के. विक्रम राव
नारी—अस्मिता को अतीव महत्व देने के लिये गुजरात के बाद केरल ही मशहूर है। इस बार वहां प्रथम महिला मुख्यमंत्री की संभावना अत्यधिक थी। पर लैंगिक भेदभाव करने में मार्क्सवादी कम्युनिस्ट भी अंतत: वही भारतीय समाज में जमी पौरुष ग्रंथि से मुक्त नहीं हो पाये। कांग्रेसी जैसी ही। इसीलिए दोबारा केरल के मुख्यमंत्री बनते ही पिनरायी विजयन ने सत्ता में अपनी जड़ जमाने हेतु अपने प्रतिस्पर्धी रही के.के शैलजा को काबीना तक में नहीं रखा। बस विधायक दल का सचेतक नामित कर दिया। कुर्सी से काफी दूर।
लेकिन दूसरी कमजोरी, परिवारवादवाली, से भी विजयन अलग नहीं रह पाये। सट ही गये कुटुम्ब से। उनकी पुत्री वीणा टी. का दूसरा पति अर्थात विजयन का दूसरा दामाद पी.ए. मोहम्मद रियाज लोकनिर्माण जैसे कमाऊ विभाग का मंत्री नामित हुआ। चौवालीस—वर्षीय वकील रियाज, जिनके पिता अब्दुल कादिर पुलिस अफसर हैं, की पहली बीवी डा. समीहा से दो बेटे है, दस और तरह वर्ष के। छह वर्ष पूर्व तलाक हो गया था। डा. वीणा विजयन के पहले पति रवि पिल्लई एक अमीर उद्योगपति हैं। उनका एक पुत्र भी है। वीणा एम.डी. है। दोनों ने कहा कि विवाह दो प्राणियों (उनका और रियाज) का निजी मामला है, अपनी पसंद है।
मगर मीडिया ने मीमांसा की। योग्यतम महिला शैलजा को निकालकर कर विजयन ने मंत्री बनाया दामाद को ? क्या यह मार्क्सवादी सिद्धांत की दृष्टि से उचित है ? नैतिकता पर एकाधिकार बघेरने वाली माकपा अब ससुर—दामाद वाली सियासत करे तो फर्क क्या रहा? ऐसा तो सोनिया—कांग्रेस में होता रहता है।
यह बात तीखी इसलिये भी हो जाती है क्योंकि प्रगतिशील राज्य केरल में पहली बार महिला मुख्यमंत्री बनते—बनते चूक गयी। पिछड़े यूपी, असम, बिहार, कश्मीर, मध्य प्रदेश, उड़ीसा और पड़ोसी तमिलनाडु की तुलना में केरल भी महिला मुख्यमंत्री का चयन करके नारी गौरव को कई चांद लगा सकता था। इन सभी राज्यों में स्त्री शीर्ष पर रह चुकी है। यूं भी मलयाली महिलाओं ने नर्स के पदों को विश्वभर में चमकाया है।
शैलजा को हटाना बड़ी खबर बनती किन्तु स्वयं इस जुझारु महिला ने नीतिपरस्त मार्क्सवादी होने के नाते कह दिया कि ''काबीना का गठन मुख्यमंत्री का विशेषाधिकार है।'' वही पुराना घिसा—पिटा बचाव। हालांकि इस मौन से शैलजा जन—आंकलन में काफी ऊंची उठी हैं। विजयन जरुर पुरुष—सहज द्वेष और भय के कारण निचले पायदान पर आ पड़े हैं। दुबाई से सोने की तस्करी के कारण उनका अवमूल्यन तो हो ही गया था। जो शेष था वह जामाता को मंत्रिपद दहेज में देकर जाता रहा। उधर पूरब में ममता का भतीजावाद (सांसद अभिषेक बनर्जी) तो इधर सुदूर दक्षिण में विजयन के जवांईराज अब विपक्ष की राजनीति का अभिन्न अंग हो गये।
शैलजा की ख्याति फैली थी जब उन्होंने निपाह और कोविड—19 की महामारी का मर्दन किया था। इस वामपंथी को संयुक्त राष्ट्र संघ में ''कीटाणु नाशक'' हेतु सम्मानित किया गया था। एक साधारण कस्बायी अध्यापिका से वे उठी थीं। खूब संघर्ष किया। काबीना मंत्री बनीं। मगर अंतिम राउण्ड में अवरुद्ध हो गयीं। वे दूसरी वीएस अच्युतानंदन नहीं हो पायीं। इस सत्तानवे—वर्षीय माकपा धुरंधर का तो विजयन ने टिकट ही काट दिया था। माकपा के विरुद्ध तक जनविद्रोह हो गया था। विजयन को टिकट देना पड़ा और अच्युतानंदन मुख्यमंत्री (18 मई 2006) बने।
मगर गत माह विजयन ने एक चालाकी की। शैलजा को हटाने से आलोचना तो काफी हुयी पर मीडिया में उन्हें कमजोर करने के लक्ष्य से मुख्यमंत्री ने केरल की स्वास्थ्य मंत्री एक महिला ही को बनाया। टीवी पत्रकार वीणा जार्ज को स्वास्थ्य विभाग मिला है। पैंतालीस—वर्षीया यह महिला समाचार संपादक और टीवी न्यू की संपादिका थी। महाबली कांग्रेसी प्रतिस्पर्धी तथा विधिवेत्ता के. शिवदासन नायर को बीस हजार वोटों से अरनमुला विधानसभा क्षेत्र से हरा कर वीणा विधायक बनी है। अब उनके समक्ष यह प्राथमिकता के तौर पर चुनौती यह है कि एक योग्य पूर्व मंत्री की तुलना में उन्हें अपने कीर्तिमान रचाने होंगे।
किन्तु पिनरायी विजयन की व्यथा कथा अभी खत्म नहीं हुयी है। उनकी चुनावी हरीफ दलित मजदूर विधवा वी. भाग्यवती ने अपना सत्याग्रह फिर चालू कर दिया है। उनकी दो नाबालिग पुत्रियों का माकपा के गुण्डों ने बलात्कार किया। न्याय की खोज में भाग्यवती ने सर मुडवा कर संघर्ष शुरु किया था। चालाक विजयन को उनके धर्मदम विधानसभा क्षेत्र (कन्नूर) में इस दलित ने पुरजोर चुनौती दी थी। ''विजयन के विरुद्ध'' अपना विजय संकल्प पूरा करने हेतु उसने सिर मुंडवा लिया था। पिनरायी विजयन व्यग्र रहे। दलित मजदूर भाग्यवती द्वारा चुनावी उम्मीदवारी का कारण था कि उसकी दो नाबालिग बेटियों को न्याय मिले। बलात्कार के समय बड़ी पुत्री तेरह की और दूसरी केवल नौ वर्ष की थी। पुलिस की रपट के अनुसार इन दोनों ने आत्महत्या की थी, जबकि दोनों की लाशें टंगी मिलीं थीं। विधवा मां तीन वर्षों से दर—दर भटकती रही, न्याय की गुहार लगाती रही। जनपदीय न्यायालय में पांचों हत्यारें बरी कर दिये गये थे। अदालत ने पाया कि पुलिस तथा अभियोजन पक्ष हत्या सिद्ध नहीं कर पाया। पर्याप्त सबूत नहीं उपलब्ध करा पाये थे। इस निर्णय के बाद मलयालयम मीडिया ने राज्यव्यापी अभियान चलाया था। मीडिया के कारण जगह—जगह माकपा कार्यालयों के सामने धरना प्रदर्शन हुये। जनसंघर्ष का नतीजा था कि केरल हाई कोर्ट ने मुकदमें की दुबारा सुनवाई का आदेश दिया। फिर से जिला अदालत हत्या के आरोप पर सुनवायी कर रही है। मगर माकपा शीर्ष नेतृत्व है कि अभी तक टस से मस भी नहीं हुआ। अत: जनयुद्ध अभी जारी है।
K Vikram Rao
E-mail: k.vikramrao@gmail.com
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