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कोरोनाकाल में घर में छिपे रहे यूपी के स्वास्थ्य मंत्री, सीएम की सख्ती के बाद दिखे जयप्रताप सिंह





अगर भारतीय जनता पार्टी के कार्यकर्ता और नेता प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री की कार्यशैली पर सवाल उठाने लगें तो ऐसे व्यक्ति का मंत्रीपद पर रहना कतई उचित नहीं।


बीते तीन हफ्ते में उत्तर प्रदेश कोरोना संक्रमण से मरणासन्न हो गया। संक्रमण की स्थिति इतनी भयावह है कि एक-एक दिन में तीस-तीस हजार मामले सामने आए। प्रदेश की राजधानी लखनऊ में लोग ऑक्सीजन के बगैर तड़प कर मर गए। लोगों को अस्पतालों में बेड नहीं मिले, दवाइयां नहीं मिलीं। सिर्फ इतना नहीं सरकार द्वारा जारी नंबरों पर काल करने पर मदद तक नहीं मिली। कोविड कंट्रोल रुम किसी काम का नहीं रह गया। जिले का सीएमओ गायब हो गया। जिसे सीएमओ से ऊपर बिठाया गया वो भी किसी लायक नहीं निकला।


ऐसे हालात में जिस पर सूबे की सेहत की पहली जिम्मेदारी थी वो स्वास्थ्य मंत्री जय प्रताप सिंह बीते तीन हफ्ते से गायब रहा। संक्रमण चरम पर पहुंच गया लेकिन मंत्री गायब रहा। प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ कोरोना संक्रमित होने के बावजूद ना सिर्फ अधिकारियों के साथ वर्चुअल बैठक लेकर स्थिति को नियंत्रित करने की कोशिश करते रहे बल्कि ठीक होते ही फील्ड में जाकर अस्पतालों, वैक्सीनेशन सेंटर और हर महत्वपूर्ण जगह पर खुद दौरा किया। साथ ही ये भी ताकीद कर दिया कि जिम्मेदार तुरंत बाहर निकलें और परिस्थिति का सामने से सामना करें।


समाजसेवा के नाम पर नेता बने प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री जय प्रताप सिंह का आचरण किसी सरकारी अस्पताल के चपरासी से भी गया बीता रहा। मुख्यमंत्री की फटकार के बाद मंत्रीपद की जैसे नौकरी कर रहे जय प्रताप सिंह कुर्सी जाने की नौबत लगी तो फील्ड में आकर औपचारिकता शुरु कर दी।


बीते तीन हफ्ते से गायब चल रहे स्वास्थ्य मंत्री को सीएम की सख्ती के बाद रविवार को घर से बाहर निकलना ही पड़ गया। जय प्रताप ने लोकबंधु कोविड अस्पताल व बलरामपुर अस्पताल का निरीक्षण किया। शाम करीब चार बजे वह सफेद कुर्ते-पायजामे में लोकबंधु अस्पताल पहुंचे। यहां करीब डेढ़ घंटे तक रुकने के बाद वह बलरामपुर अस्पताल को रवाना हो गए।


आपको बता दें कि बीते तीन हफ्ते से स्वास्थ्य मंत्री का कहीं अता-पता नहीं था। इसे लेकर इंटरनेट मीडिया पर भी संकटकाल में उनके गायब रहने की खूब आलोचना हुई थी। इस दौरान वह मीडियाकर्मियों तक का फोन नहीं उठा रहे थे। रोजाना दम तोड़ रहे मरीजों की आह सुनने के बाद भी वह किसी भी अस्पताल में उनकी परेशानियों का न तो जायजा लेने गए और न ही रोगियों की भर्ती व आक्सीजन इत्यादि की समस्याओं का समाधान करा सके। इसके चलते सीएमओ डा. संजय भटनागर से लेकर कोविड कमांड कंट्रोल रूम तक के कर्मचारी बेपरवाह हो गए।


कोविड प्रबंधन में लगाए गए डा. जीएस वाजपेयी तो सरकार की कोशिशों को पलीता लगाने में लगे रहे। लोगों से बात करना तो दूर जीएस वाजपेयी भी सीन से गायब ही हैं। सुस्त मंत्री और अव्यवस्था के चलते मरीज लगातार दम तोड़ते रहे। जब सीएम योगी ने बेहद सख्त और तल्ख तरीके से चेतावनी देते हुए कहा कि कि सभी जिम्मेदार फील्ड में निकलें और मरीजों की समस्याओं का समाधान कराएं। बेड व आक्सीजन का प्रबंध करें। इसके बाद स्वास्थ्य मंत्री ने दोनों अस्पतालों का दौरा किया।


यूं तो पत्रकारिता सिर्फ सूचना देने तक सीमित रहनी चाहिए लेकिन संक्रमण के इस आपातकाल में प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री जय प्रताप सिंह का जो रवैया रहा है उसे देखकर ये कहना गलत नहीं होगा कि सीएम योगी को प्रदेश के करोड़ों लोगों की सेहत के साथ खेलने वाले ऐसे मंत्री को तत्काल बर्खास्त कर देना चाहिए। क्योंकि ये तो मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी जानते हैं कि उनके मंत्रिमंडल के कई मंत्री अपनी काबिलियत कम और संघ या दिल्ली की सेटिंग के चलते मलाई काट रहे हैं।


टीम स्टेट टुडे


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