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राममंदिर आंदोलन: कारसेवा की कहानी - कारसेवक आलोक अवस्थी की ज़ुबानी



अस्सी के दशक के आखिर में शुरु हुआ राममंदिर आंदोलन 90 के दशक में चरम पर पहुंचा जब अयोध्या में ढांचे ढह गए। इस दौरान अलग अलग समय पर आंदोलन विविध स्वरुपों में आगे बढ़ता रहा। रामकाज में जिन्होंने अपना योगदान दिया उन्हें कारसेवक कहा गया। मंदिर आंदोलन में जमकर कारसेवा करने वाले आलोक अवस्थी ने आंदोलन के उस दौर की अपनी यादों को स्टेट टुडे पर साझा किया।


कारसेवक आलोक अवस्थी की कहानी - उन्हीं की ज़ुबानी

 

आलोक जी स्टेट टुडे से कहते हैं कि - "मुझे याद है कि एक गिलहरी प्रयास भगवान श्रीराम जन्मभूमि आंदोलन की कारसेवा में मेरा भी रहा है।"

 

राम जन्मभूमि आंदोलनके लिए देश भर से हज़ारों राम सेवकों का लखनऊ में चारबाग़ रेलवे स्टेशन पर आना होता था। चारबाग़ बस अड्डा भी पास में ही था। रामसेवकों के जलपान की व्यवस्था उनके लिए भोजन की व्यवस्था तथा अयोध्या जाने के लिए खाने के पैकेट का इंतज़ाम चारबाग़ स्टेशन पर टेंट लगाकर के हम लोग करते थे । हमारे महानगर अध्यक्ष स्वर्गीय भगवती प्रसाद शुक्ल जी लगातार हमारा उत्साह वर्धन करते थे । किसी भी कार्यकर्ता ने दिन को दिन और रात को रात ना समझ कर एक मिशन के भाव से सेवा की है।

 

मुझे याद है संघ की व्यवस्था में उस हमारे प्रांत प्रचारक स्वांत रंजन जी का हम स्वयंसेवकों को यह निर्देश था कि हर घर से 10 पैकेट जिसमें 4 पूड़ी (अजवाइनऔर नमक), गुड़ और अचार के साथ ठीक से पैक किया हुआ हो उसे एकत्र कर वितरण केंद्रों तक पहुँचायें। हलवाई लगा कर खाना बनाने से मना किया गया था। अधिक से अधिक जन भागीदारी हो उसके लिए हर घर में जाकर के अनुरोध कर हम सब आग्रह करके उनके यहाँ से खाना लेकर आते थे। रामधुन में सब लोग स्वाभाविक रूप से सेवा के लिए जुड़ गये थे। हमने यह भी पाया किसी के यहाँ से यदि एक दिन खाना लिया हो तो वो फिर पूछते थे कि आपने अगले दिन हमें सेवा का अवसर क्यों नहीं दिया। मैंने माताओं के आंसुओं को भी देखा और बेबसी भी देखी की भगवान श्रीराम का मंदिर कब बनेगा।

बीच बीच में अयोध्या जाना भी होता रहता था। क्योंकि लखनऊ स्टेशन अयोध्या जाने वालों का जंक्शन होता था। और हमें कभी कभी बड़े नेताओं के साथ सहयोगी के रूप में भेजा जाता था।

 

हुसैनगंज चौराहे पर मेरे मित्र प्रदीप भार्गव जी का घर विश्व हिंदू परिषद की कार्यवाही का केंद्र रहता था। प्रदीप के पिता जी विहिप के पदाधिकारी थे। अक्सर वहाँ अशोक सिंहल जी का प्रवास रहता था । रामजन्मभूमि आंदोलन में मुलायम सरकार दमनकारी थी उसकी परिणति अयोध्या में रामसेवकों के ऊपर नृशंसता से गोली चलवाकर की गई थी। हमने हताशा निराशा और उत्साह की परिणति के फलस्वरूप विवादित ढाँचे को भी गिरते देखा था और हमारी वर्तमान पीढ़ी भगवान रामलला के भव्य मंदिर के स्वरूप को साकार होते हुए भी देख रही है।

उन सभी हुतात्मों को विनम्र श्रद्धांजलि जिन्होंने 550 वर्ष के संघर्ष में अपना बलिदान और योगदान दिया।

 

जय सियाराम॥

 

टीम स्टेट टुडे

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