हर-द्वारे काल खड़ा है, घनश्याम कहाँ हो तुम
है आर्त नाद वसुधा का, हे राम ! कहाँ हो तुम
हैं ढेर लगे लाशों के
हर ओर दिखाई देते,
मीलों तक आहों के ही
बस शोर सुनाई देते,
है काल प्रलय यह भारी, अभिराम कहाँ हो तुम
है आर्त नाद वसुधा का, हे राम ! कहाँ हो तुम
इंसान यहाँ अपनों से
भयवश मुख मोड़ रहा है,
अंतर्मन का हर साहस
जैसे रुख मोड़ रहा है,
सांसो को संबल दे वह, आराम, कहाँ हो तुम
है आर्त नाद वसुधा का, हे राम ! कहाँ हो तुम
जग जूझ रहा संकट से
छायी है विपदा भारी,
हे शम्भु समाधि तजो अब
हर लो हर दुःख कामारी,
हर कण-कण में कहते हैं, निष्काम यहाँ हो तुम
है आर्त नाद वसुधा का, हे राम ! कहाँ हो तुम
बेबस लाचार मनुज है
आँखों से बहें व्यथायें,
नदियों के घाट तटों पर
जलतीं अनगिनत चिताएँ,
मानवता है खतरे में, सुखधाम कहाँ हो तुम
है आर्त नाद वसुधा का, हे राम ! कहाँ हो तुम
निशा सिंह 'नवल'
Comments