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जिला पंचायत चुनाव में बीजेपी की राह हो रही है निष्कंटक, अब तक 21 सीटों पर उम्मीदवार निर्विरोध जीते



उत्तर प्रदेश का त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव दिन पर दिन दिलचस्प होता जा रहा है। जब ग्राम प्रधान स्तर के नतीजे आए तो समाजवादी पार्टी बेहद खुश हुई। अब जिला पंचायत अध्यक्ष पद का चुनाव हो रहा है तो बीजेपी का रथ निष्कंटक आगे बढ़ता जा रहा है।


26 जून को नामांकन के दिन ही बीजेपी के 17 प्रत्याशियों का निर्विरोध निर्वाचन तय हो गया था तो मंगलवार आते आते नाम वापसी के दिन चार जिलों में विपक्षी दल के नेताओं ने अपना नामांकन पत्र वापस ले लिया ।


भारतीय जनता पार्टी अब पीलीभीत, शाहजहांपुर, बहराइच के साथ सहारनपुर की सीट पर काबिज हो चुकी है। अब तक बीजेपी के 21 और समाजवादी पार्टी का एक निर्विरोध अध्यक्ष निर्वाचित हुए हैं। अब तीन जुलाई को 53 सीटों पर मतदान होगा।


प्रदेश में अब 37 सीटें ऐसी हैं जिनमें जिनमें केवल दो-दो उम्मीदवार ही चुनाव मैदान में हैं। बची हुई सीटों पर मतदान तीन जुलाई को होगा। उसी दिन शाम को मतगणना भी होगी।


जिला पंचायत अध्यक्ष सहारनपुर के चुनाव में बसपा समर्थित जॉनी कुमार जयवीर ने जिला निर्वाचन अधिकारी के पास जाकर अपना नामांकन पत्र वापस ले लिया। अब यहां भाजपा के मांगेराम काबिज होंगे। जॉनी उर्फ जयवीर के नामांकन वापस ले लेने से जिला पंचायत में 20 वर्ष बाद गैर बसापाई दल का कब्जा हो गया है।


पीलीभीत में समाजवादी पार्टी ने बीजेपी से आने वाले सदस्य स्वामी प्रवक्ता नंद को अपना प्रत्याशी बनाया था। स्वामी प्रवक्ता नंद के अपना नामांकन पत्र वापस लेने से अब भाजपा की प्रत्याशी डॉ दलजीत कौर निर्विरोध अध्यक्ष हो गई है। यहां पर पूर्व मंत्री हेमराज वर्मा ने स्वामी प्रवक्ता नंद को समाजवादी पार्टी में शामिल कराया था।


कांग्रेस छोड़कर भाजपा में आने वाले जितिन प्रसाद ने शाहजहांपुर में अपना प्रभाव दिखा दिया है। शाहजहांपुर में मंगलवार को समाजवादी पार्टी की जिला पंचायत अध्यक्ष पद की प्रत्याशी वीनू सिंह ने सुबह भाजपा की सदस्यता ले ली। इसके बाद वह नामांकन वापस लेने पहुंची। उनके नामांकन वापस लेने के बाद से अब भाजपा प्रत्याशी संगीता यादव का निर्विरोध तय हो गया।


बहराइच समाजवादी पार्टी की उम्मीदवार नेहा अजीज ने अपना नाम वापस ले लिया, जिससे भाजपा उम्मीदवार मंजू सिंह का निर्विरोध चुना जाना तय हो गया।


पंचायत चुनाव देखने में जितने सीधे और सरल लगते हैं इनकी राजनीति उतनी ही पेंचीदा है। सरकार बदलने के साथ ही कई जिला पंचायत अध्यक्ष भी बदल जाते हैं। ऐसे में 2022 के विधानसभा चुनाव से पहले हो रहे पंचायत चुनाव दरअसल राजनीतिक दलों के बीच दांवपेंच आजमाने के वार्मअप राउंड से कम नहीं है।


टीम स्टेट टुडे


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