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योगी की प्रशंसा में राज्य के सुखद भविष्य की आशा - हृदयनारायण दीक्षित


श्री हृदयनारायण दीक्षित जी

हृदयनारायण दीक्षित


विश्व कर्मप्रधान है। तुलसीदास ने भी लिखा है - कर्म प्रधान विश्व रचि राखा। सत्कर्म की प्रशंसा और अपकर्म की निन्दा समाज का स्वभाव है। लोकमंगल से जुड़े कर्मो की प्रशंसा से समाज का हितसंवर्द्धन होता है। प्रशंसा का प्रभाव प्रशंसित व्यक्ति पर भी पड़ता है। वह लोकहित साधना में पहले से और भी ज्यादा सक्रिय होता है। समाज प्रशंसनीय व्यक्ति का अनुसरण करता है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने उ0प्र0 के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के कामकाज की प्रशंसा की है। कोविड महामारी से जूझने में उनकी कर्मकुशलता की प्रशंसा विश्व स्वास्थ्य संगठन ने भी की और सर्वोच्च न्यायपीठ ने भी। वे संन्यासी हैं। संन्यासी निंदा और प्रशंसा में समभाव रहते हैं। तो भी राजकाल संचालन में उनकी प्रशंसा का विशेष महत्व है। वे अपने दायित्वों का निर्वहन पूरी निष्ठा के साथ करते हैं। अपने कामकाज में वे अतिरिक्त संवेदनशील हैं।


उत्तर प्रदेश देश का सबसे बड़ा राज्य है। प्रदेश की चुनौतियां भी विकराल हैं। यहां योगी जी के मुख्यमंत्री होने के पहले से ही कानून व्यवस्था की चुनौती थी। वातावरण अराजक था। उन्होंने सत्ता में आते ही इस चुनौती का मुकाबला किया। माफिया सरकार का निशाना बने। आमजनों में स्वाभाविक ही इसकी प्रशंसा हुई। उन्होंने महिलाओं से जुड़े अपराधों को समाप्त करने की रणनीति बनाई। उन्होंने ध्वस्त कानून व्यवस्था पर पहले ही कड़ा रूख अपनाया। कृषि, उद्योग, शिक्षा सहित सभी मोर्चो पर उनका काम प्रशंसनीय है। निवेशकों का आकर्षण बढ़ा है।



पुरस्कार, प्रशस्ति या सम्मान लोकहित के प्रेरक होते हैं। पुरस्कार का शाब्दिक अर्थ ही है - आगे बढ़ाने या लाने वाला कर्म। प्रशंसा भी सत्कर्मो का पुरस्कार है। लेकिन लोकव्यापी शुभ कर्म करने वाले महानुभावों के उदाहरण कम हैं। लोकमंगल में संलग्न महानुभाव प्रशंसा के लिए ही श्रेष्ठ कर्म नहीं करते। वे अपनी अनुभूति और कर्तव्य पालन के लिए सतत् कर्म करते हैं। योगी जी सर्वमंगल से जुड़े कार्यो के प्रति निष्ठाभाव रखते हैं। भारतीय चिंतन में ‘सर्वभूत हित’ से जुड़े कर्म संस्कृति हैं। लोकमंगल सामूहिक अभिलाषा है। लोकमंगल में सबकी आश्वस्ति है। वैदिक परंपरा में स्वस्तिवाचन का महत्व है। इन्द्र से स्वस्ति या कल्याण की प्रार्थना है - स्वस्ति नो इन्द्रः। इन्द्र कल्याण करते हैं। इन्द्र ही क्यों हमारे सभी देव कल्याण करते हैं। कल्याण करने वाले की प्रशंसा प्रशस्ति स्वाभाविक है। इसलिए स्वस्ति के याचक प्रशस्ति प्रशंसा के गायक भी हैं। भारत में समाज के सुख, स्वस्ति में कर्मरत मनुष्यों की भी प्रशंसा होनी चाहिए, होती रही है। संप्रति योगी जी की प्रशंसा हो रही है।



लोकमंगल समाज की मूल और स्वाभाविक अभिलाषा है। सुख स्वस्ति मुद मोद प्रमोद देने में कर्मरत महानुभावों की प्रशस्ति प्रशंसा सामाजिक कर्तव्य है। ऐसी प्रशंसा समाज को सकारात्मक बनाती है। ऋग्वेद में जल की प्रशस्ति - प्रशंसा है “जल में अमत है, औषधियां हैं।” ऋषि चाहते हैं कि देवों द्वारा भी जल की प्रशंसा हो। स्तुति है कि “हे देवो जल की प्रशंसा के लिए उत्साही बनो।” पृथ्वी माता है, आकाश पिता। ऋषि स्तुति है कि दोनो प्रशंसा प्रशस्ति सुनने के लिए हमारे पास आएं।” शुभ की प्रशंसा राष्ट्र हितैषी है। इससे सत्य शिव से परिपूर्ण लोकमत बनता है। शुभ कर्म के कर्ता प्रशंसनीय होते हैं।


सभी समाज अपनी सुगतिशीलता के लिए करणीय, अकरणीय और अनुकरणीय कार्यो की लिखित या अलिखित सूची बनाते हैं। किए जाने योग्य स्वाभाविक कार्य या कत्र्तव्य ‘करणीय’ होते हैं। समाज या व्यक्ति विरोधी कार्य अकरणीय कहे जाते हैं और ‘सर्वमंगल मांगल्ये’ साधने वाले कार्य अनुकरणीय। अनुकरणीय प्रशंसनीय भी होते हैं। प्रशंसनीय कर्ता की प्रशंसा होती है। लोक उनका प्रशस्ति गायन करता है। समाज का सत्य, शिव और सुन्दर करणीय और अनुकरणीय कार्यो में ही खिलता है और बढ़ता है। गीता दर्शन ग्रन्थ है लेकिन गीता दर्शन में भी यश कीर्ति की प्रशंसा है। दूसरे अध्याय में विषादग्रस्त अर्जुन से श्रीकृष्ण ने कहा कि कर्तव्य पालन न करने से तुम अपना यश खो दोगे - कीर्तिं च हित्वा। सम्मानित व्यक्ति के लिए अपयश तो मृत्यु से भी बड़ा है - अकीर्तिर्मरणात् अतिरिच्यते।” यश और प्रशंसा सौभाग्य है। अपयश मृत्यु से भी भयंकर है। श्रीकृष्ण ने भी यश प्रशंसा को महत्वपूर्ण बताया है।



यशस्वी के लिए कर्तव्य पालन जरूरी है। कर्तव्य भारतीय परंपरा का नीति निदेशक तत्व है। कर्तव्यपालन से यश बढ़ता है। आशावादी इसी के अनुसरण में सक्रिय रहते हैं। विपरीत परिस्थितियों में निराशा आती है, निराशा निष्क्रिय करती है। जैसे आशावादी और यशस्वी के लिए कर्तव्य निर्वहन जरूरी है, वैसे ही निराशा के दौरान भी कर्तव्य पालन की महत्ता है। निराशा के भी कर्तव्य हैं। निराशी को सक्रिय कर्म से अलग नहीं हटना चाहिए। एक काम में मन न लगे तो दूसरा, दूसरे में भी चित्त केन्द्रीभूत न हो तो तीसरा। सतत् सक्रियता या रजस गुण का ऊध्र्वगमन सत् में होता ही है। सत् का स्वभाव सतत् में ही खिलता है। निस्संदेह जीवन रहस्यपूर्ण है। हरेक काल या मुहूर्त की कार्यविधि का ज्ञान या विश्लेषण अभी भी अधूरा है लेकिन कर्तव्यपालन सक्रियता में यश और आत्मसंतोष मिलता ही है। इसकी प्रशंसा होती है। सम्मान, यश, प्रशंसा, प्रशस्ति के अपने सामाजिक उपयोग हैं। इस आस्तिकता की अपनी आश्वस्ति है। इसी में स्वस्ति है। यश, कीर्ति और प्रतिष्ठा प्रशंसा भी है।



धर्मान्तरण कराना अपराध है। इसका विरोध संविधान सभा में भी हुआ था। धर्मान्तरण के माध्यम से भारतीय समाज की आंतरिक शक्ति कमजोर करने का अपराध जारी है। यहां भय, लोभ, और षड़यंत्र से धर्मांतरण जारी रहे हैं। धर्मान्तरित व्यक्ति की निष्ठा भारतीय जीवन रचना में नहीं होती। धर्मातरित व्यक्ति भारत माता की जय नहीं बोलते। उनकी देव निष्ठा भी बदल जाती है। धर्मांतरण वस्तुतः राष्ट्रांतरण होता है। अन्य सरकारों ने वोट बैंक तुष्टीकरण के कारण धर्मान्तरण जैसे गंभीर अपराध की उपेक्षा की लेकिन योगी सरकार ने इस अपराध पर धावा बोला। यह प्रशंसनीय कार्य है। आम जनमानस योगी जी की प्रशंसा कर रहा है। लेकिन अलगाववादी साम्प्रदायिक ताकते इसका विरोध कर रही हैं। तो भी योगी सरकार का निश्चय सुस्पष्ट है। धर्मांतरण के विरूद्ध योगी जी का अभियान जारी है।


संप्रति जनसंख्या का विषय राष्ट्रीय चुनौती है। जनसंख्या की लगातार वृद्धि खतरनाक है। प्रकृति प्रदत्त सभी साधन सीमित हैं। मनुष्य ने अपनी बुद्धि और क्षमता का सदुपयोग किया है। विज्ञान और ज्ञान की अन्य शाखाओं के माध्यम से अनेक उपयोगी साधनों का आविष्कार हुआ है लेकिन बढ़ती जनसंख्या के कारण ऐसे उपयोगी साधन भी बढ़ती जनसंख्या के सापेक्ष बहुत कम हैं। सड़के भी कम हो रही हैं। चिकित्सा साधन भी कम हैं। शिक्षण संस्थाएं भी आवश्यकता से कम पड़ रही हैं। योगी जी ने जनसंख्या नीति जारी की है। इसको लेकर कई राजनैतिक समूहों द्वारा हल्ला मचाया जा रहा है। लेकिन योगी जी अडिग व अटल हैं। उनके राजनैतिक साहस की प्रशंसा हो रही है। जनसंख्या वृद्धि राष्ट्रीय समस्या है। वे उ0प्र0 में इस चुनौती से टकरा रहे हैं।


योगी की प्रशंसा में राज्य के सुखद भविष्य की आशा है। अनेक योजनाएं फलीभूत हो चुकी है। अनेक शुरू हो चुकी हैं। अनेक प्रत्याशित हैं। उनकी प्रशंसा अप्रत्याशित नहीं है। इस प्रशंसा के मूलभूत आधार हैं। उ0प्र0 बदल रहा है। सरकार और जनता के बीच सम्वाद बढ़ा है।


लेखक श्री ह्रदयनारायण दीक्षित जी उत्तर प्रदेश विधानसभा के अध्यक्ष हैं।


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