अगर आप पर कोई गोली चलाए या पत्थर चलाए तो आप क्या करेंगे?
जाहिर है बचने की कोशिश करेंगे, झुक जाएंगे, अपनी जगह से हट जाएंगे। हर हाल में हमले से बचने की कोशिश करेंगे।
आपको जान कर हैरानी होगी लेकिन ये बात वैज्ञानिक रुप से प्रमाणित हुई है कि अगर पेड़ों पर गोली चलाई जाए या पत्थर फेंके जाएं तो वो भी बचने की कोशिश करते हैं। वो भी अपनी जगह से हटने का प्रयास करते हैं। परतुं ये प्रक्रिया इतनी धीमी होती है कि इसमें दशकों लग जाते हैं।
सिर्फ इतनी ही नहीं अक्सर इंसान उन स्थानों को छोड़ देता है जहां उसके लिए जीवन अनुकूल नहीं रह जाता। अगर किसी को गर्मी नहीं बर्दाश्त होती तो वो गर्म जगह पर जाने से परहेज करता है इसी प्रकार ठंड बर्दाश्त ना कर पाने वाले लोग शीत प्रदेशों में जाने से बचते हैं।
इसी प्रकार पेड़ भी अपने अनुकूल जगह की तलाश में यानी जिंदा बने रहने के लिए अपनी जगह से विस्थापित होते हैं।
वैज्ञानिकों का मानना है कि पेड़ हिम युग से अपनी जगह में परिवर्तन कर रहे हैं। जब उनके नियत स्थान पर उन्हें जीवन कमी होने लगती है तो धीरे धीरे वो उस स्थान पर पलायन करते हैं जहां उनके अनुकूल वाताकरण हो। 2019 के आंकड़ों के अनुसार आईयूसीएन (प्रकृति संरक्षण के लिए अंतर्राष्ट्रीय संघ) रेड लिस्ट में पेड़ों की 20 हजार से अधिक प्रजातियों को खतरे में बताया गया था और 1400 से अधिक प्रजातियों को अत्यधिक गंभीर श्रेणी में रखा गया था।
न्यूयॉर्क में ब्लैक रॉक फॉरेस्ट है। यहां वैज्ञानिक यह जानने के लिए प्रयोग कर रहे हैं कि पेड़ों का विस्थापन क्यों और कैसे होता है। इसके लिए प्लांट इकोफिजियोलॉजिस्ट एंजी पैटरसन पेड़ों को गोली मार रही हैं। पैटरसन कहती हैं कि जिन पत्तियों पर वह गोली मार रही हैं उनसे उन्हें वह डाटा मिलेगा उससे पता चलेगा कि खतरे में आने पर पेड़ क्या बर्ताव करते हैं।
वैसे आप को बता दें कि पेड़ों में विस्थापन होता है। ये प्रमाणित हो चुका है। विस्थापन की प्रक्रिया बहुत धीमी लेकिन प्रकृति के लिए बेहद महत्वपूर्ण होती है।
अब तक के अध्ययन से वैज्ञानिकों का कहना है कि पेड़ हर 10 साल में 10 से 20 किलोमीटर तक विस्थापित हो सकते हैं। इसके अलग-अलग तरीके हो सकते हैं। इस तरह के विस्थापन पूरी दुनिया में देखे गए हैं।
वर्तमान समय में दुनिया भर में जलवायु परिवर्तन, विभिन्न प्रकार के प्रदूषण और ग्लोबल वार्मिंग जैसे कारणों की वजह से पेड़ों के विस्थापन में गंभीर समस्या देखने को मिली है।
जैव विविधिता के संरक्षण के लिए 'सहायक प्रवास' की रणनीति का रुख किया जा रहा है। इसमें पौधों को नए नए स्थानों पर लगाना होता है। बढ़ता तापमान वैश्विक पर्यावरण संस्थानों को यह सोचने पर मजबूर कर सकता है कि क्या बचाना है और क्या नहीं।
वर्तमान शोध से यह भी स्पष्ट होगा कि जब कुदरत में जड़ माने जाने वाला जीवन विविध कारणों से अपने भीतर परिवर्तन ला रहा है तो ये प्रक्रिया इंसानों के लिए कैसी होगी। इंसान अपने ही पैदा किए हुए कारणों के साथ कितनी देर पर खुद के विस्थापन से बच पाएगा।
टीम स्टेट टुडे
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