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कोरोना के लगातार बढ़ते मामलों ने उत्तर प्रदेश के हालात चिंताजनक बना दिए हैं। अगर एक तरफ देश और प्रदेश की जनता ने कोरोना के प्रति सतर्कता में घनघोर लापरवाही की है तो दूसरी तरफ सरकार भी देर आए दुरुस्त आए अंदाज में फैसले ले रही है। सिर्फ इतना ही नहीं है स्थिति भयावह होने के बावजूद सरकारी फैसलों में धन-पशुओं का दबाव भी साफ दिखाई दे रहा है।
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने रविवार को अपने सरकारी आवास पांच कालीदास मार्ग पर हाईलेवल मीटिंग की। इस मीटिंग में कोरोना की दूसरी लहर से प्रदेश में पनपे हालात की समीक्षा की गई। बैठक में मुख्यमंत्री ने निर्देश दिया कि कक्षा एक से कक्षा बारह तक सभी स्कूल 30 अप्रैल तक बंद रखे जाएंगे। ये आदेश सभी सरकारी और गैर सरकारी स्कूलों पर लागू होगा। इस दौरान सूबे के प्रत्येक जिले के सभी कोचिंग सेंटर भी बंद रहेंगे। हांलाकि इस दौरान पहले से तय परीक्षाएं हो सकेंगी और आवश्यकता के मुताबिक शिक्षक और अन्य स्टाफ बुलाया जा सकता है।
आपको बता दें इस आदेश का अंतिम हिस्सा ही सरकार पर दबाव को दिखा रहा है। बीते साल स्कूल-कालेज का धंधा मंदा रहा। सरकारी आदेश के बाद किसी को फीस बढ़ाने का भी मौका नहीं रह गया। इस बार ज्यादातर स्कूलों की फीस दुगनी नहीं तो डेढ़ गुना जरुर बढ़ी है। शिक्षा को व्यापार बनाने वालों का ये सीज़न चल रहा है। स्कूलों में दाखिले और फीस को लेकर अभिभावकों पर ना सिर्फ दबाव है बल्कि कापी-किताब, स्टेशनरी और ड्रेस के नाम पर भी बाजार में अनाप-शनाप दाम वसूले गए हैं। बीते महीने में जब स्कूल खुले तो ताबड़तोड़ बिजनेज बढ़ाया गया। किताबों के सेट में एक दो किताबें कम करके बाद में पूरे दाम वसूलना, किसी तरह का डिस्काउंट ना देना, ड्रेस के दाम बढ़ा कर लेना ऐसी शिकायतें थी जिस पर सरकार ने आंख और कान बंद कर रखे थे।
एक तरफ शिक्षा माफिया अगला-पिछला बराबर करने में जुटे थे तो बीच में कोरोना के बढ़ते मामलों ने ब्रेक लगा दिया। अब सरकार के सामने जनता की सुरक्षा की चिंता है तो शिक्षा माफियाओं को अपना धंधा और ऊपर तक जाने वाले कट की चिंता है। जिले जिले में जो प्राइवेट स्कूल शिक्षा विभाग से जोड़गांठ कर मोटी रकम खाते खिलाते थे उनको सब चौपट नजर आने लगा है। दूसरी तरफ भ्रष्ट शिक्षा विभाग में ऊपर तक रकम देने का दावा करने वाले अधिकारी कर्मचारी भी रिश्वत की मोटी रकम चाहते हैं।
ये स्थिति सिर्फ निजी स्कूलों की ही नहीं बल्कि शिक्षा विभाग के भ्रष्टाचार से सरकारी स्कूल और वहां का स्टाफ भी परेशान है। अक्सर सरकारी स्कूलों के शिक्षकों को वेतन, भत्तों से लेकर शिक्षा विभाग में पड़ने वाले किसी भी काम के लिए विभाग में बैठे अधिकारियों और कर्मचारियों को रिश्वत देनी पड़ती है।
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बीते साल लॉकडाउन और कोरोना के प्रकोप के चलते शिक्षा विभाग में बैठे अधिकारियों कर्मचारियों को महीने में सिर्फ एक बार वेतन पर गुजारा करना पड़ा है वो भी इस बार अगला पिछला सब बराबर कर लेना चाहते हैं।
अगर आपको लगता है कि ये महज बातें है तो लखनऊ के सिटी मांटेसरी स्कूल, लखनऊ पब्लिक स्कूल, दिल्ली पब्लिक स्कूल, रानी लक्ष्मी बाई स्कूल या इन जैसे किसी भी स्कूल के अध्यापक या अभिभावक से बात कर लीजिए असलियत खुद ब खुद आपके सामने आ जाएगी।
लखनऊ के जिलाधिकारी अभिषेक प्रकाश अगर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के हर इशारे को समझ कर अपने दायित्वों का पालन करने में बेहद सख्त हैं तो दूसरी तरफ लखनऊ के डीआईओएस मुकेश कुमार उप मुख्यमंत्री डॉ.दिनेश शर्मा के साथ अपने संबंधों को लेकर इतने आश्वस्त हैं कि राजधानी लखनऊ में शिक्षा माफियाओं को जैसे खुली छूट दे रखी है।
इसी का नतीजा रहा कि बीते दिनों जिलाधिकारी के आदेश के बाद भी जब सिटी मांटेसरी स्कूल, लखनऊ पब्लिक स्कूल जैसे विद्यालयों में कामकाज चलता रहा तो स्कूल भवन सील करने पड़े।
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ताजा प्रकरण में भी सरकार के आदेश से स्पष्ट है कि शिक्षा माफिया सरकार पर दबाव बनाने में सफल रहे हैं। आने वाले दिनों में ज्यादातर सरकारी और निजी स्कूलों का लगभग पूरा स्टाफ जाता हुआ नजर आएगा। जबकि बीते वर्ष कोविडकाल में यूपी सरकार ने ऑनलाइन क्लासेज की जो व्यवस्था की थी अगर बीते दिनों उस प्रक्रिया को विस्तार दिया होता और निजी संस्थानों को भी इसके लिए प्रोत्साहित किया होता तो आज स्थिति अगल होती और व्यवस्थाएं पटरी पर होतीं।
ऐसा नहीं है कि लोग अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा या मंहगे स्कूलों में भेजने से कतराते हैं। जिनके पास सामर्थ्य है वो ऐसा करते हैं लेकिन बदली परिस्थतियों में नई विधियों के प्रयोग का सिर्फ ज्ञान देकर खानापूर्ति करने का अंजाम यही होता है।
टीम स्टेट टुडे
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