शिव की नगरी काशी में धधकती चिताओं के बीच खुद महादेव होली खेलने पहुंचे। मसाने में होली खेले दिगंबर ये परंपरा वाराणसी में प्राचीन काल से चली आ रही है। रंगभरी एकादशी के अगले दिन महाश्मशान मणिकर्णिका घाट महादेव शिव की यह लीला रंग पर्व पर जीवंत हो उठी। मान्यता है कि धधकती चिताओं के बीच महाशमशान मणिकर्णिका घाट पर चिता भस्म से होली खेलने खुद अड़भंगी भगवान शिव आते हैं।
मणिकर्णिका घाट पर बाबा मशाननाथ का महादेव शिव के भस्मांगरागाय महेश्वराय स्वरूप का दिव्य श्रृंगार किया गया।
भोर से ही पूजा अनुष्ठान साज सज्जा का क्रम चला और घाट महादेव के भस्म से सराबोर हो गया। फाग के राग गूंजे और महादेव शिव जीवन-मरण के दिव्य दर्शन को अपने भक्तों को उत्सव रचाकर समझाने भक्तों के बीच आ गए। चिता भस्म को लगाकर यह संदेश दिया कि जीवन का अंतिम निष्कर्ष यही है। बाबा के साथ उनके गण और भक्त, सामान्य जीव भी चिता भस्म लगाकर शिवस्वरूप हो गए।
तमाम भूत-प्रेत पिशाच, यक्ष गंधर्व, किन्नर सभी बाबा की टोली में शामिल होकर मस्त-मलंग महाश्मशान की इस होली का आनंद लेने पहुंचे तो राग विराग की नगरी काशी भी निहाल हो गई। चिता भस्म की होली के पूर्व महाश्मशान नाथ की आरती की परंपरा का निर्वहन किया गया। संगीत घरानों के कलाकार बाबा की महिमा का गान करने पहुंचे।
टीम स्टेट टुडे
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