महाराष्ट्र की ट्रेनी आईएएस अधिकारी पूजा खेडकर का विवाद इन दिनों सुर्खियों में है। पूजा की नियुक्ति से लेकर बतौर प्रशिक्षु अधिकारी उनके व्यवहार पर सवालिया निशान हैं। नियुक्ति की जांच के लिए केंद्र सरकार ने समिति गठित की है। 11 जुलाई को गठित यह समिति 15 दिन के भीतर अपनी रिपोर्ट सौंपेगी। इसी बीच मंगलवार को पूजा खेडकर पर बड़ी कार्रवाई करते हुए उनकी ट्रेनिंग रद्द कर दी गई। पूजा खेडकर हाल के दिनों में अपनी मांगों और व्यवहार को लेकर चर्चा का विषय बनी हुई हैं। पूजा पर पुणे में बतौर प्रशिक्षु आईएएस अधिकारी रहते हुए अधिकारों के दुरुपयोग का आरोप लगा है।
पूजा खेडकर का विवाद क्या है?
2023 बैच की आईएएस अधिकारी पर पुणे में प्रशिक्षण के दौरान अपने अधिकारों के दुरुपयोग करने का आरोप लगा है। स्थानीय मीडिया रिपोर्ट्स में दावा किया गया कि पूजा ने अपनी नियुक्ति के बाद ही तरह-तरह की सुविधाएं मांगनी शुरू कर दीं, जो प्रशिक्षु अधिकारियों को नहीं मिलती हैं। इतना ही नहीं पूजा ने अपनी निजी ऑडी कार पर लाल-नीली बत्ती लगा दी।
पूजा की नियुक्ति को लेकर भी सवाल उठे हैं। महाराष्ट्र के आरटीआई कार्यकर्ता विजय कुंभार ने दावा किया है कि पूजा ओबीसी नॉन-क्रीमी लेयर श्रेणी से आईएएस अधिकारी बनीं जबकि उनके पिता के चुनावी हलफनामे में उनकी संपत्ति 40 करोड़ रुपये बताई गई है। उनकी आय भी नॉन क्रीम लेयर के लिए तय मानक से काफी ज्यादा है। आरटीआई कार्यकर्ता ने यह भी दावा किया है कि पूजा खेडकर ने आईएएस की नौकरी के लिए दिव्यांग कोटे का भी इस्तेमाल किया है। हालांकि, उन्होंने कई बार मेडिकल टेस्ट छोड़ दिए हैं।
ऑडी कार पर विवाद होने पर उनका वाशिम तबादला कर दिया गया। इसके अलावा पूजा की नियुक्ति मामले में केंद्र ने भी जांच बैठा दी गई। पूरे विवाद के बीच मंगलवार (16 जुलाई) को पूजा खेडकर की महाराष्ट्र में चल रही ट्रेनिंग रद्द कर दी गई। विवाद में फंसी पूजा खेडकर ने अपने लगे आरोपों पर जवाब दिया है। पूजा ने कहा, 'मैं विशेषज्ञ समिति के सामने गवाही दूंगी और समिति के निर्णय को स्वीकार करूंगी'। उन्होंने कहा, 'मेरी जो भी दलील है, मैं उन्हें समिति के सामने रखूंगी और सच्चाई सामने आ जाएगी।'
आईएएस अधिकारियों के लिए क्या नियम होते हैं?
सभी प्रशासनिक अधिकारी अखिल भारतीय सेवा (आचरण) नियम, 1968 के तहत काम करते हैं। वहीं आईएएस अधिकारियों की ट्रेनिंग भारतीय प्रशासनिक सेवा (परिवीक्षा) नियम, 1954 के तहत होती है। ये नियम केंद्र सरकार के कर्मचारियों पर लागू होते हैं।
अखिल भारतीय सेवा (आचरण) नियम, 1968 क्या है?
इसमें केंद्र सरकार के कर्मचारियों के काम करने के तौर-तरीकों, शिष्टाचार, सेवा के दौरान पालन करने वाले नियम आदि का जिक्र है। अपनी सेवा के दौरान किसी भी अधिकारी को जिन नियमों का पालन करना होता है उन्हें 'सामान्य नियम' कहा गया है। अखिल भारतीय सेवा (आचरण) नियम, 1968 की धारा 3 में सामान्य नियमों का उल्लेख है।
प्रत्येक सरकारी कर्मचारी के लिए सामान्य नियम:
पूर्ण निष्ठा बनाए रखेंगे।
कर्तव्य के प्रति समर्पण बनाए रखेंगे।
कोई ऐसा कार्य नहीं करेंगे जो सरकारी कर्मचारी के लिए अनुचित हो।
संविधान और लोकतंत्रिक मूल्यों के प्रति प्रतिबद्ध रहेंगे और उन्हें बनाए रखेंगे।
भारत की संप्रभुता और अखंडता, राष्ट्र की सुरक्षा, सार्वजनिक व्यवस्था, शालीनता और नैतिकता की रक्षा करेंगे और उन्हें बनाए रखेंगे।
उच्च नैतिक मानक और ईमानदारी का पालन करेंगे।
राजनीतिक तटस्थता बनाए रखेंगे।
कर्तव्यों के निर्वहन में योग्यता और निष्पक्षता के सिद्धांतों को बढ़ावा देंगे।
जवाबदेही और पारदर्शिता बनाए रखेंगे।
जनता के प्रति, विशेषकर कमजोर वर्ग के प्रति, जवाबदेही बनाए रखेंगे।
जनता के साथ शिष्टाचार और अच्छा व्यवहार बनाए रखना होगा।
केवल सार्वजनिक हित में निर्णय लेना होगा।
सरकारी कर्मचारी के रूप में अपने पद का दुरुपयोग नहीं करेंगे।
केवल योग्यता के आधार पर चुनाव करना, निर्णय लेना और सिफारिशें करना होगा।
निष्पक्षता के साथ कार्य करेंगे और किसी के साथ भेदभाव नहीं करेंगे।
ऐसा कुछ भी नहीं करेंगे जो किसी भी कानून, नियम, विनियम और स्थापित प्रथाओं के खिलाफ हो या हो सकता है।
अपने कर्तव्यों को करते समय अनुशासन बनाए रखना होगा।
प्राशासनिक अधिकारियों के लिए क्या नियम होते हैं?
आईएएस अधिकारियों की परिवीक्षा (प्रोबेशन) भारतीय प्रशासनिक सेवा (परिवीक्षा) नियम, 1954 के तहत होती है। दरअसल, परिवीक्षा किसी कंपनी, संस्था या सरकार में नए भर्ती हुए कर्मचारियों के लिए ट्रेनिंग का समय कहलाती है। परिवीक्षा के दौरान नए कर्मचारियों के प्रदर्शन और नौकरी के लिए उपयुक्तता का मूल्यांकन किया जाता है। परिवीक्षा अवधि के दौरान, नए कर्मचारियों को परिवीक्षाधीन कर्मचारी माना जाता है। परिवीक्षा अवधि अलग-अलग हो सकती है।
अब बात करते हैं आईएएस अधिकारियों की परिवीक्षा के बारे में। हर व्यक्ति जो भारतीय प्रशासनिक सेवा (प्रतियोगी परीक्षा द्वारा नियुक्ति) विनियम, 1955; के अनुसार सेवा में भर्ती होता है उसे दो साल के लिए परिवीक्षा पर सेवा में नियुक्त किया जाता है।
हालांकि, नियम में यह भी प्रावधान है कि केंद्रीय सरकार असमान्य परिस्थितियों में संघ लोक सेवा आयोग (यूपीएससी) से परामर्श करने के बाद परिवीक्षा की अवधि को कम या अधिक कर सकती है। जब परिवीक्षाधीन व्यक्ति केंद्रीय सरकार की संतुष्टि के अनुसार अपनी परिवीक्षा का समय पूरा कर लेता है तो उसे सेवा में स्थायी कर दिया जाता है।
परिवीक्षा के दौरान क्या नियम होते हैं?
दो साल की परिवीक्षा के दौरान प्रत्येक कर्मचारी को कुछ नियम पालन करने होते हैं। भारतीय प्रशासनिक सेवा (परिवीक्षा) नियम, 1954 में चयनित अधिकारियों के अनुशासन और आचरण का जिक्र किया गया है। लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय प्रशासन अकादमी (लबासना) में रहते हुए परिवीक्षाधीन व्यक्ति निदेशक के अनुशासनात्मक नियंत्रण में रहता है। परिवीक्षाधीन व्यक्ति को निदेशक के द्वारा दिए जाने वाले किसी भी सामान्य और विशेष आदेश का पालन करना होता है।
किसी भी केंद्रीय कर्मचारी पर लागू होने वाले अखिल भारतीय सेवा (आचरण) नियम, 1968 और अखिल भारतीय सेवा (अनुशासन और अपील) नियम, 1969 परिवीक्षाधीन व्यक्ति पर भी लागू होते हैं।
परिवीक्षा के दौरान नियमों की अवहेलना करने पर क्या कार्रवाई होती है?
यदि कोई परिवीक्षाधीन व्यक्ति नियमों को पालन करने में विफल रहता है तो उसे कार्रवाई का सामना करना पड़ सकता है। नियम के अनुसार, अलग-अगल मामलों में परिवीक्षाधीन व्यक्ति को सेवा से मुक्त किया जा सकता है या, उस स्थायी पद पर वापस भेजा जा सकता है, जिसे वह ग्रहण करने अधिकार रखता है या रख सकता है।
पूजा खेडकर को लेकर उठे विवाद के बीच लबासना के पूर्व प्रमुख संजीव चोपड़ा ने न्यूज एजेंसी पीटीआई से कहा कि सिविल सेवा में शामिल होने के लिए फर्जी जाति और विकलांगता प्रमाण पत्र का इस्तेमाल करने वालों को न केवल बर्खास्त किया जाना चाहिए, बल्कि उन्हें दिए जाने वाले प्रशिक्षण खर्च और वेतन की वसूली भी उनसे की जानी चाहिए। चोपड़ा ने कहा, 'इस प्रक्रिया में उनकी मदद करने वाले सभी लोगों की गहन जांच की जानी चाहिए और इस धोखाधड़ी में शामिल सभी लोगों को कानून के प्रावधानों के अनुसार दंडित किया जाना चाहिए।
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