोरी ट्रेन एक्शन की 100वीं वर्षगांठ का शुभारंभ 9 अगस्त यानी शुक्रवार से होगा। इस दिन शताब्दी वर्ष पर विशेष डाक के साथ ही मोटरसाइकिल रैली, 6 दिवसीय स्मरणोत्सव मेला, वीरों व शहीदों के परिजनों का सम्मान, राष्ट्रीय स्वतंत्रता संग्राम की अभिलेख प्रदर्शनी और शहीद स्मारकों, अमृत सरोवरों एवं अमृत वाटिकाओं में 100-100 पौधों का रोपण किया जाएगा। 9 अगस्त को कार्यक्रम का शुभारंभ संपूर्ण प्रदेश में जनभागीदारी एवं उत्साह के साथ किया जाएगा। वहीं जनपदों के शहीद स्मारकों पर जन प्रतिनिधियों को आमंत्रित कर भव्य आयोजन सुनिश्चित किए जाएंगे। जनपद व राज्य स्तर पर विभिन्न प्रतियोगिताएं भी होंगी। 15 अगस्त के कार्यक्रम में विजेताओं को नकद पुरस्कार से सम्मानित किया जाएगा। साथ ही विजेताओं को प्रमाण पत्र भी प्रदान किया जाएगा।
जंगे आजादी में रही है गोरक्षपीठ की अहम भूमिका, अब स्वतंत्रता के मूल्यों के प्रसार पर जोर
विरासत में मिली राष्ट्रवाद की परंपरा को बखूबी निभा रहे योगी आदित्यनाथ
काकोरी ट्रेन एक्शन के शताब्दी समारोह के लिए शुरू करने जा रहे आयोजनों की श्रृंखला
लखनऊ, 8 अगस्त। स्वतंत्रता के लिए लड़ाई में भरपूर योगदान और स्वतंत्रता के मूल्यों का संरक्षण गोरक्षपीठ की विरासत का अभिन्न हिस्सा है। पीठ से विरासत में मिली इस परंपरा को वर्तमान पीठाधीश्वर योगी आदित्यनाथ प्रदेश के मुख्यमंत्री के रूप में बखूबी निभाने के साथ और आगे बढ़ा रहे हैं। हर जिले में शहीदों के नाम पार्क, हर शहीद को सम्मान। शहीदों से जुड़े हर स्मारक का सुंदरीकरण आदि इसका प्रमाण है। इसी क्रम में योगी सरकार ने काकोरी ट्रेन एक्शन के शताब्दी वर्ष के लिए कार्यक्रमों की श्रृंखला तैयार की है। शताब्दी महोत्सव पर पूरे प्रदेश भर में अलग-अलग तिथियों पर कार्यक्रम होंगे। 9 अगस्त से इन आयोजनों की शुरुआत होगी। वहीं 13 से 15 अगस्त के बीच 'हर घर तिरंगा' अभियान आयोजित किया जाएगा, जिसमें घर-घर तिरंगा फहराया जाएगा।
गोरखपुर स्थित नाथपंथ की इस पीठ के व्यापक सामाजिक सरोकार रहे हैं। यही वजह है कि करीब एक शताब्दी से देश की राजनीति और समाज का कोई ऐसा क्षेत्र नहीं रहा जिस पर अपने समय में पीठ की महत्वपूर्ण भूमिका नहीं रही हो। राम मंदिर आंदोलन में गोरक्षपीठ की भूमिका से हर कोई वाकिफ है। यह देश की राजनीति और समाज पर असर डालने वाला आजादी के बाद का सबसे बड़े आंदोलन था। रही देश की आजादी की लड़ाई की बात तो इसमें भी पीठ की इसी तरह महत्वपूर्ण भूमिका रही है। विशेषकर इस पीठ के वर्तमान पीठाधीश्वर और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के दादा गुरु ब्रह्मलीन महंत दिग्विजयनाथ की।
योगी के दादा गुरु किशोरावस्था में ही कूद पड़े थे आजादी के आंदोलन में
जिस दौरान जंगे आजादी चरम पर थी, उस समय योगी आदित्यनाथ के दादा गुरु ब्रह्मलीन महंत दिग्विजयनाथ ही गोरक्षपीठ के पीठाधीश्वर थे। वह चित्तौड़ मेवाड़ ठिकाना ककरहवां में पैदा हुए थे। पर, 5 साल की उम्र में गोरखपुर आए तो यहीं के होकर रह गए। यकीनन देश भक्ति का जोश, जज्बा और जुनून उनको मेवाड़ की उसी माटी से विरासत में मिली थी जहां के महाराणा प्रताप ने अपने समय के सबसे ताकतवर मुगल सम्राट के आगे तमाम दुश्वारियों के बावजूद घुटने नहीं टेके।
इसी विरासत का असर था कि किशोरावस्था आते आते वह महात्मा गांधी से प्रभावित होकर आजादी के आंदोलन में कूद पड़े। उन्होंने जंगे आजादी के लिए जारी क्रांतिकारी आंदोलन और गांधीजी के नेतृत्व में जारी शांतिपूर्ण सत्याग्रह में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। एक ओर जहां उन्होंने समकालीन क्रांतिकारियों को संरक्षण, आर्थिक मदद और अस्त्र-शस्त्र मुहैया कराया, वहीं गांधीजी के आह्वान वाले असहयोग आंदोलन के लिए स्कूल का परित्याग कर दिया।
स्वतंत्रता संग्राम के दोनों तरीकों में शामिल रहने का उनका एकमात्र उद्देश्य था कि चाहे जैसे मिले पर देश को आजादी मिलनी चाहिए।
*चौरीचौरा आंदोलन में भी आया था महंत दिग्विजयनाथ का नाम
चौरीचौरा जनक्रांति (चार फरवरी 1922) के करीब साल भर पहले आठ फरवरी 1921 को जब गांधीजी का पहली बार गोरखपुर आगमन हुआ था, दिग्विजयनाथ रेलवे स्टेशन पर उनके स्वागत और सभा स्थल पर व्यवस्था के लिए अपनी टोली (स्वयंसेवक दल) के साथ मौजूद थे। नाम तो उनका चौरीचौरा जनक्रांति में भी आया था, पर वह उसमे ससम्मान बरी हो गये। देश के अन्य नेताओं की तरह चौरीचौरा जनक्रांति के बाद गांधीजी द्वारा असहयोग आंदोलन के सहसा वापस लेने के फैसले से वह भी असहमत थे। बाद के दिनों में मुस्लिम लीग को तुष्ट करने की नीति से उनका कांग्रेस और गांधीजी से मोह भंग होता गया। इसके बाद उन्होंने वीर सावरकर और भाई परमानंद के नेतृत्व में गठित अखिल भारतीय हिंदू महासभा की सदस्यता ग्रहण कर ली। जीवन पर्यंत वह इसी में रहे। उनके बारे में कभी सावरकर ने कहा था, ‘यदि महंत दिग्विजयनाथ की तरह अन्य धर्माचार्य भी देश, जाति और धर्म की सेवा में लग जाएं तो भारत पुनः जगतगुरु के पद पर प्रतिष्ठित हो सकता है।’
पीठ की देशभक्ति के जज्बे का प्रतीक है महाराणा प्रताप शिक्षा परिषद
ब्रह्मलीन महंत दिग्विजयनाथ महाराण प्रताप से कितने प्रभावित थे, इसका सबूत 1932 में उनके द्वारा स्थापित महाराणा प्रताप शिक्षा परिषद है। इस परिषद का नाम महाराणा प्रताप रखने के पीछे यही मकसद था कि इसमें पढ़ने वाल विद्यार्थियों में भी देश के प्रति वही जज्बा, जुनून और संस्कार पनपे जो प्रताप में था। इसमें पढ़ने वाले बच्चे प्रताप से प्रेरणा लें। उनको अपना रोल माॅडल माने। उनके आदर्शों पर चलते हुए यह शिक्षा परिषद चार दर्जन से अधिक संस्थाओं के जरिये विद्यार्थियों में राष्ट्रीयता की अलख जगा रहा है।
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