रिव्यू मीटिंग में पीएम मोदी ने सख्त किए तेवर
केंद्र सरकार द्वारा दिए गए वेंटिलेटर्स का होगा ऑडिट
PM केयर्स के तहत दिए गए वेंटिलेटर्स
पंजाब को मिले 320 इस्तेमाल किए 83
राजस्थान, दिल्ली, तेलंगाना, यूपी और बिहार में भी धूल फांकते वेंटिलेटर्स
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राज्यों के साथ कोरोना संक्रमण पर रिव्यू मीटिंग की। ये मीटिंग शनिवार को हुई थी। इस मीटिंग में जानकारियां साझा करते हुए एक समय ऐसा आया जब राज्यों के मुख्यमंत्रियों की पोलपट्टी खुल गई और प्रधानमंत्री मोदी आगबबूला हो गए।
विभिन्न राज्यों के मुख्यमंत्रियों की लापरवाही से आहत प्रधानमंत्री ने समीक्षा बैठक के दौरान ही केंद्र की ओर से भेजे गए वेंटिलेटर्स की वर्तमान स्थिति का ऑडिट करने के निर्देश अधिकारियों को दे दिए।
मामला पकड़ में ना आता अगर बीते हफ्ते पंजाब से AAP विधायक कुलदीप सिंह संधवां ने फरीदकोट के एक सरकारी अस्पताल के एक कमरे में बेकार पड़े वेंटिलेटर्स की तस्वीर ट्वीट ना की होती। इस ट्वीट के बाद पंजाब समेत कई राज्यों में हंगामा मच गया।
कोरोना वायरस की दूसरी लहर के बीच, वेंटिलेटर्स की कमी को लेकर केंद्र व राज्य सरकारों को खासी आलोचना झेलनी पड़ी थी।
राज्यों की लापरवाही उजागर होते ही बहानेबाजियां भी शुरु हो गईं। अधिकतर राज्यों ने यही कहा कि उनके पास वेंटिलेटर्स चलाने के लिए ट्रेन्ड कर्मचारी नहीं हैं। कुछ ने हमिडीफायर किट्स और नॉजल्स न होने की बात कही जो वेंटिलेटर्स चलाने के लिए जरूरी हैं। कई राज्यों ने यहां तक कहा कि उनके पास वेंटिलेटर्स तो हैं लेकिन कोई आईसीयू फैसिलिटी नहीं है या उन्हें इंस्टॉल करने की जगह नहीं है। कई राज्यों में डॉक्टर्स वेंटिलेटर्स नहीं इस्तेमाल कर रहे हैं, इस डर से कि कहीं वे गड़बड़ न कर जाएं और मरीजों की जान पर न बन आए।
पंजाब का हाल
पंजाब के तीन मेडिकल कॉलेजों को पीएम केयर्स फंड के तहत 320 वेंटिलेटर्स मिले थे। इनमें से केवल 83 ही काम कर रहे थे। इन 83 में से भी 48 को इस वजह से नहीं इस्तेमाल किया गया क्योंकि उनकी हाल ही में मरम्मत हुई थी और डॉक्टर्स को उनके ठीक से काम करने पर शक था।
बिहार का हाल
बिहार के 13 जिलों में भेजे गए 109 वेंटिलेटर्स में से लगभग आधे यूं ही बेकार पड़े हुए हैं क्योंकि ट्रेन्ड कर्मचारी नहीं हैं। उत्तर प्रदेश में स्वास्थ्य विभाग के सूत्रों ने कहा कि वहां करीब 20% वेंटिलेटर्स ऐसे ही पड़े हुए हैं।
यूपी का हाल
यूपी को मिले 200 वेंटिलेटर्स में से करीब 20% यूं ही रखे हैं। यहां के स्वास्थ्य मंत्री जय प्रताप सिंह ने कहा, "मुझे पता है कि कुछ जिलों में वेंटिलेटर्स यूं ही पड़े हैं। क्योंकि टेक्नीशियंस की कमी है। हम स्टाफ को ट्रेनिंग दे रहे हैं।
दक्षिण का हाल
तेलंगाना में, महबूबनगर सरकारी अस्पताल और निजामाबाद मेडिकल कॉलेज में ट्रेन्ड स्टाफ की कमी के चलते 30-30 वेंटिलेटर्स धूल फांक रहे हैं।
राजस्थान का हाल
राजस्थान में 1,900 में से केवल 500 वेंटिलेटर्स इंस्टॉल किए गए हैं। यहां के स्वास्थ्य मंत्री रघु शर्मा ने कहा कि उन्हें लगता है कि वेंटिलेटर्स इस्तेमाल करते वक्त बिगड़ सकते हैं। शर्मा ने कहा, शुरू में करीब 300 वेंटिलेटर्स इंस्टॉल किए गए थे, मगर ऑक्सिजन कम्प्रेसर और सेंसर बंद हो गए। राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की सरकार ने तो केंद्र की तरफ से आए वेंटिलेटर और अन्य मदद निजी अस्पतालों और पैसे वालों को किराए पर दे दिए।
दिल्ली का हाल
दिल्ली में हालात और भी बुरे हैं। 2014 में अरविंद केजरीवाल की सरकार बनने के बाद प्रस्तावित अस्पतालों का निर्माण कार्य रोक दिया गया। जो अस्पताल पहले से मौजूद थे वहां एक भी बेड नहीं बढ़ाया गया। मोहल्ला क्लीनिक के नाम पर जमकर भ्रष्टाचार हुआ। कोरोना की पहली लहर में केंद्र की तरफ से जो कदम उठाए गए उसे अपना बता कर फोटो सेशन करवाए गए। यही हाल कोरोना की दूसरी लहर में रहा। सीएम केजरीवाल ने दवा, ऑक्सीजन, अस्पताल, बेड हर बात का रोना टीवी पर आकर रोया लेकिन जो मदद केंद्र की तरफ से दी गई वो उन्हीं के विधायकों पार्षदों ने मोटी रकम लेकर ब्लैक में जरुरतमंदों को बेच दी। ऐसे आरोप केजरीवाल सरकार पर खुलेआम लग रहे हैं। जिसमें आम लोगों के साथ साथ कांग्रेस और बीजेपी के कई वरिष्ठ नेता सबूत तक दे रहे हैं।
कलई खुलने के बाद शुरु हुआ आरोप-प्रत्यारोप का दौर
पंजाब सरकार ने आरोप लगाया कि PM केयर्स के तहत भेजे गए वेंटिलेटर्स खराब क्वालिटी के थे। केंद्र ने पंजाब के अस्पतालों को जिम्मेदार ठहराया कि उन्हें वेंटिलेटर्स चलाना नहीं आता। राजस्थान में भी मुख्यमंत्री और उनके स्वास्थ्य मंत्री केंद्र पर 'खराब वेंटिलेटर्स की सुध न लेने' की तोहमत लगाते रहे हैं।
बीजेपी सांसद राज्यवर्द्धन सिंह राठौड़ ने ट्वीट किया कि 'या तो ये वेंटिलेटर्स अभी तक खोले नहीं गए हैं या फिर उनमें से कुछ निजी अस्पतालों को किराए पर दे दिए गए हैं।
जन स्वास्थ्य है राज्यों का विषय
संविधान की सातवीं अनुसूची की दूसरी सूची के अनुसार जन स्वास्थ्य और सफाई, अस्पताल एवं औषधालय राज्यों के अधिकार में आते हैं। इस कारण महामारी के समय लोगों के स्वास्थ्य की रक्षा करना और उन्हें महामारी से बचाने की जिम्मेदारी राज्यों की अधिक हो जाती है। हालांकि चिकित्सा एवं स्वास्थ्य संबंधी कुछ कार्यक्रम जैसे चिकित्सा शिक्षा, परिवार नियोजन तथा जनसंख्या नियंत्रण केंद्र सरकार के अधिकार क्षेत्र में आते हैं। समग्र रूप से देखें तो देश में जन स्वास्थ्य कुछ मायनों में केंद्र की जिम्मेदारी है और ज्यादातर मामलों में राज्यों की।
इन्हीं जिम्मेदारियों में केंद्र और राज्यों के बीच तालमेल न होने के कारण टकराव होता है और जिसका नुकसान जनता को उठाना पड़ता है।
सबसे बड़ी बात तो ये है पीएम मोदी और बीजेपी से चिढ़ के चलते विपक्षी राजनीतिक दलों ने ना सिर्फ वैक्सीन का विरोध किया बल्कि जो चिकित्सा सुविधाएं कोरोनाकाल में राज्यों को दीं गईं उनका इस्तेमाल तक नहीं किया गया और लोगों की जान जाती रही।
टीम स्टेट टुडे
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