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प्रदेश की नौकरशाही हमेशा से ही राजनीतिक लीडरों को अपनी मनमर्ज़ी से नचाती रहीं है । तक़रीबन 20 साल से किसी भी सरकार के मुख्य बिंदु बने एक चर्चित नौकरशाह का सुनहरा सफ़र शुरू हुआ 2006 से जब वह एक केंद्रीय मंत्री के सिपहसलार बने और कोयला खदानों का सारा मैनेजमेंट करने लगे । दुर्भाग्यवश उन मंत्री जी का वो आख़िरी राज काज साबित हुआ ।
2007 के विधान सभा चुनावों में सत्ता परिवर्तन की ललक में बहन जी के विश्वास पात्र बन गये और अगले पाँच साल 2012 तक उत्तर प्रदेश सरकार के मुख्य स्तंभ बने रहे । दुर्भाग्यवश बहन जी को 2012 के बाद सत्ता सुख हासिल नहीं हुआ ।
2012 में सत्ता परिवर्तन के बाद एक साल तक गुमनामी में रहने के बाद आख़िर जादू चल ही गया और फिर हुज़ूर ने 2013 से 2017 तक खूब मक्खन मलाई खायी और दुर्भाग्यवश समाजवादी युवराज की भी सत्ता चली गई ।
2017 से 2023 तक दिल्ली दरबार में लगातार हाज़िरी लगाने के बाद भी लंबे क़द के नौकरशाह जी का बाबा के मठ में प्रवेश नहीं हो पाया और लोग क़यास लगाने लगे कि शायद सेवानिवृत के बाद सेठ साहेब की तरह पैसों के दम पर उनके कुकर्मों पर चादर भी पड़ जाये और दिल्ली की गद्दी भी मिल जाये । गुजरात और मठ की लड़ाई में आख़िरकार गुजराती साहेब ने 2-3 महीने पहले ही एक सरकारी नियुक्ति करा ही दी और हुज़ूर ने अपनी पूरी निष्ठा दिखाते हुए SHINING INDIA की तर्ज़ पर हवाबाज़ी शुरू कर दी । और फिर जिस पनौती को गोरखपुर के मठ और महंत जी का आशीर्वाद पिछले 7-8 साल में नहीं मिल पाया , दिल्ली दरबार का आशीर्वाद मिलते ही पनौती ने अपना काम किया और बाबा की ज़मीन ही खिसका दी ।
पनौती के तो अभी पूरे पाँच साल बाक़ी हैं और उससे पहले 2027 में प्रदेश के इलेक्शन में क्या पनौती अपने पुराने इतिहास को दोहरा पायेंगे ? जब शनिचर ग्रहों ने 2 महीनों में इतना नुक़सान कर दिया तो अभी तो 3 साल बाक़ी है , देखते हैं कि बाबा की सत्ता हिलती है कि नहीं ।
अब आप बताओ पनौती कौन । ये क्या एक महज़ संयोग है या फिर किसी की फ़ितरत है , या फिर किसी प्रयोगशाला के तरकश के निकले हुए तीर । सत्ता को सलाम कर सहभागी बने और साथ ही सुनिश्चित किया वो पार्टी दुबारा सत्ता में ना आ पाए । लेकिन ज्वलंत सवाल यह है कि आख़िर क्या वजह है कि राजनीतिक पार्टियों और सरकारों का काम इनके बिना चल नहीं सकता है ।
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