अफगानिस्तान की तालिबानी सरकार सिर्फ मुखौटा है। आपको यकीन हो या ना हो, हकीकत यही है। अमेरिका की अफगानिस्तान से जिस तेजी के साथ वापसी हुई वो दुनिया के लिए भले एक पहेली हो लेकिन इसके पीछे पाकिस्तान की आईएसआई की बिछाई बिसात थी।
दरअसल तालिबान की आड़ में अलकायदा और दुनिया के अन्य आतंकी संगठनों का एक गुप्त करार पाकिस्तान के साथ हुआ है। अफगानिस्तान से अमेरिका की तेज रुखसती दरअसल दुनिया के आतंकी संगठनों को पाकिस्तान का ऐसा गिफ्ट है जिसे वो अमेरिका से ओसामा बिन लादेन का बदला बता रहा है।
किसको क्या मिलेगा
इसी गिफ्ट की आड़ में अफगानिस्तान से अमेरिका को निकाल कर ग्रेटर पाकिस्तान की रुपरेखा तैयार की गई है। इस खेल में चीन ने पाकिस्तान को बैकअप दिया है।
वैसे आईएसआई के सीक्रेट मिशन में ग्रेटर पाकिस्तान भारत की तरफ था। आप गूगल पर ग्रेटर पाकिस्तान डालेंगे तो इससे जुड़े तमाम लिंक भारत की तरफ ही आपको दिखेंगें। परंतु भारत में 2014 के बाद से पाकिस्तान जिस तरह सर्जिकल स्ट्राइक के जरिए मुंह के बल गिरा और दुनिया में उसकी थू-थू हुई इसके बाद उसने अपनी रणनीति बदल दी।
ग्रेटर पाकिस्तान का रणनीति बदली
अब अफगानिस्तान को वो ग्रेटर पाकिस्तान के तौर पर लेगा और भारत में तालिबानी, अलकायदा और अन्य आतंकी संगठनों के लड़ाकों को आतंक फैलाने के लिए आगे कर उस वक्त तक इंतजार करेगा जब तक भारत के भीतर रह रहे मुस्लिम विद्रोह कर भारत के टुकड़े करने पर विवश ना कर दें।
किसे लगाया काम पर
इस काम के लिए पाकिस्तान ने भारत के टुकड़े कर पाकिस्तान बनाने की सबसे पहले मांग करने वाले शायर अल्लामा इकबाल की तर्ज पर भारत के मौजूदा शायरों, गीतकारों, फनकारों और कलाकारों के साथ साथ अहम ओहदों पर रहे मुस्लिमों की फौज खड़ी भी कर दी है। जो अक्सर सेक्युलरिज्म की चादर ओढ़ कर विष भरे बयान देते रहते हैं। ऐसे लोगों में पूर्व उप राष्ट्रपति हामिद अंसारी, शायर और गीतकार जावेद अख्तर, गुलजार, मुनव्वर राणा, आमिर खान, सैफ अली खान, आदि का नाम सबसे ऊपर है।
धंधा है -गंदा है
धंधे के लिहाज से तय हुआ है कि चीन, अफगानिस्तान की खनिज संपदा और अन्य संसाधनों का दोहन कर अपनी अर्थव्यवस्था को मजबूत करेगा। पाकिस्तान का काम दुनिया के देशों को आतंक और आतंकवाद के नाम पर ब्लैकमेल करने का है बदले में उसे यानी आईएसआई को रकम मिलेगा और तालिबान स्वयं अफगानिस्तान में क्रूरता के ऐसे अध्याय लिख रहा है जिसे सभ्य समाज वायरल वीडियो में भी पूरा देखने से पहले बंद करना ही बेहतर समझता है। कुल मिलाकर हैवानियत को बेच कर इंसानियत का धंधा करने का ये षडयंत्र है।
तालिबान बदल गया है इस पूरी साजिश का सबसे बड़ा प्रोपोगेंडा ट्रेडमार्क है।
आतंक और आतंकियों पर पाकिस्तान का नियंत्रण
अफगानिस्तान की तालीबानी सरकार में पाकिस्तानी चेहरे अब किसी से छिपे नहीं हैं। सिर्फ इतना ही नहीं अलग अलग आतंकी गुटों से बनी तालिबानी सरकार पर पाकिस्तान का पूरा नियंत्रण रहे इसके लिए पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आतंकियों की माईबाप बन कर बैठी है। यानी आतंकियों की सरकार का हैंडलर हर हाल में पाकिस्तान ही है। बात यहीं खत्म नहीं होता अल जवाहिरी जिंदा है और उसका वीडियो दुनिया के सामने आ चुका है। इससे आगे तालिबानी सरकार के आतंकी गुटों के आकाओं को अपनी मुट्ठी में रखने के लिए पाकिस्तान उन्हें कठपुतली की तरह नचा रहा है।
फिर चाहे मुल्ला बारादर की मौत की झूठी खबर हो या अफगान सरकार गठन के वक्त बरादर और हक्कानी नेटवर्क के एक मंत्री और वरिष्ठ नेता खलील-उर-रहमान हक्कानी सत्ता के बंटवारे को लेकर तीखी बहस। हर काम पाकिस्तान के इशारे पर हुआ। हालात ऐसे हैं कि पाकिस्तान के इशारे में सरकार में शामिल आतंकी संगठनों के आका जो दरअसल आतंकी ही हैं वो सब एक दूसरे के खून के प्यासे हो जाते हैं। एक दूसरे की जान ले लेना इनके लिए मामूली बात है।
वर्तमान में अफगानिस्तान में हक्कानी गुट का काफी प्रभाव है। एक समय इसे अमरीकी खुफिया एजेंसी सीआईए का समर्थन हासिल था, उस वक्त यह गुट पूर्व सोवियत संघ के खिलाफ लड़ रहा था। हालांकि, बाद में हक्कानी नेटवर्क बड़ा पश्चिम विरोधी गुट बनकर उभरा। हक्कानी गुट पर आरोप है कि अफगानिस्तान में सरकारी, भारतीय और पश्चिमी देशों के ठिकानों पर उसने कई बड़े हमले किए हैं।
पाकिस्तानी अधिकारी हक्कानी नेटवर्क को मुख्यत अफगान चरमपंथी गुट बताते हैं। लेकिन इसकी जड़े पाकिस्तान के अंदर तक फैली हैं। पाकिस्तानी सुरक्षा तंत्र में कुछ लोगों में इसकी खास पैठ है। हक्कानी नेटवर्क के मुखिया जलालुद्दीन हक्कानी है।
हक्कानी गुट के लड़ाके पाकिस्तानी की आइएसआइ के भी पसंदीदा कमांडर हैं। एक दौर था जब खुफिया पाक एजेंसी यह तय करती थी कि पूर्व सोवियत संघ से लड़ने के लिए किस कमांडर को कितना पैसा और हथियार मिलेंगे। पाकिस्तान आज भी यही काम कर रहा है।
मौके का फायदा
फर्क सिर्फ इतना है कि चीन से निकले कोरोना वायरस के चलते दुनिया की बड़ी बड़ी अर्थव्यवस्थाएं पहले ही ध्वस्त हो चुकी हैं और उबरने की कोशिश कर रही हैं। अमेरिका, यूरोप के लगभग सभी देश, जापान, ब्रिटेन सभी चाइनीज़ वायरस के कारण घुटने पर हैं। ऐसे में वैश्विक आतंक से निपटना किसी भी देश के लिए आत्मघाती कदम उठाने जैसा होगा वो भी तब जब अमेरिका हालही में अफगानिस्तान छोड़ कर भागा है।
अब पाकिस्तान एक तरफ अफगानिस्तान से दलाली खाएगा तो दूसरी तरफ तालिबानी लड़ाकों का सहारा लेकर भारत के खिलाफ पुरजोर षडयंत्र करेगा।
भारत की समस्या
ऐसे में भारत के सामने एक साथ कई मोर्चे खुल सकते हैं। चीन और पाकिस्तान तो भारत के लिए खतरा हैं ही सबसे बड़ा डर भारत के भीतर रह रही ऐसी मुस्लिम आबादी है जो मौका पाते ही गद्दारी से चूकेगी नहीं। इसके नमूना महत्वपूर्ण पदों पर रहे मुस्लिम नुमाइंदे तो दे ही रहे हैं वो भी पीछे नहीं हैं जिन्हें सेलिब्रिटी कहा जाता है और उनके डी कंपनी से रिश्ते किसी से छिपे नहीं हैं।
टीम स्टेट टुडे
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