भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी देश के विकास को गति देने के लिए अपने हाथों की संख्या बढ़ाने जा रहे हैं। सीधे सपाट शब्दों में कहें तो मोदी मंत्रिमंडल का विस्तार होने जा रहा है। इससे साथ ही आठ राज्यों में राज्यपाल भी बदल दिए गए।
कौन-कौन से चेहरे बनेंगे मोदी के हाथ
नारायण राणे, ज्योतिरादित्य सिंधिया, अजय मिश्रा, सकलदीप राजभर, सर्वानंद सोनोवाल को दिल्ली बुलाया गया है। अनुप्रिया पटेल को भी दिल्ली में बने रहने को कहा गया है।
किस राज्य की कितनी हिस्सेदारी
कर्नाटक में 2023 में चुनाव हैं। वहां से किसी सांसद को मंत्री बनाया जा सकता है। बंगाल से पार्टी के अध्यक्ष दिलीप घोष को सरकार में लाया जा सकता है या उत्तर बंगाल से पार्टी का प्रतिनिधित्व कर रहे मतुआ समुदाय के शांतनु ठाकुर को राज्यमंत्री बनाया जा सकता है। लद्दाख से युवा सांसद जामयांग नामग्याल को भी केंद्र सरकार में लाने की संभावना है। उत्तर प्रदेश के आगामी विधानसभा चुनाव से पहले ओबीसी प्रतिनिधित्व बढ़ेगा। बिहार को भी बड़ा हिस्सा मिल सकता है। उत्तर प्रदेश के हर प्रमुख जातिसमूह से केंद्र में कोई न कोई प्रतिनिधि होगा। अन्य में सहयोगी दलों को भी शामिल किया जा सकता है।
सहयोगी दलों के लिहाज से
प्रधानमंत्री मंत्रिमंडल में जद(यू), एलजेपी, अपना दल, कांग्रेस (वाईएसआर), अन्नाद्रमुक समेत सभी सहयोगी दलों की भागेदारी सुनिश्चित कर सकते हैं। इस क्रम में जेडीयू के कोटे से तीन मंत्री बनाया जाना करीब-करीब तय माना जा रहा है। एलजेपी से पशुपति राम पारस मंत्रिमंडल में शामिल किए जा सकते हैं।
मंत्रिमंडल विस्तार में कैसे सधेगा संतुलन
मोदी सरकार पार्ट 2 के पहले विस्तार में राजनीतिक समीकरण के लिहाज से जातीय और क्षेत्रीय संतुलन तो होगा। साथ ही युवा, अनुभवी, शिक्षित और ब्यूरोक्रेट व टेक्नोक्रेट भी पसंद में शामिल होंगे। जातीय समीकरण के खांचे में भी पूर्व आइएएस, आइएफएस, इंजीनियर आदि कैबिनेट का हिस्सा बनेंगे।
इस विस्तार के बाद केंद्र सरकार में दो दर्जन से ज्यादा मंत्री ओबीसी होंगे। युवाओं का भी प्रतिनिधित्व बढ़ेगा, जिससे मंत्रिमंडल के सदस्यों की औसत आयु काफी कम हो जाएगी।
इस विस्तार में अनुभव को सबसे ऊपर रखने की बात कही जा रही है। ऐसे में राज्यों में बतौर मुख्यमंत्री जिम्मेदारी संभाल चुके और राज्य सरकारों में लंबे समय तक मंत्री पद संभाल चुके नेता प्राथमिकता में हैं।
एससी, एसटी, ओबीसी और मोदी मंत्रिमंडल
मोदी सरकार की योजनाओं और राजनीतिक दांव के केंद्र में अनुसूचित जाति, जनजाति और ओबीसी शुरू से रहे हैं। पूरे देश और खासकर उत्तर प्रदेश की राजनीति में ओबीसी का खासा प्रभाव है। ऐसे में ओबीसी मंत्रियों की संख्या 25 हो सकती है।
वर्तमान कैबिनेट में डेढ़ दर्जन से कम ओबीसी मंत्री हैं। अनुसूचित जाति और जनजाति का प्रतिनिधित्व भी बढ़ेगा।
क्या है मंत्रिपरिषद की स्थिति
मोदी सरकार की केंद्रीय कैबिनेट में 81 मंत्री हो सकते हैं। अभी 28 पद खाली हैं। करीब छ मंत्रियों के पास दो से भी ज्यादा मंत्रालय हैं। दुर्घटना में घायल होने के बाद से आयुष मंत्री श्रीपद येस्सो नायक का मंत्रालय भी दूसरे के पास है।
मौजूदा 'ब्यूरोक्रेट' मंत्री
विदेश मंत्री एस जयशंकर, बिजली मंत्री आरके सिंह और केंद्रीय शहरी विकास राज्यमंत्री हरदीप सिंह पुरी ऐसे मंत्री हैं, जो पहले ब्यूरोक्रेसी का हिस्सा रहे हैं।
एक गणित राज्यसभा का
केंद्रीय सामाजिक न्याय मंत्री थावरचंद गहलोत को मंगलवार को कर्नाटक का राज्यपाल बनाया गया। गहलोत का राज्यसभा में कार्यकाल अप्रैल 2024 तक था। इस लिहाज से मंत्रिपरिषद विस्तार में किसी ऐसे शख्स को भी शामिल किया जा सकता है जो न राज्यसभा का सदस्य हो और न ही लोकसभा का। उसे बाद में गहलोत के बाकी बचे कार्यकाल के लिए राज्यसभा लाया जा सकता है।
अटकल का बाजार
दिनेश त्रिवेदी न तो राज्यसभा के सदस्य हैं और न ही लोकसभा के। टीएमसी से बीजेपी में आए त्रिवेदी ने तो सदन की कार्यवाही के दौरान ही राज्यसभा से इस्तीफे का ऐलान किया था। जितिन प्रसाद भी ऐसा ही एक नाम हैं लेकिन ये संभावना कम है कि उन्हें मोदी मंत्रिमंडल में इतनी जल्दी जगह मिले। उन्हें पार्टी के कार्यकर्ता के रुप में 2022 के विधानसभा चुनाव में अपनी भूमिका सिद्ध करनी होगी। दिनेश त्रिवेदी का अनुभव और बंगाल से नाता उन्हें मंत्रिपद के लिए मजबूत करता है।
किनकी अटकी हैं सांसे
वर्तमान मोदी सरकार के कुछ मंत्री ऐसे भी हैं जिनकी मंत्रिमंडल विस्तार से पहले सांसे अटक गई है। दरअसल प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पिछले कुछ सप्ताह से मंत्रिमंडल के सहयोगियों के कामकाज की समीक्षा कर रहे हैं। वह कई दौर की बैठकें कर चुके हैं। मंत्रिमंडल में फेरबदल और विस्तार के क्रम में भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा, संगठन मंत्री बीएल संतोष, गृहमंत्री अमित शाह से उनकी कई दौर की चर्चा हो चुकी है। इसी क्रम में सिर्फ 24 घंटे पहले प्रधानमंत्री ने एक बार फिर अमित शाह और अन्य सहयोगियों के साथ बैठक करके खाका तैयार किया था। इसी आधार पर मंगलवार को उन्होंने मंत्रिमंडल के सहयोगियों के साथ उच्चस्तरीय बैठक की। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, परिवहन और जहाजरानी मंत्री नितिन गड़करी से प्रधानमंत्री ने राय मशविरा किया और इसके बाद वह मंत्रिमंडल में फेरबदल तथा विस्तार का निर्णय लेने जा रहे हैं।
कैबिनेट विस्तार से पहले राज्यपाल नियुक्ति एवं परिवर्तन
थावरचंद गहलोत को कर्नाटक का राज्यपाल नियुक्त किया गया है। थावरचंद गहलोत अभी तक केंद्र सरकार में सामाजिक न्याय व अधिकारिता मंत्रालय के केंद्रीय कैबिनेट मंत्री हैं।
हरि बाबू कंभमपति को मिजोरम का राज्यपाल नियुक्त किया गया है। हरिबाबू कंभमपति विशाखापट्नम से सांसद हैं।
मंगूभाई छगनभाई पटेल को मध्य प्रदेश का राज्यपाल नियुक्त किया गया है। गुजरात सरकार में मंत्री रहे हैं। वे नवसारी से ताल्लुक रखते हैं।
राजेंद्रन विश्वनाथ अर्लेकर को हिमाचल प्रदेश का राज्यपाल नियुक्त किया गया है। ये गोवा विधानसभा के पूर्व स्पीकर हैं। 2014 में मनोहर पर्रिकर को केंद्रीय रक्षा मंत्री बनाया गया, तब गोवा के मुख्यमंत्री के तौर पर इनका भी नाम चला था। हालांकि बाद में कुर्सी लक्ष्मीकांत पारसेकर को मिली थी।
पीएस श्रीधरन पिल्लई को गोवा के राज्यपाल के रूप में स्थानांतरित और नियुक्त किया गया है। ये अभी तक मिजोरम के राज्यपाल थे। ये अंग्रेजी और मलयालम भाषा के अच्छे जानकार हैं। पिछले लॉकडाउन में इन्होंने खाली समय का सदुपयोग करते हुए 13 किताबें लिखी थीं। वे प्रख्यात वकील रहे हैं। इनकी पहली किताब 1983 में छपी थी। अब तक 105 से अधिक किताबें लिख चुके हैं।
सत्यदेव नारायण आर्य को त्रिपुरा के राज्यपाल के रूप में स्थानांतरित और नियुक्त किया गया है। ये अभी तक हरियाणा के राज्यपाल थे। इन्हें भीमराव अंबेडकर की दूरगामी सोच सामाजिक समरसता के मुख्य उदाहरण पेश करने वालीं शख्सियतों में गिना जाता है।
रमेश बैस को झारखंड के राज्यपाल के रूप में स्थानांतरित किया गया है। ये अभी तक त्रिपुरा के राज्यपाल थे। वे द्रोपदी मुर्मू की जगह लेंगे।
बंडारू दत्तात्रेय को हरियाणा का राज्यपाल नियुक्त किया गया है। बंडारू दत्तात्रेय अभी तक हिमाचल प्रदेश के राज्यपाल थे। दत्तात्रेय को उनके गृहक्षेत्र में ‘पीपुल्स लीडर’ कहा जाता है।
टीम स्टेट टुडे
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