महंत नरेंद्र गिरि दुनिया से चले गए। उनकी मृत्यु हत्या और आत्महत्या के बीच जांच के दायरे में भले हो लेकिन उन्होंने जो बचाने के लिए प्राण छोड़े उसकी कल्पना अब तक आपने नहीं की है। उनके खिलाफ षडयंत्र तो दस वर्ष पूर्व ही शुरु हो गए थे।
ये भी सच है कि अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष महंत नरेंद्र गिरि का मन बीते कुछ समय से अशांत था। अशांति का कारण उनके शिष्य रहे आनंद गिरि से उनका विवाद था।
ये विवाद की नींव करीब दस साल पहले पड़ी। महंत नरेंद्र गिरि ने अपना उत्तराधिकारी आनंद गिरि को बनाया और वसीयत उनके नाम की। आनंद गिरि जो कम उम्र से ही महंत नरेंद्र गिरि के पास आ गए थे उन्हें तैयार तो संत के रुप में किया गया परंतु जिस मोह-माया का त्याग संत को सबसे पहले करना होता है...आनंद गिरि उसी भंवर में सबसे पहले फंस गए।
ये सच है कि निरंजनी अखाड़ा, बाघम्बरी गद्दी और प्रयागराज में संगम तीरे लेटे हुए बड़े हनुमान जी के मंदिर में जितना चढ़ावा आता है उसकी कल्पना किसी भी सामान्य मनुष्य की सोच से बाहर है।
यूं भी सनातनी सभ्यता के ध्वजवाहक हिंदू समाज के अखाड़े धनबल-जनबल और अपार बुद्धिबल के भंडार हैं जिस पर हिंदू समाज की धुरी घूम रही है।
ऐसे में जब अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष की संदिग्ध परिस्थितियों में मृत्यु का समाचार मिले तो झटका लगना स्वाभाविक है।
चूंकि महंत नरेंद्र गिरि की मृत्यु संदेह के दायरे में हैं, मौके से एक सुसाइड नोट मिला है, पुलिस जांच कर ही है, एसआईटी गठित की गई है ऐसे में दावे से तो कुछ कहना जल्दबाजी होगी लेकिन अपने शिष्य के साथ विवाद के चलते जो स्थितियां पैदा हो रहीं थी उसमें महंत प्राण छोड़ने के बावजूद एक ऐसे सत्य का भरोसा बचा ले गए जिसे जान कर आप महंत नरेंद्र गिरि को बारंबार प्रणाम करेंगे।
जो सुसाइड नोट मिला उसमें क्या है
महंत नरेंद्र गिरि की मृत्यु के समाचार के साथ ही कथित तौर पर उनका लिखा 11 पेज का सुसाइड नोट सामने आया था। जिसका मजमून एक दिन बाद सार्वजनिक हुआ है। इसमें महंत नरेंद्र गिरि ने बताया है कि आखिर किन कारणों से वे आत्महत्या करने को मजबूर हुए और अपने इस कदम के पीछे वे किसे जिम्मेदार मानते हैं।
सात बार आत्महत्या का जिक्र
महंत नरेंद्र गिरि के लिखे सुसाइड नोट में सात बार आत्महत्या शब्द का जिक्र है। उन्होंने लिखा है, ''मैं महंत नरेंद्र गिरि वैसे तो 13 सितंबर 2021 को आत्महत्या करने जा रहा था, लेकिन हिम्मत नहीं कर पाया। आज जब हरिद्वार से सूचना मिली कि एक-दो दिन में आनंद गिरि कम्प्यूटर के माध्यम से मोबाइल से किसी लड़की या महिला के गलत काम करते हुए मेरी फोटो लगाकर फोटो वायरल कर देगा तो मैंने सोचा कहां-कहां सफाई दूंगा, एक बार तो बदनाम हो जाऊंगा। सच्चाई तो लोगों को बाद में पता चल जाएगी, लेकिन मेरा नाम बदनाम हो जाएगा।'' मैं जिस पद पर हूं वो गरिमामई पद है।
उन्होंने लिखा, ''...मैं पहले ही आत्महत्या करने जा रहा था, लेकिन हिम्मत नहीं कर पा रहा था। आज मैं हिम्मत हार गया और आत्महत्या कर रहा हूं। प्रयागराज के सभी पुलिस अधिकारी और प्रशासनिक अधिकारियों से अनुरोध करता हूं कि मेरी आत्महत्या के जिम्मेदार उपरोक्त लोगों पर कार्रवाई की जाए, जिससे मेरी आत्मा को शांति मिले।''
14 बार आनंद गिरि का जिक्र
इस सुसाइड नोट में महंत नरेंद्र गिरि ने आनंद गिरि के साथ आद्या प्रसाद तिवारी और उनके बेटे संदीप तिवारी का जिक्र किया है। हालांकि, आनंद गिरि का जिक्र सबसे ज्यादा 14 बार किया है। उन्होंने लिखा, ''जबसे आनंद गिरि ने मेरे ऊपर असत्य, मिथ्या, मनगढ़ंत आरोप लगाया, तब से मैं मानसिक दबाव में जी रहा हूं। जब भी मैं एकांत में रहता हूं, मर जाने की इच्छा होती है।''
आनंद गिरि के बारे में और क्या आरोप लगाए?
'आनंद गिरि, आद्या प्रसाद तिवारी और संदीप तिवारी ने मिलकर मेरे साथ विश्वासघात किया। जान से मारने का प्रयास किया।'
'सोशल मीडिया, फेसबुक और समाचार पत्रों में आनंद गिरि ने मेरे चरित्र के ऊपर मनगढ़ंत आरोप लगाए। मैं मरने जा रहा हूं।'
'आनंद गिरि द्वारा जो भी आरोप लगाए गए, उससे मेरी और मठ-मंदिर की बदनामी हुई। मैं बहुत आहत हूं। मैं आत्महत्या करने जा रहा हूं।'
'मेरे मरने की सम्पूर्ण जिम्मेदार आनंद गिरि, आद्या प्रसाद तिवारी, जो मंदिर में पुजारी है, आद्या प्रसाद तिवारी का बेटा संदीप तिवारी की होगी।'
'मैं समाज में हमेशा शान से जिया, लेकिन आनंद गिरि मुझे गलत तरीके से बदनाम किया।'
'एक ऑडियो कैसेट आनंद गिरि ने जारी किया था, उससे मेरी बदनामी हुई। आज मैं हिम्मत हार गया और आत्महत्या कर रहा हूं।'
दो पेन का इस्तेमाल
सुसाइड नोट देखकर लगता है कि इसे लिखने में दो अलग-अलग पेन का इस्तेमाल किया गया है। वहीं, 11 में से 10 पन्नों में तो उन्होंने आखिर में 'महंत नरेन्द्र गिरि' लिखकर दस्तखत किए हैं, लेकिन एक पन्ने के आखिर में उन्होंने 'म नरेन्द्र गिरि' लिखा है। पुलिस इस सुसाइड नोट की लिखावट की जांच कर रही है।
सुसाइड नोट में उनके बाद गद्दी की जिम्मेदारी बलवीर गिरि को सौंपने का भी जिक्र है। बलवीर गिरि इस समय निरंजनी अखाड़े के उप महंत हैं और हरिद्वार स्थित बिल्केश्वर महादेव मंदिर की व्यवस्था का संचालन करते हैं। महंत नरेंद्र गिरि जब अपने शिष्य आनंद गिरि से नाराज हो गए थे तो उन्होंने जो 10 वर्ष पूर्व वसीयत आनंद गिरि के नाम की थी, उसको उन्होंने रद्द कर दिया था।
वर्तमान परिस्थिति में ये कहना गलत नहीं होगा कि 10 साल पूर्व आनंद गिरि को उत्तराधिकारी बनाने के बाद वो उस पद की गरिमा पर खरे नहीं उतरे और अयोग्य साबित हुए। गुरु ने अपनी भूल का सुधार किया तो उनके खिलाफ आरोपों और षडयंत्रों की पराकाष्ठा हो गई।
सुसाइड नोट में लिखी बातें किसी अन्य ने लिखीं या खुद महंत नरेंद्र गिरि ने यह भी अभी जांच का ही विषय है। महंत नरेंद्र गिरि के शिष्य आनंद गिरि के साथ उनके विवाद की जद भले संपत्ति के इर्द गिर्द हो लेकिन इसी जद को तोड़कर सीमाओं के पार मर्यादाओं की सीमा लांघकर अगर महंत नरेंद्र गिरि की सुसाइड नोट के अनुसार बदनामी होती तो सबसे बड़ा धक्का हिंदू समाज को लगता।
सनातन हिंदू समाज की धर्म ध्वजा अखाड़ों के पास सुरक्षित है। धर्म की रक्षा के लिए ही आदि गुरु शंकराचार्य ने अखाड़ों की स्थापना की थी। शुरुआत में चार अखाड़े आज तेरह अखाड़ों में बदल चुके हैं बावजूद इसके सबमें आस्था बराबर है।
ऐसे में आनंद गिरि अपने गुरु को नीचा दिखाने, अपमानित करने या संपत्ति के लोभ में कोई भी ऐसा काम करते जिससे महंत की गद्दी पर भरोसा डोलता तो हिंदू समाज के लिए बड़ा धक्का होता।
इसीलिए एक संत के प्राण भले संदेहप्रद स्थितियों में छूटे हों लेकिन एक ऐसा कालखंड जो पूरे हिंदू समाज की आस्था और छवि को अपना ग्रास बना लेता उससे महंत अपने साथ ले गए।
रही बात आनंद गिरि और अन्य की तो ये सच है कि दानव भी अपनी भक्ति से पहले देवता को प्रसन्न कर शक्ति हासिल करते थे फिर अपना असली रुप दिखाते थे।
ऐसे स्थिति में भगवान कोई अवतार लेकर दानव दलन करते थे लेकिन वर्तमान कलयुग में ये भरपाई एक देवतुल्य संत ने प्राण छोड़ कर की है शेष काम देश का कानून करेगा।
टीम स्टेट टुडे
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