लखनऊ, 8 सितंबर 2022 : उत्तर प्रदेश की योगी आदित्यनाथ सरकार में मंत्री रहे, तब चाहे जब भाजपा को असहज किया। फिर सपा के साथ गठबंधन किया तो अखिलेश यादव को खरी नसीहत देने से नहीं चूके। इसके बावजूद यदि ओमप्रकाश राजभर को 'सहा' जाता रहा तो सिर्फ पूर्वांचल की कुछ सीटों पर उनके या कहें कि सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के प्रभाव के कारण।
अब वह सपा का भी हाथ झटककर फिर मैदान में नए दोस्त की तलाश में खड़े थे कि उनकी पार्टी में ही बगावत हो गई। राजनीति दांव-पेच का खेल है, इसलिए माना जा रहा है कि सुभासपा के बागियों के सहारे विरोधी दल, खास तौर पर भाजपा ओमप्रकाश की ताकत में सेंध लगाकर पूर्वांचल की बाजी अपने हिसाब से सजा सकती है।
सुभासपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष महेंद्र राजभर ने ओमप्रकाश राजभर के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। ओमप्रकाश के साथ मिलकर दो दशक पहले सुभासपा बनाने वाले पदाधिकारियों में से भी कई ने त्याग-पत्र दे दिया है। गौर करने की बात तो यह है कि महेंद्र के गंभीर आरोप के बावजूद ओमप्रकाश चुप ही हैं। अंदरखाने प्रयास डैमेज कंट्रोल यानी मान-मनौव्वल के चल रहे हैं।
हाल ही में हुए विधानसभा चुनाव में हार के बाद सपा का साथ छोड़ लोकसभा चुनाव के लिए ओमप्रकाश नया ठिकाना तलाश रहे हैं। इस बीच बगावत से यह प्रश्न भी खड़ा हो गया कि सुभासपा के यह बागी किसके साथ जाएंगे? जानकार मान रहे हैं कि विधानसभा चुनाव से पहले ओमप्रकाश के पास 'शांतिदूत' भेजती रही भाजपा अब इस फूट का सहारा लेकर उन्हें समझौते की मेज पर कमजोर कर सकती है। ओमप्रकाश भाजपा के साथ नहीं आते हैं तो सुभासपा के बागियों का भाजपा के साथ जाना लगभग तय है।
इसके पीछे तर्क यह है कि महेंद्र और उनके साथियों ने ओमप्रकाश पर माफिया मुख्तार अंसारी से गहरे संबंधों का भी आरोप लगाया है। पार्टी से विधायक मुख्तार के बेटे अब्बास अंसारी को संरक्षण देने के आरोप लगाए हैं। इस अंदाज के साथ बागी नेता सपा के साथ जाने से रहे, जबकि भाजपा को यह फबेगा।
उन्हें साथ लेकर भाजपा लोकसभा चुनाव के लिए पूर्वांचल में पिछड़ी जातियों में अपने समीकरण मजबूत कर सपा के लिए चुनौतियां बढ़ा सकती है। वहीं, ओमप्रकाश राजभर के पास कांग्रेस के अतिरिक्त कोई मजबूत विकल्प फिलहाल नजर नहीं आ रहा है।
चार मंडलों में है प्रभाव : सुभासपा की पकड़ पूर्वांचल के वाराणसी, देवीपाटन, गोरखपुर और आजमगढ़ मंडल में है। बंसी, आरख, अर्कवंशी, खरवार, कश्यप, पाल, प्रजापति, बिंद, बंजारा, बारी, बियार, विश्वकर्मा, नाई और पासवान जैसी उपजातियों के मतदाताओं पर राजभर नेताओं का प्रभाव है। राजभर मतदाता लगभग 18 प्रतिशत जबकि अन्य पिछड़ा वर्ग में इनकी भागीदारी करीब चार प्रतिशत है।
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