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यूपी की सियासत – बड़ा किया जा रहा है “रावण”



सियासी गुणा गणित में कब कौन सा समीकरण बनेगा और नतीजा सिद्ध होता नजर आएगा ये कहना बड़ा मुश्किल है। लेकिन सियासी समीकरण बनते बिगड़ते रहते हैं।


ताजा समीकरण भीम आर्मी के प्रमुख चंद्रशेखर उर्फ रावण और समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव के बीच का है।


यूपी चुनाव में अभी एक साल से ज्यादा का समय है लेकिन जोड़तोड़ और गठजोड़ का जोड़ घटाना शुरु हो गया है।


दलित युवा नेता के रूप में उभरे भीम आर्मी के अध्यक्ष चंद्रशेखर आजाद और सपा प्रमुख अखिलेश यादव के बीच हाल के दिनों में तीन मुलाकातें हो चुकी हैं। विधानसभा चुनाव से पहले दोनों नेताओं की मुलाकात के सियासी मायने भी निकाले जा रहे हैं।


अब सवाल ये है कि 2017 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस और 2019 के लोकसभा चुनाव में बीएसपी के साथ गठबंधन कर चुके अखिलेश यादव राजनीति में क्या नया प्रयोग कर रहे हैं।


इसमें कोई दोराय नहीं है कि 90 के दशक में राममंदिर की लहर के बावजूद , ढांचा गिरने के बावजूद मुलायम सिंह यादव की समाजवादी पार्टी और कांशीराम की बहुजन समाज पार्टी ने उत्तर प्रदेश की राजनीति में जो करिश्मा किया था वो आज भी इतिहास है और ऐसा इतिहास जो 2019 में दोहराया नहीं जा सका।


अखिलेश यादव अगर भीम आर्मी के प्रमुख चंद्रशेखर रावण से मेलजोल बढ़ा रहे हैं तो इसका फायदा नुकसान क्या होगा ये भले दूर की कौड़ी हो लेकिन इसे नजरअंदाज कतई नहीं किया जा सकता । आपके लिए सबसे पहले ये जानना जरुरी है कि चंद्रशेखऱ रावण है कौन।


चंद्रशेखर पहली बार ऐसे आए चर्चा में


भीम आर्मी प्रमुख चंद्रशेखर उर्फ रावण पहली बार सहारनपुर में हुई एक जातीय हिंसा के बाद चर्चा में आए थे। ठाकुरों और दलितों के बीच हुए संघर्ष में दलित समाज के युवाओ में चंद्रशेखर लोकप्रिय बनकर उभरे। चंद्रशेखर की कांग्रेस से नजदीकियां भी दिखीं । चंद्रशेखर अस्पताल में भर्ती हुए थे तो प्रियंका उनका हाल-चाल लेने मेरठ के अस्पताल पहुंच गई थीं। इसके बाद दिल्ली में चंद्रशेखर को सीएए के खिलाफ प्रदर्शन करने के चलते दिल्ली पुलिस ने गिरफ्तार किया था तब भी प्रियंका उनके समर्थन में खड़ी नजर आई थीं, लेकिन चंद्रशेखर अब अखिलेश के साथ पींगे बढ़ा रहे हैं और उनके बीच मुलाकातों का सिलसिला भी शुरू हो गया है।


भीम आर्मी प्रमुख चंद्रशेखर आजाद की अखिलेश यादव से तीन मुलाकात हो चुकी है और यह मुलाकातें पश्चिमी यूपी के नए बनते समीकरण की ओर इशारा कर रही है।


राजनीतिक महात्वाकांक्षी लेकर युवा दलित नेता की पहचान के सहारे चंद्रशेखर चाहते है कि उत्तर प्रदेश में विधान सभा चुनाव से पहले बीजेपी के खिलाफ एक बड़ा गठबंधन बने ताकि बिहार की तरह दोबारा यूपी नहीं दोहराया जा सके। ऐसे में सभी दलों को एक साथ आना चाहिए। चंद्रशेखर चाहते हैं कि एक बड़े गठबंधन को बनाने के लिए इस जिद को छोड़ना होगा कि मुख्यमंत्री वही होंगे या उनकी पार्टी का। सूबे में जब तक मुख्यमंत्री पद का मोह नेता और पार्टियां नहीं छोड़ेंगे तबतक विपक्षी एकता नहीं हो सकेगी।



पंचायत चुनाव लड़ने की तैयारी में चंद्रशेखऱ


फिलहाल चंद्रशेखर पंचायत चुनाव लड़ने की तैयारी में हैं। चंद्रशेखर ये चुनाव अपनी पार्टी के बैनर पर लड़ने की तैयारी कर रहे हैं। आजाद समाज पार्टी उनका राजनीतिक दल है।


उत्तर प्रदेश में दलितों के नाम पर सबसे बड़ी पार्टी के रुप में पहचान रखने वाली बहुजन समाज पार्टी के बारे में चंद्रशेखऱ रावण का मानना है कि वहां कार्यकर्ताओं में जुनून नहीं है। बीएसपी में कार्यकर्ताओं के साथ प्रताड़ना होती है और फिर भी चुप्पी साधी जाती है तो फिर मनोबल टूटता है।


दलित राजनीति का चेहरा बन रहे चंद्रशेखर आने वाले दिनों में अपनी सियासत के जरिए मायावती का विकल्प बनने की तैयारी कर रहे हैं।


जय भीम – जय मीम का नारा


अब तक चंद्रशेखऱ की सभाओं में जय भीम, जय-मीम का नारा भी लगता रहा है। हांलाकि फिलहाल वो जय भीम-जय भारत के नारे पर जोर दे रहे हैं। उनके मुताबिक जय भीम किसी धर्म या जाति का नारा नहीं बल्कि अब क्रांति का नारा है।


क्या तैयारी है अखिलेश यादव की


समाजवादी पार्टी ने पिछले दिनों महान दल के प्रमुख केशव मौर्य और जनवादी पार्टी के संजय चौहान के साथ हाथ मिलाया है। अब सपा अखिलेश और चंद्रशेखर के बीच नजदीकियां बढ़ रही हैं।


भीम आर्मी के प्रमुख चंद्रशेखर और अखिलेश यादव के बीच तीन मुलाकातें के दौरान दोनों नेताओं के बीच काफी लंबी बातचीत हुई हैं। चंद्रशेखर आजाद ने अपनी आजाद समाज पार्टी के नाम से सियासी पार्टी गठित कर ली है और पिछले दिनों बुलंदशहर सीट पर हुई उपचुनाव में अपनी पार्टी का प्रत्याशी उतारा था, जिसे आरएलडी और कांग्रेस से ज्यादा वोट मिले थे। हालांकि, सपा को बुलंदशहर सीट पर हुए उपचुनाव ज्यादा वोट मिले थे। समाजवादी पार्टी ने बुलंदशहर सीट पर हुए उपचुनाव में आरएलडी को समर्थन किया था।


क्यों खास हो रहे हैं चंद्रशेखर उर्फ रावण


भीम आर्मी प्रमुख चंद्रशेखर ने दलित युवा नेता के तौर पर अपनी पहचान बनाई है। पश्चिम यूपी के तमाम जिलों में दलित मतदाता काफी अहम हैं, जो अभी तक बसपा का कोर वोट बैंक माने जाते हैं। 2019 के लोकसभा चुनाव में अखिलेश यादव, मायावती, चौधरी अजित सिंह मिलकर चुनाव लड़े थे। पश्चिम यूपी की ज्यादातर सीटों पर बसपा ने अपने प्रत्याशी उतारे थे और तीन सीटों पर आरएलडी चुनाव लड़ी थी। पश्चिम यूपी की चार सीटें बसपा जीतने में सफल रही थी जबकि सपा मुस्लिम बहुल सीटों पर ही जीत सकी थी।


इस लिहाज से चंद्रशेखर ने बीते वर्षों में जो पहचान बनाई है उससे कांग्रेस हो समाजवादी पार्टी दोनों ही इस नेता की गहराई टटोल रहे हैं। चूंकि कांग्रेस के पास यूपी में खोने को कुछ नहीं है और प्रियंका लगातार सक्रिय हैं इस लिए दलित वोट बैंक के लिए चंद्रशेखर हो या वोटचंक के लिहाज से किसान, मछुआरे, मजदूर, युवा , बेरोजगार जैसे तबके , कांग्रेस को सब चलेगा। लेकिन अगर समाजवादी पार्टी को अपनी खोई जमीन पानी है तो अखिलेश यादव को हर बढ़ते हाथ की लकीर को ऐसे पढ़ना होगा जिससे उनकी सियासी लकीर पर चोट ना पहुंचे।


टीम स्टेट टुडे


नयनिका
नयनिका

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