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क्या होता है ग्लेशियर? उत्तराखंड के वो ग्लेशियर जहां हो गया छेद – तस्वीरों में देखिए

Writer's picture: statetodaytvstatetodaytv


उत्तराखंड के चमोली ज़िले में नदियों का तांडव आपने भी देखा होगा। रविवार सुबह सवा दस बजे के आस-पास कुछ नदियों में अचानक पानी बढ़ गया। नंदा देवी ग्लेशियर का एक हिस्सा टूटने से भूस्खलन हुआ और धौली गंगा, ऋषि गंगा और अलकनंदा नदियों में पानी का स्तर बढ़ गया। जानमाल का भारी नुकसान हुआ। एनटीपीसी की दो पनबिजली परियोजनाओं - तपोवन-विष्णुगढ़ परियोजना और ऋषि गंगा परियोजना को नुक़सान पहुँचा।


क्या होता है ग्लेशियर ?


ग्लेशियर बर्फ़ का बहुत बड़ा हिस्सा होता है जिसे हिमखंड भी कहते हैं। ये अक्सर नदी की तरह दिखते हैं और बहुत धीमी गति से बहते रहते हैं। ग्लेशियरों के बनने में कई साल लगते हैं। ये ऐसी जगहों पर बनते हैं जहाँ बर्फ़ गिरती है मगर गल नहीं पाती। ये बर्फ़ धीरे-धीरे ठोस होती जाती है। भार की वजह से ये आगे जाकर पहाड़ों से खिसकने लगती है। कुछ ग्लेशियर छोटे होते हैं जैसे फुटबॉल का एक मैदान। लेकिन कुछ ग्लेशियर बहुत बड़े हो जाते हैं और कुछ किलोमीटर से लेकर सैकड़ों किलोमीटर लंबे हो जाते हैं।


अमेरिका के नेशनल स्नो एंड आइस डेटा सेंटर के मुताबिक़ अभी दुनिया के कुल भूमि क्षेत्र के 10 फ़ीसदी हिस्सों पर ग्लेशियर हैं। माना जाता है कि ये ग्लेशियर आखिरी आइस एज के बचे अवशेष हैं जब धरती की कुल भूमि का 32 फ़ीसदी और समुद्र का 30 फ़ीसदी हिस्सा बर्फ़ से ढका था।



क्या होता है एवलांच या हिमस्खलन


हिमस्खलन अचानक से बर्फ़ की सतह के नीचे खिसकने को कहते हैं। इससे ग्लेशियर वाले क्षेत्रों में मौजूद लोगों को ख़तरा हो सकता है। ये अपने रास्ते में आने वाली किसी भी चीज़ को नष्ट कर सकते हैं। रास्तों को बंद कर सकते हैं। पूरे इलाक़े की बिजली भी जा सकती है।


हिमस्खलन के कई कारण हो सकते हैं -

- भारी बर्फ़बारी
- वनों की कटाई जिससे पहाड़ों की सतह कमज़ोर हो जाती है
- कंपन से जो भूकंप या शोर से हो सकता है
- हवा के रूख़ से जिससे बर्फ़ पहाड़ पर जमा हो सकती है
- जमी बर्फ़ के ऊपर नई बर्फ़ के जमा होने से जो खिसक सकती है।

उत्तराखंड में क्यों और कैसे बढ़ा नदियों का जलस्तर


इस बात की पूरी संभावना है कि तापमान बढ़ने से ग्लेशियरों के भीतर का पानी गल गया होगा और उससे बर्फ़ के विशाल टुकड़े टूट गए होंगे। इससे हिमस्खलन शुरू हो गया हो गया होगा जिससे चट्टान और मिट्टी से बनी कीचड़ नीचे की तरफ़ गिरने लगे।



उत्तराखंड का खतरनाक ग्लेशियर जिसमें छेद है


उत्तराखंड में कई ग्लेशियर ऐसे हैं जो कभी भी खतरनाक साबित हो सकते हैं। ऐसा ही एक ग्लेशियर चमोली जिले के माउंट त्रिशूल और माउंट नंदाघुंटी के नीचे मौजूद है। ग्लोबल वार्मिंग की वजह से ये पिघल रहा है लेकिन अब भी यह तबाही ला सकता है। इस ग्लेशियर के नीचे बने दो छेद भविष्य में तबाही ला सकते। ये छेद प्राकृतिक रूप से बने हैं।



क्या है शिला समुद्र ग्लेशियर


इस ग्लेशियर का नाम है शिलासमुद्र ग्लेशियर। Shila Samudra Glacier इलाके के में कोई बड़ा भूकंप आया तो शिला ग्लेशियर टूट सकता है। ऐसी हालत में इसकी तबाही का असर 250 किलोमीटर दूर स्थित हरिद्वार तक देखने को मिल सकता है।


शिलासमुद्र ग्लेशियर पर लोग ट्रेकिंग के लिए जाते हैं। ये रूपकुंड-जुनारगली-होमकुंड ट्रेक इसी रास्ते पर आता है। इसके एक तरफ रोन्टी सैडल है दूसरी तरफ दोडांग की घाटी। इसी घाटी में शिलासमुद्र ग्लेशियर का निचला और पथरीला हिस्सा है।



शिलासमुद्र ग्लेशियर का बर्फीला और ऊपरी हिस्सा नंदाघुंटी से निकलता है। इस जगह राजजात नामक धार्मिक यात्रा भी होती है। यह ग्लेशियर करीब 9 किलोमीटर के इलाके में फैला है। दिक्कत की बात ये है कि अब इस ग्लेशियर की तलहटी में दो प्राकृतिक छेद बन गए हैं। साल 2000 में यह छेद काफी छोटा था, लेकिन 2014 तक यह काफी बड़ा हो गया है।


अब इन दोनों छेदों के आसपास बड़ी-बड़ी दरारें पड़ी हुई हैं। इन दरारों को भविष्य का खतरा माना जा रहा है। हिमालयी पहाड़ों के एक्सपर्ट्स का मानना है कि उच्च हिमालयी क्षेत्रों में हल्के भूंकप ग्लेशियरों के लिए खतरनाक हैं।



शिलासमुद्र का पौराणिक महत्व


रूपकुंड जाने वाले ट्रैकर्स इस यात्रा को पूरा करने के लिए शिलासमुद्र ग्लेशियर को पार करते हैं। नंदा देवी राजजात यात्रा हर 12 साल पर रूपकुंड पर आयोजित होता है। इस दौरान देवी नंदा की पूजा अर्चना की जाती है।


वैज्ञानिकों का मत


2013 की आपदा के बाद से वैज्ञानिक लगातार हिमालय पर रिसर्च कर रहे हैं। देहरादून के भू-विज्ञान संस्थान के शोधकर्ताओं ने एक बड़ी चेतावनी जारी की है. उनके मुताबिक ग्लेशियरों के कारण बनने वाली झीलें बड़े खतरे का कारण बन सकती हैं। 2013 की भीषण आपदा इसका जीता जागता उदाहरण है कि किस तरह से एक झील के जाने से उत्तराखंड में तबाही का तांडव हुआ था।



वैज्ञानिकों ने श्योक नदी समेत हिमालयी नदियों पर जो रिसर्च की है वह इंटरनेशनल जर्नल ग्लोबल एंड प्लेनेटरी चेंज में प्रकाशित हुआ है। इस रिपोर्ट में के विख्यात जियोलॉजिस्ट प्रो. केनिथ हेविट ने भी मदद की है। वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ जियोलॉजी के वैज्ञानिक डॉ. राकेश भाम्बरी, डॉ. अमित कुमार, डॉ. अक्षय वर्मा और डॉ. समीर तिवारी ने 2019 में हिमालय क्षेत्र में नदियों का प्रवाह रोकने संबंधी रिसर्च ग्लेशियर, आइस डैम, आउटबर्स्ट फ्लड एंड मूवमेंट हेट्रोजेनेटी ऑफ ग्लेशियर किया है।





इस स्टडी में वैज्ञानिकों ने श्योक नदी के आसपास के हिमालयी क्षेत्र में 145 लेक आउटबर्स्ट की घटनाओं का पता लगाया है। इन सारी घटनाओं के रिकॉर्ड की एनालिसिस करने के बाद ये रिपोर्ट तैयार की है। रिसर्च में पता चला कि हिमालय क्षेत्र की करीब सभी घाटियों में स्थित ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं। लेकिन पाक अधिकृत कश्मीर वाले काराकोरम क्षेत्र में ग्लेशियर में बर्फ की मात्रा बढ़ रही है। इसलिए ये ग्लेशियर जब बड़े होते हैं तो ये नदियों के प्रवाह को रोकते हैं।


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टीम स्टेट टुडे


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