प्रियंका गांधी वाड्रा केरल के लोकसभा क्षेत्र वायनाड से चुने जाने के बाद जब संसद में सांसद के रुप शपथ ले रहीं थीं ठीक उसी समय माल एवेन्यू स्थित कांग्रेस प्रदेश कार्यालय का नजारा बदल गया।
प्रदेश मुख्यालय के चप्पे चप्पे पर प्रियंका के राजनीतिक संघर्ष की तस्वीरें उनकी सियासी पारी की कहानी कहने लगीं।
हाथरस की घटना के बाद प्रियंका का जुझारुपन हो या लखीमपुर की घटना के बाद प्रियंका के तेवर, विन्ध्याचल में पूजन हो या कुंभा की घटना। लखनऊ स्थित प्रदेश मुख्यालय पर प्रियंका की सियासी दास्तान दीवारें बोलने लगीं।
प्रदेश प्रवक्ता अंशू अवस्थी ने स्टेट टुडे से विशेष चर्चा में कहा भारतीय राजनीति में उत्तर से दक्षिण तक एक जैसा प्रभाव रखने वाले कम ही राजनीतिक दल है और राजनीतिज्ञ तो गिने चुने ही हैं। गांधी परिवार उत्तर दक्षिण की चुनावी राजनीति में एक दिलचस्प अपवाद है। उत्तर से दक्षिण तक चुनाव लड़ने और जीतने का जो सिलसिला कभी इंदिरा गांधी से शुरु हुआ वो सोनिया गांधी से आगे बढ़ता हुआ पहले राहुल और अब प्रियंका तक आ पहुंचा है।
गांधी परिवार का उत्तर प्रदेश में रिश्ता तो सभी जानते हैं। प्रियंका गांधी वाड्रा की सियासी यात्रा में चुनावी दंगल भले भी सुदूर केरल के वायनाड में हुआ लेकिन उससे बहुत पहले प्रियंका रायबरेली और अमेठी की जमीन पर चलते हुए लोगों के मन में अपनी छाप छोड़ चुकीं थीं।
उत्तर प्रदेश में कांग्रेस पार्टी को फिर से खड़ा करने के लिए जरुरी था कार्यकर्ताओं के मनोबल को बढ़ाना और इसके लिए जरुरी था जमीन संघर्ष। पार्टी कार्यकर्ताओं को एक बार फिर से सड़कों पर उतारने के लिए प्रियंका ने सड़क से संघर्ष का रास्ता चुना और पार्टी में नई जान फूंकीं। लड़की हूं लड़ सकती हूं के नारे के साथ प्रियंका ने महिलाओं को जोड़ा।
प्रियंका भले ही वायनाड से सांसद अब चुनी गई हों लेकिन उनका सियासी सफर तीन दशक पहले अपनी मां सोनिया गांधी और भाई राहुल गांधी के लिए चुनाव प्रचार से शुरु हुआ। जब उन्होंने कांग्रेस शीर्ष नेतृत्व की परंपरागत सीट रायबरेली और अमेठी की जनता से अपना रिश्ता स्थापित किया। 2004 के लोकसभा चुनाव में वह अपनी मां सोनिया गांधी की चुनाव अभियान प्रबंधक थीं और अपने भाई राहुल गांधी के चुनाव प्रबंधन में मदद की।
23 जनवरी 2019 को प्रियंका औपचारिक रूप से राजनीति में तब आईं जब लोकसभा चुनाव का समर शंख फूंका जाना था। उन्हें पार्टी महासचिव बनाया गया। इसके साथ ही प्रियंका गांधी को पूर्वी उत्तर प्रदेश का प्रभारी भी नियुक्त किया गया। 11 सितंबर 2020 में उन्हें पूरे उत्तर प्रदेश का प्रभारी महासचिव बनाया गया। सक्रिय राजनीति का हिस्सा न होने के बाद भी प्रियंका ने अमेठी और रायबरेली में कांग्रेस को मजबूत करने का काम किया।
2022 में उत्तर प्रदेश का विधानसभा चुनाव कांग्रेस ने प्रियंका गांधी के नेतृत्व में लड़ा। यूपी चुनाव में 40% टिकट महिलाओं को देकर प्रियंका गांधी ने ‘लड़की हूं लड़ सकती हूं’ अभियान की शुरुआत कर महिला सशक्तिकरण पर जोर दिया। कांग्रेस को दो सीटों पर सफलता मिली। प्रियंका की मेहनत का नजारा तब सामने आया जब 2019 में अमेठी हार चुके राहुल ने 2024 के लोकसभा चुनाव में केरल के वायनाड के साथ साथ अपने रायबरेली से जीत हासिल की । दिलचस्प रहा कि कि दशकों से रायबरेली में सोनिया गांधी के प्रतिनिधि के रुप में कार्य करने वाले कांग्रेस कर्मठ कार्यकर्ता किशोरीलाल शर्मा को अमेठी से टिकट मिला और वह लोकसभा चुनाव जीत गए।
राहुल की दोहरी जीत के बाद 17 जून 2024 कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने प्रियंका के वायनाड से चुनाव लड़ने का एलान किया। राहुल गांधी के इस्तीफे से खाली सीट पर हुए उपचुनाव में प्रियंका गांधी कांग्रेस का चेहरा बनीं।
वायनाड सीट पर हुए उपचुनाव में प्रियंका ने 410931 लाख वोट से जीत हासिल की। कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी को 622338 वोट मिले थे। यहां दूसरे नंबर पर माकपा के सत्यन मोकेरी रहे, जिन्हें 211407 वोट मिले। वहीं तीसरे स्थान पर भाजपा की नाव्या हरिदास रहीं, जिन्हें 109939 वोट मिले हैं।
भले ही प्रियंका दक्षिण के लोकसभा क्षेत्र में संसद पहुंचीं हो लेकिन उत्तर प्रदेश का कांग्रेस मुख्यालय उनकी सियासी संघर्ष की कहानियों का केंद्र बना हुआ है।
उत्तर प्रदेश कांग्रेस मुख्यालय पर नेताओं और कार्यकर्ताओं ने इस मौके पर प्रियंका गांधी का लाइव शपथ ग्रहण देखा साथ ही एक दूसरे को मिठाई और लड्डू खिलाकर खुशी जाहिर की। कार्यकर्ताओं ने पटाखे भी फोड़े।
इस अवसर पर प्रदेश उपाध्यक्ष प्रशासन प्रभारी दिनेश सिंह, पूर्व विधायक श्याम किशोर शुक्ला, प्रदेश महासचिव मुकेश सिंह चौहान, प्रदेश प्रवक्ता अंशू अवस्थी, सेवादल राजेश काली, शहर अध्यक्ष अमित श्रीवास्तव त्यागी, शहर अध्यक्ष शहजाद आलम, जिलाध्यक्ष वेद प्रकाश त्रिपाठी, नितांत सिंह, सलमान कादिर, डॉक्टर अयूब सहित कार्यकर्ता उपस्थित रहे।
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