उत्तर प्रदेश की आबादी में देश के कई प्रदेश समा जाएं और दुनिया के कई देश पीछे छूट जाएं। राजनीतिक सवालों के हर उत्तर का गवाह उत्तर प्रदेश सामाजिक सवालों और समाज के प्रति समाज की जिम्मेदारी के सवाल में हमेशा उलझ जाता है। भारत के ही किसी भी प्रदेश से ज्यादा जनसंख्या वाले इस प्रदेश में कभी राज्य स्तर पर चर्चा तक नहीं होती कि आखिर इस प्रदेश की आबादी इतनी क्यों है। क्या इसे रोकना जरुरी नहीं है, अगर रोकना है तो कैसे।
ये सवाल जब उठेंगे तब उनका जवाब भी मिलेगा। अभी तो सवाल बढ़ी हुई जनसंख्या का है। कोई भी सरकार अच्छे से अच्छा शासन और प्रशासन तो दे सकती है लेकिन बढ़ी हुई आबादी और ना बढ़े इसके लिए कानून का डंडा सख्त तो हो सकता है लेकिन उसका दर्द समाज की चिंता से ज्यादा राजनीतिक होने के कारण कोई भी सरकार पीछे हट जाती है।
प्रदेश की समस्याओं पर कतई बेबाक रहने वाले उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने यूपी की नई जनसंख्या नीति का ऐलान कर दिया है। यूपी जनसंख्या के हिसाब से भारत के सभी राज्यों से आगे है और दुनिया के सिर्फ पांच देशों से पीछे है।
अब यूपी की आबादी पर लगाम लगाई जाएगी। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ 11 जुलाई को विश्व जनसंख्या दिवस के अवसर पर नई जनसंख्या नीति 2021-30 जारी की। नई जनसंख्या नीति के तहत सरकार ने जन्मदर कम करने का लक्ष्य निर्धारित किया है।
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इस अवसर पर कहा कि बढ़ती आबादी विकास में बाधा है। हमको प्रजनन दर पर नियंत्रण लगाने की जरूरत है। उन्होंने उत्तर प्रदेश में नई जनसंख्या नीति का ऐलान कर दिया गया है। सीएम योगी आदित्यनाथ ने कहा कि हर जाति, धर्म, समुदाय के लोगों को बढ़ी हुई आबादी पर नियंत्रण का ध्यान देना होगा। उन्होंने कहा, मैं बेहद खुश हूं कि इस नयी नीति का ऐलान हुआ विश्व जनसंख्या दिवस के मौके पर हुआ है।
जनसंख्या नीति का संबंध हर नागरिक से है। बढ़ती जनसंख्या गरीबी का कारण है। उन्होंने कहा कि दो बच्चों के बीच भी गैप होना चाहिए। अगर दो बच्चों के बीच एक अच्छा अंतराल नहीं होगा तो उनके पोषण पर भी असर पड़ेगा। गरीबी और बढ़ती आबादी एक दूसरे से जुड़े हुए हैं।
सीएम योगी आदित्यनाथ ने कहा कि समाज के विभिन्न तबकों को ध्यान में रखकर प्रदेश सरकार इस जनसंख्या नीति को लागू करने का काम कर रही है। जनसंख्या नीति का संबंध केवल जनसंख्या स्थिरीकरण के साथ ही नहीं है बल्कि हर एक नागरिक के जीवन में खुशहाली और समृद्धि का रास्ता उसके द्वार तक पहुंचाना भी है। यूपी में और प्रयास की जरूरत है।
राज्य विधि आयोग ने इस कानून का ड्राफ्ट तैयार कर लिया है और इस पर जनता से आपत्तियां और सुझाव मांगे हैं।
उत्तर प्रदेश में जनसंख्या नियंत्रण को लेकर जल्द एक ठोस कानून शक्ल लेगा। कानून में आम लोगों के अलावा सरकारी अधिकारियों व कर्मियों से लेकर जनप्रतिनिधियों पर भी बड़े अंकुश लगाने की कोशिश है। आयोग ने दो से अधिक बच्चे वालों को स्थानीय निकाय चुनाव से वंचित रखे जाने की अहम सिफारिश राज्य विधि आयोग ने की है।
यह भी अहम सुझाव
- जिन सरकारी कार्मिकों का परिवार सीमित रहेगा और वह मर्जी से नसबंदी कराते हैं तो उन्हें दो अतिरिक्त इंक्रीमेंट, पदोन्नति, आवास योजनाओं में छूट, पीएफ में कर्मी का कंट्रीब्यूशन बढ़ाने व ऐसे अन्य लाभ दिए जाने की सिफारिशें हैं।
- जो दंपती सरकारी नौकरी में नहीं है, उन्हें सीमित परिवार रखने पर पानी, बिजली, गृह व अन्य करों में छूट मिलेगी।
- एक संतान पर मर्जी से नसबंदी कराने वाले अभिभावकों की संतान को 20 साल तक मुफ्त इलाज, शिक्षा व बीमा के साथ नौकरियों में वरीयता दिए जाने की तैयारी है।
- एक संतान वाले दंपती को सरकारी नौकरी में चार इंक्रीमेंट तक मिल सकते हैं। गरीबी रेखा के नीचे निवास करने वाले ऐसे दंपती को बेटे के लिए 80 हजार रुपये व बेटी के लिए एक लाख रुपये एकमुश्त दिए जाएंगे।
यह लाभ भी मिलेगा
- यदि दूसरी प्रेग्नेंसी में किसी के दो या उससे अधिक बच्चे होते हैं, तो उन्हें एक ही माना जाएगा।
- पहला, दूसरा या दोनों ही बच्चे नि:शक्त हैं तो वह तीसरी संतान पर सुविधाओं से वंचित नहीं होगा।
- तीसरे बच्चे को गोद लेने की होगी छूट।
- किसी बच्चे की असमय मृत्यु पर तीसरा बच्चा कानून के दायरे से होगा बाहर।
- सरकार को कानून लागू कराने के लिए राज्य जनसंख्या कोष बनाना होगा।
- हर प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में देनी होगी प्रसव की सुविधा।
- स्कूल के पाठ्यक्रम में जनसंख्या नियंत्रण का भी अध्याय होगा।
- महिला व पुरुष नसबंदी के असफल होने पर अनचाहे गर्भ में छूट मिलेगी।
- नसबंदी आपरेशन के विफल होने से हुआ तीसरा बच्चा कानून के दायरे से बाहर होगा।
- नसबंदी आपरेशन की विफलता साबित होने पर देना होगा 50 हजार रुपये मुआवजा।
राजस्थान व मध्य प्रदेश की तरह सूबे में भी दो से अधिक बच्चे वालों को सरकार नौकरी से दूर रखे जाने की सिफारिश शामिल है। ऐसे अभिभावक राज्य सरकार की किसी भर्ती में आवेदन नहीं कर सकेंगे। उन्हें सरकारी योजनाओं के लाभ से भी वंचित रखा जाएगा। आयोग ने बहुविवाह का भी ध्यान रखा है। धार्मिक या पर्सनल ला के तहत एक से अधिक विवाह करने वाले दंपती भी कानून के दायरे में होंगे। एक से अधिक विवाह करने वाले व्यक्ति के सभी पत्नियों से यदि दो से अधिक बच्चे हैं तो उसे सुविधाओं का लाभ नहीं मिलेगा। हालांकि हर पत्नी उसके दो बच्चे होने पर सुविधाओं का लाभ ले सकेगी। ऐसे ही किसी महिला के एक से अधिक विवाह करने पर उसके अलग-अलग पतियों से दो से अधिक बच्चे होने पर उसे भी सुविधाओं से वंचित होना होगा। सभी सरकारी अधिकारियों व कर्मियों से सीमित परिवार का शपथपत्र लेने तथा नियम तोडऩे पर उनकी पदोन्नति रोके जाने व सेवा से बर्खास्त किए जाने तक की सिफारिश की गई है। मातृत्व व पितृत्व के लिए पूरे वेतन व भत्तों के साथ 12 माह का अवकाश प्रदान किए जाने की भी सिफारिश है।
वैसे सरकार की तरफ से जिस तरह के सुझाव आए हैं उससे कुछ फर्क पड़ सकता है लेकिन अगर एक से अधिक विवाह करने वालों की हर पत्नी के दो दो बच्चों के हिसाब से सरकार रियायतें देती रही तो इस नीति का कोई मतलब नहीं रहेगा। यूनीफार्म सिविल कोड देश में भले ना लागू हुआ हो लेकिन योगी सरकार से इतनी अपेक्षा तो है ही कि अल्पसंख्यक के नाम पर मुसलमान जिस तरह से देश का बेड़ा गर्क करने में जुटे हैं उससे अगर छुटकारा पाना है तो कुछ कड़वे फैसले लेने ही होंगे। वैसे भी संघ या भारतीय जनता पार्टी अपने सारे घोड़े खोल दे तो भी मुस्लिम वोट उसे नहीं मिलने वाला। इस हिसाब से जनसंख्या का मामला भले सामाजिक हो लेकिन राजनीतिक गुणा-गणित का हिसाब नहीं लगाया तो बीजेपी को नुकसान ही होगा।
ऐसा इसलिए भी क्योंकि ज्यादातर टैक्सपेयर और नियम कानून से चलने वाले बहुसंख्यक ही हैं। ऐसे में जो टैक्सपेयर के पैसों की सब्सिडी उड़ाते हैं और जो सरकारें उन्हें इजाजत देती हैं उनसे कभी भी पलट कर जनता सवाल कर सकती है।
टीम स्टेट टुडे
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