मुख्यमंत्री योगी से प्रेरणा लेकर सीएसआईआर-एनबीआरआई के वैज्ञानिकों ने तैयार किए दो खास हर्बल गुलाल
गुरु गोरखनाथ को अर्पित फूलों से भी बनाया हर्बल गुलाल, औषधीय गुणों से है परिपूर्ण
संस्थान के निदेशक ने मुख्यमंत्री योगी को भेंट किए दोनों हर्बल गुलाल, मिली सराहना
त्रेतायुग में अयोध्या का राज्य वृक्ष था कचनार, विरासत को मिल रहा सम्मान
कचनार फूलों का गुलाल लैवेंडर फ्लेवर में, जबकि चंदन फ्लेवर में हैं गोरखनाथ मंदिर के चढ़ाए फूलों से बने गुलाल
लखनऊ, 20 मार्च। अवधपुरी के भव्य-दिव्य-नव्य मंदिर में विराज रहे श्रीरामलला इस बार कचनार के फूलों से बने गुलाल से होली खेलेंगे। विरासत को सम्मान देने के भाव के साथ सीएसआईआर-एनबीआरआई के वैज्ञानिकों ने कचनार के फूलों से बने गुलाल को खास तौर पर तैयार किया है। यही नहीं, वैज्ञानिकों ने गोरखनाथ मंदिर, गोरखपुर के चढ़ाए हुए फूलों से भी एक हर्बल गुलाल तैयार किया है। बुधवार को संस्थान के निदेशक ने दोनों खास गुलाल मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को भेंट किए।
मुख्यमंत्री ने इस विशेष पहल के लिए संस्थान के प्रयासों की सराहना करते हुए कहा कि यह निश्चित रूप से उत्तर प्रदेश के साथ-साथ देश के कई स्टार्ट-अप और उद्यमियों के लिए अधिक अवसर एवं रोजगार प्रदान करेगा। निदेशक डॉ. अजित कुमार शासनी ने बताया कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ द्वारा अयोध्या में रामायणकालीन वृक्षों का संरक्षण किया जा रहा है। विरासत को सम्मान और परंपरा के संरक्षण देने के यह प्रयास हमारे वैज्ञानिकों के लिए प्रेरणास्पद है। इसी के तहत, संस्थान द्वारा श्रीराम जन्मभूमि, अयोध्या के लिए बौहिनिया प्रजाति जिसे आमतौर पर कचनार के नाम से जाना जाता है, के फूलों से हर्बल गुलाल बनाया गया है। कचनार को त्रेतायुग में अयोध्या का राज्य वृक्ष माना जाता था और यह हमारे आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धति की सुस्थापित औषधि के रूप में इस्तेमाल किया जाता रहा है। इसमें एंटी-इंफ्लेमेटरी, एंटी-बैक्टीरियल, एंटी-फंगल आदि गुण भी होते हैं। इसी तरह, गोरखनाथ मंदिर, गोरखपुर में चढ़ाए हुए फूलों से हर्बल गुलाल को तैयार किया गया है। इन हर्बल गुलाल का परीक्षण किया जा चुका है और यह मानव त्वचा के लिए पूरी तरह से सुरक्षित और पर्यावरण के अनुकूल है।
निदेशक ने बताया कि कचनार के फूलों से हर्बल गुलाल लैवेंडर फ्लेवर में बनाया गया है, जबकि गोरखनाथ मंदिर के चढ़ाए हुए फूलों से हर्बल गुलाल चंदन फ्लेवर में विकसित किया गया है। इन हर्बल गुलाल में रंग चमकीले नहीं होते क्योंकि इनमें लेड, क्रोमियम और निकल जैसे केमिकल नहीं होते हैं। फूलों से निकाले गए रंगों को प्राकृतिक घटकों के साथ मिला कर पाउडर बनाया जाता है इसे त्वचा से आसानी से पोंछ कर हटाया जा सकता है। गुलाल की बाजार में बेहतर उपलब्धता के लिए हर्बल गुलाल तकनीक को कई कंपनियों और स्टार्ट-अप्स को हस्तांतरित किया गया हैं। वर्तमान में बाजार में उपलब्ध रासायनिक गुलाल के बारे में बात करते हुए, डॉ. शासनी ने कहा कि ये वास्तव में जहरीले होते हैं, इनमें खतरनाक रसायन होते हैं जो त्वचा और आंखों में एलर्जी, जलन और गंभीर समस्या पैदा कर सकते हैं। उन्होंने आगे बताया कि हर्बल गुलाल की पहचान करने का सबसे अच्छा तरीका यह है कि यह अन्य गुलाल की तरह हाथों में जल्दी रंग नहीं छोड़ेगा। संस्थान द्वारा विकसित हर्बल गुलाल होली के अवसर पर बाजार में बिक रहे हानिकारक रासायनिक रंगों का एक सुरक्षित विकल्प है।
जानिए कचनार और उसके गुणों के बारे में
आपने कचनार के पौधे (kachnar tree) के बारे में सुना जरूर होगा। कचनार का प्रयोग कर लोगों को अनेक तरह का लाभ मिलता है। कचनार की छाल (kachnar ki chaal) के रेशों से रस्सी बनाई जाती है। कई स्थानों पर काचनार की पत्तियों का साग भी खाया जाता है। क्या आप जानते हैं कि कचनार एक औषधी है, और इसके अनेक औषधीय गुण हैं। कई रोगों के इलाज में कचनार के उपयोग से फायदे मिलते है।
आयुर्वेद के अनुसार, कई प्राचीन ग्रंथों में कचनार के फायदे (kanchnar guggul ke fayde) के बारे में बताया गया है। आइए जानते हैं कि आप किस-किस बीमारी में कचनार (kanchnar) से लाभ ले सकते हैं।
कचनार क्या है? (What is Kachnar in Hindi?)
फूलों के रंगों में अंतर के अनुसार कचनार (kanchanar guggulu) की विभिन्न जातियां पाई जाती हैं। इनमें से तीन प्रकार के काचनारों का विशेष उल्लेख मिलता है, जो ये हैंः-
1.लाल फूल वाला कचना (Bauhinia purpurea)
2.सफेद फूल वाला कचनार (Bauhinia racemosa)
3.पीला फूल वाला कचनार (Bauhinia tomentosa Linn.)
लाल काचनार – इसमें कुछ जामुनी लाल रंग के फूल आते हैं। अन्य कचनारों (kanchnar guggul) की अपेक्षा यह सभी जगह मिल जाता है।लाल फूल वाली प्रजाति को कचनार (kanchnar), और सफेद फूल वाली प्रजाति को कोविदार कहा जाता है। लाल फूल के आधार पर कचनार की दो प्रजातियां पाई जाती हैं, जो ये हैंः-
सफेद काचनार – इसके फूल सफेद रंग के और सुगन्धित होते हैं। सफेद फूलों के आधार पर कांचनार की मुख्यतया तीन प्रजातियां पाई जाती हैैं, जो ये हैंः-
पीला काचनार – इसके फूल पीले रंग के होते हैं।
इनके अतिरिक्त कचनार की एक और प्रजाति पाई जाती है जिसे Bauhinia semla Wunderlin कहते हैं। कांचनार (Bauhinia variegata Linn.) से मिलते-जुलते बहुत सारे पौधे पाए जाते हैं, लेकिन प्रायः कांचनार व कोविदार का प्रयोग चिकित्सा में किया जाता है।
गुणों में तीनों कचनार (kachnar tree benefits) एक समान होते हैं, लेकिन औषधि के रूप में प्रायः लाल या सफेद फूल वाले कचनार का ही प्रयोग (kanchanar guggulu) किया जाता है। इसलिए अगर कहीं लाल फूल वाला कचनार नहीं मिलता है तो दूसरे का प्रयोग किया जा सकता है।
अन्य भाषाओं में कचनार के नाम (
कचनार का वानस्पतिक नाम बौहिनिया वैरीगेटा (Bauhinia variegata Linn., Syn-Bauhinia chinensis (DC.) Vogel, Bauhinia variegatavar.candida (Aiton) Corner) है, और यह सेजैलपिनिएसी (Caesalpiniaceae) कुल का है। कचनार के अन्य ये नाम भी हैंः-
Hindi – कचनार, क ञ्चनार,कचनाल, गोरिआल
English – Mountain ebony (माउण्टेन एबोनी)
Sanskrit – का ञ्चनार, का ञ्चनक, गण्डारि, शोणपुष्पक, युग्मपत्रक, स्वल्पकेसरी, गण्डारी
Oriya – बोरोडा (Boroda), कॉन्जोनी (Kanjoni)
Urdu – काचनॉल (Kachnal)
Kannada – केंपुमन्दरा (Kempumandara), देवकन्यानमु (Devkanyanamu)
Gujarati – चम्पाकाटी (Champakati), काञ्चनार (Kanchnar)
Tamil – सिगप्पुमुन्दरई (Segappumundarai)
Telugu – देवकाञ्चनमु (Devakanchanamu)
Bengali – रक्तका ञ्चन (Raktakanchan), काञ्चन (Kanchan)
Nepali – कोईरालो (Koiralo), ताकी (Taki)
Marathi – रक्त काञ्चन (Rakta-kanchan), कोरल (Koral), काञ्चन (Kanchan)
Malayalam – चुवन्नमंदरम् (Chuvannamandaram)
कचनार के फायदे और उपयोग
अब तक आपने कचनार (kachnar tree) क्या है, और कचनार के कितने नाम हैं। आइए जानते हैं कि कचनार का आयुर्वेदीय गुण क्या है, इससे कितने रोगों में लाभ मिल सकता हैः-
सिर दर्द में कचनार के फायदे
सिर दर्द होने पर लाल कचनार से लाभ मिलता है। लाल कचनार की छाल (kachnar ki chaal) को पीसकर मस्तक पर लगाने से सिर दर्द से आराम मिलता है।
कचनार के औषधीय गुण से दांत दर्द का इलाज
लाल कचनार की सूखी टहनियों को जलाकर राख बना लें। इस राख या कोयला से दांतों पर मंजन करें। इससे दांत के दर्द की बीमारी ठीक होती है।
कचनार के सेवन से मुंह के छाले का इलाज
कचनार वृक्ष की छाल और अनार के फूल का काढ़ा बना लें। इससे कुल्ला करने से मुंह के छाले की बीमारी में लाभ होता है।
50 ग्राम कचनार वृक्ष की छाल को आधा लीटर पानी में उबालें। जब आधा पानी रह जाए तो इस पानी से कुल्ले करें। ऐसा कोई छाला जो दूसरी दवा से ठीक नहीं हो रहा है, वह भी इस उपाय से ठीक हो जाता है।
इससे प्रसूति स्त्रियों को होने वाले छाले भी ठीक (kanchnar guggul ke fayde) हो जाते हैं।
कचनार के सेवन से खांसी का उपचार (Benefits of Red Kachnar Tree in Fighting with Cough in Hindi)
कांचनार फूल का काढ़ा बनाकर पीने से खांसी में लाभ होता है। इस काढ़े की 20 मिली मात्रा को दिन में दो बार पीना चाहिए। बेहतर लाभ के लिए किसी आयुर्वेदिक चिकित्सक से जरूर सलाह लें।
रक्त-विकार में कचनार के सेवन से लाभ (Red Kachnar Flower Uses for Blood Disorder in Hindi)
कांचनार की छाल या फूल का काढ़ा बना लें। 10-20 मिली काढ़ा को ठंडा करके शहद मिला लें। इसे दिन में दो बार सेवन करें। इससे खून साफ होता है।
मासिक धर्म विकार में कचनार के फायदे
कांचनार फूल का काढ़ा बनाकर पीने से अत्यधिक रक्तस्राव की समस्या में लाभ होता है। आपको 20 मिली काढ़ा को दिन में दो बार पीना है।
मसूड़ों के दर्द में कचनार के औषधीय गुण फायदेमंद
मसूड़ों में दर्द होने पर कचनार के फायदे मिलते हैं। कचनार की छाल (kachnar ki chaal) का काढ़ा बनाकर गरारा करने से मसूड़ों के दर्द ठीक हो जाते हैं।
गण्डमाला रोग में कचनार का औषधीय गुण फायदेमंद
लाल कचनार की छाल के 20 मिली काढ़ा में 1 ग्राम सोंठ चूर्ण मिलाएं। इसे सुबह-शाम पिलाने से भी गले के गांठ की बीमारी में लाभ होता है।
250 ग्राम कचनार की छाल के चूर्ण में 250 ग्राम चीनी मिलाकर रख लें। सुबह और शाम 5-10 ग्राम चूर्ण को पानी या दूध के साथ सेवन करें। इससे गण्डमाला रोग में लाभ होता है।
कचनार की छाल का काढ़ा बनाकर गरारा करने से कंठ के रोग ठीक होते हैं।
10-20 ग्राम कांचनार छाल को 400 मिली पानी में उबालें। जब काढ़ा एक चौथाई रह जाए तो 10-20 मिली की मात्रा में पिलाएं। इससे गंडमाला रोग में लाभ होता है।
लाल कचनार का रस मिलाकर गले में लगाने से भी गले के रोग में लाभ होता है।
पेट की गैस में कचनार के सेवन से फायदा
20 मिली कांचनार की जड़ के काढ़ा में 2 ग्राम अजवायन चूर्ण डालकर पिलाएं। इससे पेट की गैस की परेशानी में लाभ होता है।
पाचनतंत्र विकार में कचनार के औषधीय गुण से लाभ
लाल कचनार (kanchanar guggulu benefits) की 10-20 ग्राम जड़ का काढ़ा बनाकर दिन में दो बार पिएं। इससे पाचनतंत्र संबंधी विकारों में लाभ होता है।
पेट के कीड़े की आयुर्वेद दवा है कचनार
कचनार की जड़ और पत्ते का काढ़ा बना लें। इसे 10-20 मिली मात्रा में पिएं। इससे पेट के कीड़े खत्म होते हैं। उपाय को करने से पहले किसी आयुर्वेदिक चिकिकत्सक से सलाह लें।
कब्ज की आयुर्वेद दवा है कचनार
कचनार की कलियों से बने गुलकन्द को 5-10 ग्राम की मात्रा में खाने से कब्ज का इलाज होता है।
2-5 ग्राम सूखे फूल के चूर्ण में बराबर मात्रा में चीनी मिलाकर खाने से कब्ज की समस्या में लाभ होता है
गुदा भ्रंश (गुदा से कांच निकलना) में कचनार के फायदे
गुदा भ्रंश रोग अधिकांशतः शिशुओं या बच्चों को होता है। आप इसमें कचनार के औषधीय गुण से फायदा ले सकते हैं। लाल कचनार के तने की छाल को पीसकर गुदा में लगाने से गुदभ्रंश में लाभ होता है।
बवासीर की आयुर्वेद दवा है कचनार
सुबह 1-2 ग्राम कोविदार की जड़ के चूर्ण को छाछ के साथ सेवन करें। शाम को पचने वाला भोजन करें। इससे बवासीर में लाभ होता है।
लाल कचनार के तने का पेस्ट बना लें। 1-2 ग्राम पेस्ट को दही के साथ सेवन करने से बवासीर रोग में फायदा होता है।
कचनार की कलियों से बने गुलकन्द (kanchnar guggulu) को 5-10 ग्राम की मात्रा में खाने से बवासीर में लाभ होता है।
2-5 ग्राम सूखे फूल के चूर्ण में बराबर मात्रा में मक्खन और मिश्री मिलाकर दिन में तीन बार सेवन करने से खूनी बवासीर में लाभ होता है।
जामुन, रीठा और कचनार की छाल को पानी में उबालकर गुदा को धोने से खूनी बवासीर में फायदा होता है।
कांचनार फूल का काढ़ा बनाकर पीने से खूनी बवासीर की बीमारी में लाभ होता है। काढ़ा की 20 मिली मात्रा को दिन में दो बार पीना चाहिए।
कचनार के सेवन से ल्यूकोरिया का इलाज
ल्यूकोरिया महिलाओं को होने वाली बीमारी है। महिलाएं इस रोग में कचनार से फायदा ले सकती हैं। 1-2 ग्राम लाल कचनार फूल की कली का चूर्ण बनाएं। इसका सेवन करने से ल्यूकोरिया रोग में लाभ होता है।
फोड़े (घाव) में कचनार का औषधीय गुण लाभदायक
कचनार की जड़ को चावलों के धुले हुए पानी के साथ पीस लें, और घाव पर पट्टी के रूप में बांधें। इससे फोड़े जल्दी पक जाते हैं।
घाव पर इसकी छाल को पीसकर लगाने से लाभ होता है।
कचनार के फूल या पत्ते के चूर्ण (2.5 ग्राम) का काढ़ा बनाएं, या फिर 20 मिली छाल का काढ़ा बनाएं। इसमें प्रवाल भस्म (250 मिग्रा) और चीनी मिलाएं। इसे दिन में तीन बार सेवन करने से घाव में फायदा होता है। इसके सेवन के बाद दूध पीना चाहिए।
लाल कचनार का काढ़ा बनाकर घाव को धोने से घाव सुख जाता है।
रक्तपित्त (नाक-कान आदि से खून निकलना) में कचनार के औषधीय गुण से लाभ
2-5 ग्राम कचनार के सूखे फूल का चूर्ण बनाएं। इसे 1 चम्मच मधु के साथ मिलाकर दिन में तीन बार चाटने से रक्तपित्त में लाभ होता है।
कोविदार के फूलों से बनी सब्जी (उबालने के बाद घी में भूनकर या जूस बनाकर) का सेवन करें। इससे नाक-कान आदि अंगों से खून बहना बंद हो जाता है।
बराबर-बराबर मात्रा में खदिरसार, फूलप्रियंगु, कोविदार तथा सेमल के फूल का चूर्ण बनाएं। इसमें 1-2 ग्राम में मधु मिलाकर सेवन करने से रक्तपित्त में लाभ होता है।
कचनार के सेवन से पीलिया रोग का इलाज
पीलिया रोग जब गंभीर स्थिति में पहुंच जाता है तो जानलेवा साबित हो सकता है। पीलिया रोग के इलाज के लिए कोविदार के पत्तों का पेस्ट बना लें। व्याघएरण्ड का दूध निकालकर इसमें मिलाएं, और सेवन करें। इससे पीलिया रोग में फायदा होता है।
भूख बढ़ाने के लिए कचनार का सेवन
भूख न लगे तो कचनार के सेवन से समस्या ठीक हो सकती है। कचनार में लिवर की कोशिकाओं को स्वस्थ करने का गुण होता है। यह लिवर विकार को दूर कर भूख को बढ़ाता ह।
कचनार की छाल से कैंसर की आयुर्वेदिक दवा है कचनार (Red Kachnar is Beneficial for Cancer in Hindi)
कचनार की छाल का प्रयोग कर कैंसर से बचाव कर सकते हैं। एक रिसर्च अनुसार, कचनार में कैंसररोधी गुण पाये जाते है। इससे कैंसर को रोकने में मदद मिलती है।
कचनार के औषधीय गुण से पेचिश का इलाज
दस्त की समस्या होने पर कचनार का सेवन फ़ायदेमंद होता है। कचनार कसैला और ठंडा होता है, इसलिए यह बार-बार दस्त की समस्या को कम करता है, और अगर दस्त के साथ खून आ रहा है तो उसको भी ठीक करने में मदद करता है।
कचनार की पत्तियों से थायरॉइड का इलाज
कचनार की पत्तियों का चूर्ण लेने से थायरॉइड ग्रंथि से संबंधित रोगों का इलाज होता है। यह थायरॉइड ग्रंथि के आकार को भी नियंत्रित करने में मदद करता है।
पेशाब में खून आने पर कचनार का सेवन फायदेमंद
कांचनार के फूल का काढ़ा बनाकर पिएं। इससे पेशाब में खून आने की परेशानी में लाभ होता है। इस काढ़ा की 20 मिली मात्रा को दिन में दो बार पीना चाहिए।
रसौली और पेट फूलने की समस्या में कचनार से लाभ
कचनार की जड़ को चावलों के धुले हुए पानी के साथ पीस लें। इसे पट्टी के रूप में रसौली, और पेट पर बांधें। इससे रसौली जल्दी पक जाता है। इससे पेट फूलने की समस्या भी ठीक होती है। इसकी छाल को पीसकर लगाने से भी लाभ होता है।
कचनार के फूल या पत्ते के चूर्ण का 2.5 ग्राम काढ़ा बना लें, या 20 मिली छाल के काढ़ा में प्रवाल भस्म (250 मिग्रा) मिला लें। इसमें चीनी मिलाकर दिन में तीन बार सेवन करने से भी रसौली, पेट फूलने की समस्या में फायदा होता है। इसके सेवन के बाद दूध पिलाना चाहिए।
पीले कचनार के पत्ते, छाल तथा बीजों को सिरके में पीसकर लेप करने से रसौली में लाभ होता है।
सफेद कचनार के फायदे और उपयोग
सफेद कचनार का प्रयोग इन रोगों के लिए किया जा सकता हैः-
गण्डमाला रोग में सफेद कचनार के औषधीय गुण से लाभ
सफेद कचनार की छाल के चूर्ण (1-2 ग्राम) को चावल के धोवन के साथ पीने से गण्डमाला या कंठ के रोग में लाभ होता है। बेहतर लाभ के लिए किसी आयुर्वेदिक चिकित्सक से जरूर परामर्श लें।
मूत्र रोग में सफेद कचनार के सेवन से लाभ
2-5 ग्राम कचनार के सूखे फल का चूर्ण बना लें। इसे पानी के साथ दिन में 3-4 बार सेवन करने से मूत्र रोग जैसे पेशाब का रुक-रुक कर आना, या पेशाब में दर्द होने की बीमारी ठीक होती है।
सफेद कचनार के सेवन से खूनी बवासीर का इलाज
खूनी बवासीर में रोगी को बहुत परेशान होना पड़ता है। आप सफेद कचनार से खूनी बवासीर का इलाज कर सकते हैं। 1-2 ग्राम कचनार के फूल का चूर्ण का सेवन करने से खूनी बवासीर में लाभ होता है।
त्वचा रोगों में सफेद कचनार का औषधीय गुण फायदेमंद
त्वचा रोगों में भी कचनार से लाभ लिया जा सकता है। काचनार की जड़ की छाल को पीस लें। इसे लगाने से घाव, सूजन एवं अन्य प्रकार के त्वचा से संबंधित रोगों में लाभ होता है।
बुखार में सफेद कचनार के औषधीय गुण से फायदा
काचनार के पत्ते का काढ़ा बनाएं। इसे 10-20 मिली मात्रा में पीने से बुखार के कारण होने वाले सिर दर्द से आराम मिलता है। अधिक लाभ के लिए आयुर्वेदिक चिकित्सक से जरूर सलाह लें।
पीले कचनार के फायदे और उपयोग
पीले कचनार का प्रयोग इन रोगों के लिए किया जा सकता हैः-
पीले कचनार के औषधीय गुण से दस्त पर रोक
पीले कचनार की जड़ और पत्ते का काढ़ा बनाकर 10-20 मिली मात्रा में पिएं। इससे दस्त पर रोक लगती है। उपाय करने से पहले किसी आयुर्वेदिक चिकित्सक से सलाह लें।
लिवर विकार में पीले कचनार के फायदे
पीले कंचनार की 10-20 ग्राम जड़ की छाल का काढ़ा बना लें। 10-20 मिली काढ़ा को सुबह-शाम पिलाने से लिवर की सूजन में लाभ होता है।
कचनार की जड़ और पत्ते का काढ़ा बनाकर 10-20 मिली मात्रा में पिएं। इससे लिवर के दर्द से राहत (kanchanar guggulu benefits) मिलती है।
पेचिश में पीले कचनार के औषधीय गुण से लाभ
पीले कचनार के पत्ते और फूलों को सुखा लें। इसका चूर्ण बनाकर रख लें। 5 ग्राम चूर्ण का सेवन करने के बाद 2 चम्मच सौंफ का अर्क पिएं। इससे पेचिश में लाभ होता है।
कचनार के 10 ग्राम फूलों को जल में उबालकर छान लें। इसे दिन में दो बार पिलाने से भी पेचिश में लाभ होता है।
2-5 ग्राम कचनार के सूखे फल के चूर्ण को पानी के साथ पीने से भी पेचिश में लाभ मिलता है। इसे दिन में 3-4 बार सेवन करें।
आंतों के रोग में पीले कचनार का सेवन लाभदायक
20 ग्राम पीले कचनार की छाल को 400 मिली पानी में पकाएं। जब काढ़ा एक चौथाई बच जाए तो इसे 10-25 मिली पिलाने से आंतों के कीड़े मर जाते हैं।
घाव में कीड़े पड़ने पर पीले कचनार के फायदे
पीले कचनार के पत्ते, छाल और बीजों को सिरके में पीस लें। इसका लेप करने से घाव के अन्दर के कीड़े मर जाते हैं।
शरीर की जलन में पीले कचनार के फायदे
5 मिली कांचनार की छाल का रस निकाल लें। इसमें 2 ग्राम जीरे का चूर्ण, या 250-500 मिलीग्राम कपूर मिला लें। इसे दिन में दो बार पिलाने से शरीर की जलन शांत हो जाती है।
मुंह के छाले में पीले कचनार के सेवन से लाभ
मुंह में छाले होना एक आम बीमारी है। इसमें कचनार के औषधीय गुण से फायदा मिलता है। सफेद कचनार या पीले कांचनार की छाल का काढ़ा बना लें। इससे कुल्ला करने से मुंह के छाले की बीमारी ठीक होती है।
सांप के काटने पर पीले कचनार के फायदे
सांप के काटने पर कचनार का प्रयोग लाभ पहुंचाता है। पीले कचनार के बीजों को पीसकर सांप के काटने वाले स्थान पर लेप करें। इससे सांप के काटने से होने वाले दर्द, जलन और सूजन में लाभ (kanchanar guggulu benefits) होता है।
कचनार के उपयोगी भाग
कचनार का प्रयोग इस तरह किया जाना चाहिएः-
जड़
पत्ते
छाल
फूल
कचनार का इस्तेमाल कैसे करें?
कचनार का इस्तेमाल इतनी मात्रा में करना चाहिएः-
पत्ते का रस- 12-24 मिली
चूर्ण- 3-6 ग्राम
काढ़ा- 50-100 मिली
अधिक लाभ के लिए चिकित्सक के परामर्शानुसार कचनार का प्रयोग करें।
कचनार कहां पाया या उगाया जाता है?
भारत के जंगलों में, हिमालय के तराई प्रदेशों और निचली पहाड़ियों पर कचनार के वृक्ष (kachnar tree) पाए जाते हैं।
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