गौवंशों को लेकर जन जन की चिंता जगजाहिर है। सीमावर्ती जिले बहराइच में संचालित गोआश्रय स्थलों में संरक्षित गोवंशो के लिये हरे चारे की भरपूर व्यवस्था के लिये जिलाधिकारी ने बाहर से नेपियर घास मंगवाकर चारे का संकट दूर करने का मास्टर प्लान तैयार किया है। कुमारगंज कृषि विश्वविद्यालय एवं शोध संस्थान से नेपियर घास मंगाई गई। निराश्रित गौवंशों के लिये बहराइच के DM ने बड़ा प्रयास कियाहै। गौवंशों के चारे का संकट नेपियर घास से दूर किया जाएगा
जिले में 100 हेक्टेयर क्षेत्रफल में नेपियर घास की बोआई का अभियान जिलाधिकारी डॉ .दिनेश चन्द्र की अगुवाई में आरंभ हुआ। जिलाधिकारी ने विधिवत पूजा अर्चना के साथ तहसील पयागपुर के फरदा त्रिकोलिया ग्राम में अपने हाथों से नेपियर घास की बोआई की।
इस अवसर पर जिलाधिकारी ने बताया कि कि यह घास गोआश्रय स्थल में संरक्षित गोवंशो के लिए बहुत उपयोगी होगी। एक बार नेपियर घास की बुवाई करने के बाद अगले 5 सालों तक हरे चारे की कटाई पशुपालक कर सकते हैं। गन्ने की फसल की तरह इसकी बुवाई और कटाई हर मौसम में कर सकते हैं। इससे गोवंशो को हमेशा हरा चारा मिल सकेगा। उन्होंने यह भी बताया कि नेपियर घास को छोटे काश्तकार किसान भी अपनी भूमि पर उगा सकते हैं। नेपियर घास के नर्सरी की भी व्यवस्था जिले में जल्द की जायेगी।
मुख्य पशुचिकित्सा अधिकारी (CVO) डा. बलवन्त सिंह ने नेपियर घास की विशेषता की जानकारी देते हुए बताया कि नेपियर घास 20 से 25 दिन में तैयार हो जाती है। एक बार घास की कटाई करने के बाद उसकी शाखाएं पुनः फैलने लगती है। यह घास 05 सालों तक हरे चारे की व्यवस्था करती रहती है। पहली बार लगाने पर 45 दिन का समय लेती है इसके पश्चात् 25 दिन के अन्तराल पर इसकी कटाई की जा सकती है। इसमें 7 से 12 प्रतिशत तक प्रोटीन, 14 प्रतिशत रेशा तथा कैल्शियम व फासफोरस की प्राचुर मात्रा रहती है।
इसके उपरान्त जिलाधिकारी ने त्रिकोलिया फरदा ग्राम में स्थापित अस्थाई गोआश्रय स्थल के सुदृढ़ीकरण कार्य का फीता काटकर एवं आधार शिला रखकर शुभारम्भ किया इसके पश्चात् गोआश्रय स्थल में संरक्षित गोवंशो को अपने हाथों गुड़ व चारा खिलाकर गोसेवा का धर्म निभाया।
टीम स्टेट टुडे
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