लखनऊ से दिल्ली की दूरी करीब 600 किलोमीटर है। दिल्ली या लखनऊ का मौसम बदलने पर छ से आठ घंटों में असर दिखाई देता है। चूंकि ये आंदोलन है, किसानों का आंदोलन इसलिए आठ महीने का समय लगा है जब लखनऊ को दिल्ली बनाने की चुनौती दी गई है। ये चुनौती उत्तर प्रदेश की योगी सरकार को दी गई है और देने वाले हैं राकेश सिंह टिकैत।
भारतीय किसान यूनियन के प्रवक्ता राकेश सिंह टिकैत बीते आठ महीने से दिल्ली-यूपी बार्डर पर किसान आंदोलन के जरिए कृषि कानूनों के विरोध में बैठे रहे। 26 जनवरी की हिंसा से दुखी होकर आंदोलन को समर्थन देने वाले बहुत सारे समर्थक अपने घरों को लौट गए। राकेश टिकैत भी आंदोलन से उठ ही गए थे फिर अचानक कुछ ऐसा हुआ कि वो रोने लगे...भावनाओं के ज्वार में उनके समर्थक किसान के नाम पर आंदोलन को फिर से जिंदा करने में जुट गए। पश्चिम उत्तर प्रदेश में बड़ी पंचायत हो गई। टिकैत के समर्थन की बात उड़ चली। फिर भी जो कुछ था वो वहीं था, दिल्ली-यूपी, दिल्ली-हरियाणा बार्डर पर।
अब राकेश सिंह टिकैत लखनऊ को दिल्ली बनाने वाले हैं। ये खुली चुनौती उसी तरह की बात है जैसे 26 जनवरी से पहले सरकार के बक्कल खोलने वाला उनका बयान था।
किस तरह है एक्टिव प्लान
भारतीय किसान यूनियन के प्रवक्ता राकेश टिकैत का कहना है कि केंद्र सरकार पर कृषि कानूनों को वापस लेने का दबाव बनाने के लिए दिल्ली की तरह लखनऊ के चारों तरफ किसान डेरा डालेंगे। ये काम सिर्फ उत्तर प्रदेश ही नहीं बल्कि उत्तराखंड में भी होगा। लखनऊ में एक प्रेस कांफ्रेंस कर बाकयादा इसका ऐलान किय गया। राकेश टिकैत के साथ लगभग हर मुद्दे पर आंदोलन करने वाले योगेंद्र यादव भी मौजूद थे।
क्या होगा किसान आंदोलन के नाम पर
टिकैत का कहना है कि गांव-गांव जाकर भाजपा व उसके सहयोगी दलों के नेताओं का बहिष्कार करेंगे। यात्रा और रैलियां की जाएंगी। उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर में पांच सितंबर को बड़ी पंचायत का आयोजन किया जाएगा। प्रदेश के सभी मंडल मुख्यालयों पर महापंचायत का आंदोलन होगा। पंजाब और हरियाणा की तरह उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में भी हर गांव किसान आंदोलन का दुर्ग बनेगा।
क्या हैं टिकैत के आरोप
राकेश टिकैत का आरोप है कि प्रदेश में गेहूं की खरीद में घोटाला हुआ है। किसानों से 1200, 1400 रूपए प्रति कुंतल की दर से गेहूं लिया गया। बाद में व्यापारियों ने एमएसपी पर सरकारी केंद्रों पर बेच दिया है। सिर्फ इतना ही नहीं टिकैत का आरोप है कि यूपी में बिजली सबसे महंगी है। महंगाई से आवारा पशुओं की समस्या से किसान त्रस्त है। गौशाला के नाम पर शोषण और भ्रष्टाचार हो रहा है।
क्या है टिकैत का फार्मूला
राकेश टिकैत का कहना है कि उनसे जुड़ा युवा 'थ्री टी' पर काम करता है। जब वह फौज में जाता है तो वहां टैंक चलाता है, गांव में आता है ट्रैक्टर और जब खाली होता है तो ट्विटर चलाता है। राकेश टिकैत ने कहा कि किसान 15 अगस्त को 1500 ट्रैक्टर लेकर दिल्ली पहुंचेंगे।
योगी सरकार को खुली चुनौती
राकेश सिंह टिकैत और योगेंद्र यादव ने संयुक्त किसान मोर्चा की तफ से उतर प्रदेश की योगी सरकार को खुली चुनौती देते हुए कहा है कि हम तो किसान के हित की बात करेंगे, अगर सरकार सख्ती करती हैं तो हम लखनऊ को भी दिल्ली बना देंगे। उत्तर प्रदेश सरकार काफी सख्ती बरत रही है। वक्त आने पर इनको भी किसान की ताकत बता देंगे। योगेंद्र यादव ने कहा सिर्फ यूपी ही नहीं उत्तराखंड में आंदोलनकारी लंगर डाल कर बैठेंगे।
किसान नेता और किसानों के नाम पर आंदोलना का फर्क
उत्तर भारत में किसान नेताओं का जिक्र आते ही दो चेहरे सर्वकालिक तौर पर उभरते हैं। चौधरी चरण सिंह और महेंद्र सिंह टिकैत। अफसोस कि अब ये दोनों ही नेता इस दुनिया में नहीं है।
अब जो हैं वो किसान हैं और किसानों के नाम पर राजनीति करने वाले हैं। ऐसा इसलिए कि रातोंरात किसी को किसान नेता कह देना ना सिर्फ नेताओं के साथ अन्याय होगा बल्कि इससे किसानों को भी ठेस पहुंचेगी।
किसानों के नाम पर जो राजनीति कर रहे हैं उनका गांव-गली से ताल्लुक हो सकता है। उनकी अपनी खेती-बाड़ी भी हो सकती है। हो सकता है कि किसानों को लेकर उनमें अपनी तरह की एक समझ भी हो बावजूद इसके वो किसानों के नाम पर राजनीति करने वाले तो हो सकते हैं लेकिन किसान नेता नहीं। ऐसा इसलिए क्योंकि वो आंदोलन के जरिए अभी अपनी राजनीति चमका रहे हैं। उनके समर्थक हैं। उनके अंदर गजब की जिद्द भी देखने को मिल रही है। उनके कारनामों की चर्चा विदेशों तक हो रही है फिर भी वो उनका कसौटी पर कसा जाना अभी बाकी है।
कितना आंदोलन कितनी राजनीति
दिल्ली और दिल्ली से सटे राज्यों की सीमा पर बीते करीब आठ महीने से किसान आंदोलन के नाम पर बड़ा जमावड़ा है। लोगों को जुटाने वाले कहते हैं कि उनके समर्थन में आए लोग किसान हैं और कृषि कानूनों का विरोध कर रहे हैं। सरकार कहती है कि किसानों के नाम पर हुआ जमावड़ा दरअसल एक अराजक भीड़ है जिसने गणतंत्र दिवस पर दिल्ली में हिंसा की। इस भीड़ का किसानों से कुछ लेनादेना नहीं है। किसानों की आड़ में आंदोलन के नाम पर देशविरोधी ताना-बाना बुनकर कुछ लोग व्यवस्थाओं को अस्थिर करने का प्रयास कर रहे हैं। प्रधानमंत्री मोदी ऐसे लोगों को आंदोलनजीवी कहते हैं।
दरअसल अब उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड चुनावी मुहाने पर खड़ा है। बीते तीन चुनावों में जिसमें 2014 से दो लोकसभा और एक विधानसभा का चुनाव शामिल है यूपी और उत्तराखंड में बीजेपी ने विपक्ष की नींव हिला डाली है। सांसद विधायक छोड़िए विपक्षियों को ग्राम पंचायतों में सदस्यों तक के लाले पड़ गए। ऐसी स्थिति में 2022 का विधानसभा चुनाव विपक्ष के लिए करो या मरो की स्थिति वाला है। एक तरफ जहां सियासी दल जातिगत गोलबंदी में लगे हैं वहीं किसान, युवा, मजदूर जैसे पूरे-पूरे वर्ग भी सियासी दलों के टारगेट हैं। इसलिए सियासी दलों की तरफ से हर वो प्रयास किया जा रहा है जिससे ज्यादा से ज्यादा लोगों को अपनी तरफ आकर्षित किया जा सके।
क्या होने जा रहा है लखनऊ समेत प्रदेश में
किसान आंदोलन के नाम पर एक जमावड़ा शहर के बाहरी हिस्सों में लगाया जा सकता है। एक ऐसी स्थिति बनाई जा सकती है जिससे गांव-गांव तक चनौती पेश की जा सके। अराजकता भी संभव है। अगर दिल्ली जैसे हाई-सिक्योरिटी ज़ोन में 26 जनवरी के दिन उपद्रव हो सकता है तो राजधानी लखनऊ समेत प्रदेश के अलग अलग जिलों को टारगेट करना भी आंदोलनकारियों की रणनीति का हिस्सा हो सकता है।
खतरा इसलिए और बड़ा है क्योंकि लखनऊ में बीते दिनों अलकायदा के आतंकी पकड़े गए हैं। सिर्फ इतना ही नहीं सीएए-एनआरसी के नाम पर आगजनी और हिंसा का दौर राजधानी के जहन में अब भी ताजा है।
क्या करेगी योगी सरकार
योगी सरकार और खासतौर से मुख्यमंत्री योगी जिसे जो भाषा समझ आए उसी की भाषा में जवाब देने में यकीन रखते हैं। बीती हिंसा और अराजकता की स्थिति में योगी सरकार ने सार्वजनिक और निजी संपत्ति के नुकसान की भरपाई कानून बनाकर गुनहगारों से वसूली। बाकयदा शहर में उनके पोस्टर तक चस्पा किए गए।
जिस तरह की चुनौती है उससे निपटने के लिए खुद मुख्यमंत्री योगी पहले ही प्रदेश की जनता को आगाह कर चुके हैं कि किसी के बहकावे में ना आएं। अगर अराजक स्थिति बनी और हिंसा या सार्वजनिक या निजी संपत्ति को निशाना बनाया गया तो उसकी भरपाई जांच में दोषी पाए गए लोगों की संपत्ति कुर्क करके की जाएगी।
टीम स्टेट टुडे
Comments