यूं तो सियासत कब कैसे करवट लेगी कहा नहीं जा सकता लेकिन जो सियासत करते हैं और सियासत करते हुए अहम पदों तक पहुंचते हैं उनका वहां होना या ना होना सिर्फ उन्हीं पर निर्भर करता है।
मोदी मंत्रिमंडल का विस्तार हुआ है। कई नए चेहरों को मंत्रिमंडल में जगह मिली है। लेकिन 11 लोग ऐसे भी हैं जो भारत सरकार के महत्वपूर्ण मंत्रालय संभाल रहे थे और उन्हें इस्तीफा देना पड़ा है। जाहिर है इस्तीफा देने वाले मंत्री उम्मीद के मुताबिक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुवाई वाली सरकार में अपना प्रदर्शन नहीं कर सके। जिन 11 मंत्रियों का इस्तीफा हुआ है उसमें सिर्फ थावर चंद गहलोत ही ऐसे मंत्री थे जिन्होंने ना सिर्फ अपने विभाग के कामकाज में प्रधानमंत्री को किसी शिकायत का मौका नहीं दिया लेकिन उनकी बढ़ती उम्र के चलते उन्हें सम्मानजनक तरह से विदाई दी गई। 73 साल के गहलोत को कर्नाटक का राज्यपाल बनाया गया है।
कैबिनेट विस्तार से पहले जिन मंत्रियों ने इस्तीफा दिया उसमें डॉ.हर्षवर्धन, रविशंकर प्रसाद, प्रकाश जावड़ेकर, रमेश पोखरियाल निशंक, बाबुल सुप्रियों, देबोश्री चौधरी, सदानंद गौड़ा, प्रताप सारंगी, संतोष गंगवार, रतन लाल कटारिया, संजय धोत्रे, रावसाहेब दानवे और थावरचंद गहलोत का नाम शामिल है।
आपको बताते हैं क्या कारण है इन मंत्रियों के इस्तीफे का
कोरोना की लहर में डूबे डॉ. हर्षवर्धन
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री डॉ. हर्षवर्धन ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया। कहा जा रहा है कि देश में कोरोना की दूसरी लहर के दौरान स्वास्थ्य सेवाएं चरमराने की वजह से उनका पद छीन लिया गया। ये सर्वविदित है कि कोरोना की दूसरी लहर के दौरान मोदी सरकार सवालों के घेरे में आ गई, जिसका नुकसान डॉ. हर्षवर्धन को उठाना पड़ा। उनके पास विज्ञान और तकनीक मंत्रालय भी था। ऐसे में हर्षवर्धन के इस्तीफे से दो भारी-भरकम मंत्रालय खाली हो गए।
बंगाल के लिए देबोश्री का इस्तीफा
पश्चिम बंगाल की रायगंज लोकसभा सीट से भाजपा सांसद देबोश्री चौधरी ने भी अपना पद छोड़ दिया है। वह महिला एवं बाल विकास राज्य मंत्री थीं। ऐसा कहा जा रहा है कि पार्टी उनका इस्तेमाल पश्चिम बंगाल में करना चाहती है। वैसे महिला एवं बाल विकास मंत्रालय की मंत्री रहते हुए देबोश्री ने ऐसा कोई उल्लेखनीय काम नहीं किया जिसकी चर्चा आमजन के बीच हुई हो।
स्वास्थ्य कारणों से हटाए गए निशंक
उत्तराखंड की हरिद्वार लोकसभा सीट से सांसद रमेश पोखरियाल निशंक ने भी इस्तीफा दिया है। उनके पास मानव संसाधन विकास मंत्रालय का प्रभार था। कहा जा रहा है कि स्वास्थ्य संबंधी कारणों के चलते निशंक को हटाया गया। कुछ दिन पहले उन्हें कोरोना हो गया था, जिसके चलते वह करीब एक महीने तक अस्पताल में भर्ती रहे। उस दौरान शिक्षा के क्षेत्र में हालात इतने ज्यादा बिगड़ गए कि सीबीएसई पर फैसला लेने के लिए पीएम मोदी को खुद आगे आना पड़ गया था। नई शिक्षा नीति पीएम मोदी के दिल के काफी करीब है, लेकिन शिक्षा मंत्रालय उसका श्रेय सरकार को नहीं दिला पाया, जिसका नतीजा उन्हें कुर्सी गंवाकर चुकाना पड़ा।
बाबुल सुप्रियो को भारी पड़ी नाराजगी
पश्चिम बंगाल की आसनसोल लोकसभा सीट से सांसद बाबुल सुप्रियो ने भी इस्तीफा दे दिया। वह पर्यावरण मंत्रालय में राज्य मंत्री थे। पश्चिम बंगाल चुनाव में बाबुल सुप्रियों पर पार्टी ने भरोसा किया था लेकिन निराशा हाथ लगी । वो अपनी सीट भी 50 हजार वोटों से हार गए। गायक बाबुल सुप्रियों का कोई राजनीतिक अनुभव नहीं रहा है फिर भी पार्टी ने उन पर भरोसा कर दांव खेला जो बेकार चला गया।
सदानंद गौड़ा पर भी कोरोना की मार
कर्नाटक की बेंगलूरू उत्तर लोकसभा सीट से भाजपा सांसद सदानंद गौड़ा ने भी इस्तीफा दे दिया। वह रासायनिक एवं उर्वरक मंत्री थे। सदानंद गौड़ा पर कोरोना काल में हुई दवाओं की कमी को लेकर गाज गिरी है, जिसके चलते मोदी सरकार की काफी फजीहत हुई थी।
गंगवार को मिली चिट्ठी भेजने की सजा
उत्तर प्रदेश की बरेली लोकसभा सीट से सांसद संतोष गंगवार को भी पद से हटा दिया गया। वह स्वतंत्र प्रभार से श्रम एवं रोजगार मंत्री थे। कोरोना काल में संतोष गंगवार की लिखी एक चिट्ठी काफी वायरल हुई थी, जिसमें उन्होंने उत्तर प्रदेश सरकार की आलोचना की थी। माना जा रहा है कि गंगवार को उसी चिट्ठी की सजा मिली।
रतन लाल कटारिया ने भी दिया इस्तीफा
हरियाणा की अंबाला लोकसभा सीट से सांसद रतन लाल कटारिया को भी इस्तीफा देने का फरमान जारी कर दिया गया। वह जल शक्ति मंत्रालय में राज्य मंत्री थे। बताया जा रहा है कि उनकी जगह सिरसा से सांसद सुनीता दुग्गल को मंत्री बनाया जा रहा है।
प्रताप सारंगी को भी छोड़ना पड़ा पद
ओडिशा की बालासोर लोकसभा सीट से सांसद प्रताप सारंगी को भी इस्तीफा देने के लिए कहा गया है। वह सूक्ष्म, लघु और मध्यम के साथ पशुपालन, डेयरी और मत्स्य पालन मंत्रालय के राज्य मंत्री थे। सारंगी की ईमानदारी और मेहनत पर किसी को शक नहीं हो सकता लेकिन जिस तरह के मंत्रालय वो संभाल रहे हैं उसमें ना सिर्फ अधिक सक्रियता की आवश्यकता महसूस की जा रही है बल्कि ज्यादा से ज्यादा युवाओं तक इन सभी मंत्रालयों की पहुंच पकड़ पार्टी और सरकार का अगला लक्ष्य है।
बढ़ती उम्र के चलते थावरचंद का इस्तीफा
मोदी सरकार की वर्तमान कैबिनेट में सबसे उम्रदराज केंद्रीय मंत्री थावरचंद गहलोत को अपनी बढ़ती उम्र की वजह से पद छोड़ना पड़ा। हालांकि, मोदी सरकार ने उन्हें कर्नाटक का राज्यपाल बनाकर सक्रिय राजनीति से सम्मानजनक विदाई दी। मोदी सरकार अपने पहले कार्यकाल यानी 2014 से ही यह तय कर चुकी है कि वह 75 साल से ज्यादा उम्र के किसी भी मंत्री को कैबिनेट में नहीं रखेगी और गहलोत की उम्र अब 73 के पार हो गई थी।
संजय धोत्रे का इस्तीफा
शिक्षा राज्य मंत्री के रुप में संजय धोत्रे भी मंत्रालय में अपनी छाप छोड़ने में नाकाम रहे। कई मोर्चों पर सरकार को उम्मीद थी संजय धोत्रे स्थितियों को संभालेंगे लेकिन ऐसा हुआ नहीं।
रावसाहेब दानवे का इस्तीफा
ग्राहक मामलों के मंत्रालय में राज्य मंत्री रावसाहेब दानवे भी उल्लेखनीय भूमिका नहीं निभा पाए। जिसके चलते उन्हें इस्तीफा देना पड़ा।
रविशंकर प्रसाद का इस्तीफा
सूचना व प्रौद्योगिकी मंत्री रविशंकर प्रसाद को सोशल मीडिया की नई गाइडलाइंस का अनुपालन ना करा पाने का खामियाजा भुगतना पड़ा है। ट्विटर, फेसबुक, गूगल, वाट्सएप जैसी निजी विदेशी कंपनियों ने सरकार की नाक में भारतीय कानून में हुए बदलाव ना मानने को लेकर सरकार की नाक में दम कर दिया। खासतौर से ट्विटर जैसे मीडिया प्लेटफार्म ने अदालत का सहारा लेकर ना सिर्फ भारत के खिलाफ देशद्रोही षडयंत्र रचे बल्कि अब तक वो भारत सरकार के कानून मानने को तैयार नहीं है। रविशंकर प्रसाद को ये एहसास रहना चाहिए था कि वो भारत सरकार में मोदी मंत्रिमंडल के मंत्री हैं। रविशंकर प्रसाद वो हनक बनाए रखने में नाकाम रहे जिसे सरकार का इकबाल भी कहते हैं।
प्रकाश जावड़ेकर का इस्तीफा
पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर से चाहते ना चाहते कुछ ना कुछ ऐसा हो जाता था जिसे सरकार के लिए उपयुक्त नहीं कहा जा सकता। ये कुछ ना कुछ होने का संदर्भ उनके व्यक्तिगत और सामाजिक दोनों परिवेश के लिए था। हांलाकि उन्होंने बीते समय में अपने मंत्रालय की तरफ से भी ऐसा कोई उल्लेखनीय कार्य नहीं किया जिससे मोदी सरकार की उपलब्धियों में गिना जाए।
टीम स्टेट टुडे
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