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समझिए क्या है भाला फेंक, कैसे हैं खेल के नियम और देखिए कैसे नीरज चोपड़ा ने ओलंपिक में जीता गोल्ड



टोक्यो में सम्पन्न हुए ओलंपिक में नीरज चोपड़ा ने भारत को 121 साल में पहली बार एथलेटिक्स में स्वर्ण पदक दिलाया। नीरज ने यह कीर्तिमान जैवनिल थ्रो यानी भाला फेंक प्रतियोगिता में हासिल किया। यह टोक्यो ओलंपिक 2020 में भारत का पहला और एकमात्र स्वर्ण है, जिससे पूरे देश में जश्न का माहौल है। आपको देते हैं भाला फेंक के बारे में पूरी जानकारी


सबसे पहले क्या है भाला फेंक?


भाला फेंक एक ट्रैक एंड फील्ड थ्रोइंग खेल है। इसमें एक भाला होता है, जो लकड़ी या फाइबर का बना होता है जिसके आगे के हिस्से नुकीले होते हैं जो कि हल्की धातु से बनाया जाता है, ताकि इसे ज्यादा दूर तक फेंका जा सके। इसमें दौड़ना, कूदना और फेंकना जैसी एथलेटिक प्रतियोगिताएं शामिल हैं। यह एक आउटडोर खेल है। भाला फेंक पुरुष इवेंट को डिकैथलॉन कहा जाता है, वहीं महिला इवेंट को हेप्टाथलॉन कहा जाता है। ये दोनों एक ही इवेंट है।


कैसा होता है भाला


इस खेल में फेंके जाने वाले भाले की लंबाई करीब 2.50 मीटर तक होती है। भाले के तीन हिस्से होते हैं- पहला हिस्सा नुकीला भाग होता है, जो जमीन में घुसता है। इसके बाद लकड़ी या मेटल का बना हुआ शाफ्ट या पाइप। बीच में धागे से बनी हुई ग्रिप होती है, इसका डायामीटर शाफ्ट के डायामीटर से 0.13 इंच ज्यादा होता है। पुरुषों के लिए भाले का वजन 800 ग्राम होता है। महिलाओं के खेल में इस्तेमाल किए जाने वाले भाले की लंबाई 2.20 मीटर से 2.30 मीटर तक होती है और उसका वजन 600 ग्राम होता है।



भालाफेंक खेल के नियम


खिलाड़ी भाले को ग्रिप से पकड़कर कंधे से ऊपर रखते हुए 30 मीटर के बने रनिंग ट्रैक पर दौड़ता है। इस रनवे की चौड़ाई चार मीटर होती है। रनवे के अंत में एक लाइन होती है जिससे बाहर पैर पड़ने पर उस प्रयास को सही नहीं माना जाता है।


इस दौरान खिलाड़ियों को ग्लव्स पहनने की अनुमति नहीं होती है। चोट लगने की स्थिति में वह टेप का इस्तेमाल कर सकते हैं। जब तक भाला हवा में होता है खिलाड़ी न तो सेक्टर एंगल की ओर पीठ कर सकता है न ही रनवे छोड़ सकता है।


खिलाड़ी को भाले को लगभग 29 डिग्री से बने आर्क सेक्टर में फेंकना होता है। इस बीच सेक्टर के दोनों ओर एक सात मीटर की स्क्रैच लाइन होती है, भाला इससे बाहर जाए तो फाउल माना जाता है। हर खिलाड़ी को छह अटेंप्ट दिए जाते हैं जिसमें से सर्वश्रेष्ठ अटेंप्ट को गिना जाता है।



कब होता है फाउल


अगर भाला का टिप ग्राउंड में न घुसे तो उस अटेंप्ट को सही नहीं माना जाता है। टिप से पहले अगर भाले का कोई और हिस्सा जमीन को छुए, तो उसे भी फाउल माना जाता है। लैंडिंग सेक्टर के बाहर जैवलिन जाएं, तो उसे भी फाउल माना जाता है। वहीं, शरीर का कोई हिस्सा अगर रनवे की मार्किंग लाइन से बाहर जाए तो उस अटेंप्ट को भी सही नहीं माना जाता है। भालाफेंक का वर्ल्ड रिकॉर्ड जैन जेलेगनी के नाम है, जिन्होंने जर्मनी में जेस्स मीटिंग इवेंट में 98.48 मीटर की दूरी तक भाला फेंका था। वहीं, भारत के नीरज चोपड़ा का अब तक का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन 88.06 मीटर है।



नीरज का अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रदर्शन


ओलंपिक गोल्ड के अलावा नीरज अंतरराष्ट्रीय स्तर पर 6 बड़े टूर्नामेंट में मेडल जीत चुके हैं। वे 2018 में जकार्ता एशियन मेम्स, गोल्ड कोस्ट कॉमनवेल्थ गेम्स, 2017 में एशियन चैंपियनशिप, 2016 में साउथ एशियन गेम्स, 2016 में जूनियर वर्ल्ड चैंपियनशिप में गोल्ड मेडल जीत चुके हैं। जबकि 2016 में जूनियर एशियन चैंपियनशिप में सिल्वर मेडल जीता था।


भालाफेंक कब शामिल हुआ ओलंपिक में


ओलंपिक में भाला फेंक चार ट्रैक और फील्ड थ्रोइंग स्पर्धाओं में से एक है। पुरुषों का भाला फेंक पहली बार 1908 के ओलंपिक में शामिल किया गया। इसके अलावा शॉट पुट, डिस्कस थ्रो और हैमर थ्रो थ्रोइंग स्पर्धाओं में आते हैं। महिलाओं की प्रतियोगिता पहली बार 1932 के ओलंपिक में लड़ी गई, जो 1928 में डिस्कस के बाद दूसरी महिला थ्रो प्रतियोगिता बन गई।


टीम स्टेट टुडे


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