लखनऊ, 10 मार्च 2022 : अटकलों का दौर खत्म और चुनाव परिणाम सभी के सामने है. आंकड़ों की बाजी में बीजेपी ने 37 साल बाद एक बार फिर इतिहास रचा है, जब पांच साल का कार्यकाल पूरा करने के बाद बीजेपी दोबारा से सत्ता में वापसी कर रही है. इन चुनाव परिणामों ने नोएडा को लेकर एक मिथक को भी खत्म कर दिया कि जो मुख्यमंत्री नोएडा आता है, वो प्रदेश में दोबारा सत्ता में नहीं आता…..
इन चुनाव परिणामों ने मोदी-शाह के बाद, बीजेपी की राष्ट्रीय राजनीति में ब्रांड योगी युग की भी शुरूआत कर दी है. साथ ही, जब प्रचार के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने योगी को प्रदेश के लिए उपयोगी के तौर पर प्रोजेक्ट किया था, वह घोषणा भी सही साबित हुई. बीजेपी की इस जीत को कुछ आंकड़ों के जरिए समझने में आसानी होगी. सबसे बड़ी बात यह है कि पांच साल सत्ता में रहने के बाद भी बीजेपी ने 2017 के अपने मत प्रतिशत को बरकरार रखा है. अमूमन पिछले तीन दशक में ऐसा कभी देखने को नहीं मिला. अगर 2017 विधानसभा चुनावों की बात करें, तो पिछली बार बीजेपी को अपने साथियों समेत 41 फीसदी से थोड़ा अधिक वोट मिले थे, लेकिन इस बार बीजेपी को अकेले 42 फीसदी के आस-पास वोट मिले हैं. उधर समाजवादी पार्टी को करीब 32 फीसदी के आस-पास वोट मिले हैं. ऐसे में दोनों पार्टियों में मत का अंतर दस फीसदी का रहा, जो उत्तर प्रदेश जैसे राज्य के लिए काफी महत्वपूर्ण है.
प्रदेश में करीब 19 जिले ऐसे रहे, जहां बीजेपी ने एकतरफा जीत दर्ज की है. अगर, 2017 के विधानसभा चुनावों को देखें, तो समाजवादी पार्टी और बसपा को 22-22 फीसदी के करीब वोट मिले थे. लेकिन इस बार, बसपा का वोट प्रतिशत 22 फीसदी से घटकर करीब साढ़े 12 फीसदी पर गिरता दिख रहा है, जिसका सीधा लाभ समाजवादी पार्टी को मिलता दिख रहा है. इंडिया-टुडे-एक्सिस माई इंडिया के एक्जिट पोल के आंकड़ों में यह दिखा था कि बसपा के कमजोर होने के कारण, मुस्लिम मतदाता एकजुट होकर सपा गठबंधन के साथ दिखा और इसका लाभ पश्चिम उत्तर प्रदेश, रोहिलखंड, दोआब और कुछ हद तक पूर्वांचल में भी सपा के पक्ष में देखने को मिला.
मुद्दों की लड़ाई, उन पर बहस और उस आधार पर मतदाताओं के रुझान का वक्त खत्म हो चुका है, क्योंकि अब परिणाम सामने हैं. किसान आंदोलन, बेरोजगारी, आवारा पशु, महंगाई, कोरोना और धार्मिक धुव्रीकरण जैसे मुद्दों के इर्द-गिर्द विपक्ष ने अपना अभियान शुरू किया था. अगर चुनाव परिणामों पर नजर डालें तो यह स्पष्ट है कि मोदी-योगी ब्रांड, राशन और सुशासन ने बीजेपी को इतिहास रचने में काफी मदद पहुंचाई है. विपक्ष ने लखीमपुर खीरी की घटना को बड़ा मुद्दा बनाया, लेकिन बीजेपी ने वहां सभी आठ सीटों पर बढ़त हासिल की. यही नहीं, हाथरस में बलात्कार की घटना को लेकर योगी आदित्यनाथ को भी काफी घेरने की कोशिश हुई, लेकिन वहां भी बीजेपी ने अपना दबदबा कायम रखा. हालांकि बीजेपी ने कानून-व्यवस्था को बड़ा मुद्दा बनाया, लेकिन मऊ में मुख्तार अंसारी के बेटे अब्बास अंसारी, कैराना से नाहिद हसन और रामपुर से आजम खां और उनके बेटे अब्दुल्ला आजम ने अपना दबदबा कायम रखा.
हालांकि, बीजेपी को पश्चिम उत्तर प्रदेश में जाट-मुस्लिम गठजोड़ से कुछ खतरा जरूर दिखा. किसान आंदोलन और गन्ना किसानों के बकायों का मसला बीजेपी के लिए चिंता का विषय बना हुआ था और परिणामों पर भी कुछ हद तक असर तो जरूर दिखा, लेकिन उतना नहीं, जितनी विपक्ष की अपेक्षा थी. जयंत चौधरी की राष्ट्रीय लोकदल ने जिस तरीके से मुजफ्फरनगर, बागपात, बड़ौत, छपरौली, बुढ़ाना, खतौली, रामपुर में बढ़त बनाई और बीजेपी को नुकसान दिखा, उससे साफ था कि बीजेपी की ध्रुवीकरण की राजनीति उतनी कारगर नहीं रही. हालांकि शामली, मेरठ, मथुरा, आगरा, हाथरस जैसी सीटों पर बीजेपी के प्रदर्शन ने इस आशंका को भी खारिज कर दिया कि जाट बड़ी संख्या में बीजेपी से नाराज थे और पार्टी को पहले चरण में भारी नुकसान झेलना पड़ा।
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