उत्तराखंड के चमोली जिले में 8 फरवरी 2021 को सुबह ग्लेशियर टूटने से भारी तबाही मची। नंदादेवी बायोस्फियर क्षेत्र में आई इस आपदा से ऋषिगंगा पर बने करीब 13 मेगावाट के ऋषिगंगा पावर प्रोजेक्ट और धौलीगंगा पर बने 520 मेगावाट के तपोवन विष्णुगाड हाइड्रो प्रोजेक्ट ध्वस्त हो गए। 150 से ज्यादा लोग हादसे में लापता हैं। तलाश जारी है। सेना, एनडीआरएफ, एसडीआरएफ और बहुत से संगठन राहत बचाव कार्य में लगे हैं।
सबसे मन में एक ही सवाल है कि आखिर ऐसा क्या हुआ कि इतनी बड़ी तबाही हुई।
यूनिवर्सिटी ऑफ कैलगेरी के जियोलॉजिस्ट और ग्लेशियर एक्सपर्ट डॉक्टर डैन शुगर ने प्लैनेट लैब्स की सैटेलाइट इमेज की जांच करने के बाद दावा किया है कि चमोली हादसा ग्लेशियर टूटने की वजह से नहीं हुआ है. यह त्रिशूल पर्वत पर हुए भूस्खलन की वजह से नीचे ग्लेशियर पर दबाव बना है।
सैटेलाइट तस्वीरों से साफ जाहिर होता है कि जिस समय हादसा हुआ उस समय त्रिशूल पर्वत के ऊपर काफी धूल का गुबार दिख रहा है। घटना के पहले और बाद की तस्वीरों को आपस में देखने में अंतर साफ पता चल रहा है। ऊपर से जमी धूल और मिट्टी खिसककर नीचे की तरफ आई और उसके बाद फ्लैश फ्लड हुआ।
ये इलाका उत्तराखंड के हिमालयी रेंज का दुर्लभ और दूरस्थ इलाका है।
विशेषज्ञों का मानना है कि सबसे प्रबल संभावना यही है कि तापमान बढ़ने की वजह से विशाल हिमखंड टूट गए। जिसकी वजह से उनसे भारी मात्रा में पानी निकला है।
ग्लेशियरों पर शोध करने वाले विशेषज्ञों के मुताबिक हिमालय के इस हिस्से में ही एक हज़ार से अधिक ग्लेशियर हैं और इसी वजह से हिमस्खलन हुआ होगा और चट्टानें और मिट्टी टूटकर नीचे आई होगी।
भारत सरकार के वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ़ जियोलॉजी से रिटायर हुए डीपी डोभाल के मुताबिक
"हम उन्हें मृत बर्फ़ कहते हैं क्योंकि ये ग्लेशियरों के पीछे हटने के दौरान अलग हो जाती है और इसमें आमतौर पर चट्टानों और कंकड़ों का मलबा भी होता है। इसकी संभावना बहुत ज़्यादा है क्योंकि नीचे की तरफ़ भारी मात्रा में मलबा बहकर आया है।
कुछ एक्सपर्ट्स का ये भी मानना है कि, ग्लेशियर की किसी झील में हिमस्खलन हुआ है जिसकी वजह से भारी मात्रा में पानी नीचे आया हो और बाढ़ आ गई।
लेकिन विशेषज्ञों का ये भी कहना है कि इस क्षेत्र में ऐसी किसी ग्लेशियर झील के होने की जानकारी नहीं है।
हांलांकि इन दिनों ग्लेशियर में झील कितनी जल्दी और कब बन जाए ये भी नहीं कहा जा सकता।
हिंदू कुश हिमायल क्षेत्र में ग्लोबल वॉर्मिंग की वजह से बढ़ रहे तापमान के कारण ग्लेशियर पिघल रही है जिसकी वजह से ग्लेशियर झीलें ख़तरनाक विस्तार ले रही हैं और कई नई झीलें भी बन गई हैं।
जब उनका जलस्तर ख़तरनाक बिंदु पर पहुंच जाता है, वो अपनी सरहदों को लांघ देती हैं और जो रास्ते में आता है उसे बहा ले जाती हैं। इसमें रास्ते में आने वाली बस्तियां और सड़क और पुलों जैसे आधारभूत ढांचे भी होते हैं। हाल के सालों में इस क्षेत्र में ऐसी कई घटनाएं हो चुकी हैं।
एक संभावना ये भी है कि हिमस्खलन और भूस्खलन होने की वजह से नदी कुछ समय से जाम हो गई होगी और जलस्तर बढ़ने की वजह से अचानक भारी मात्रा में पानी छूट गया होगा।
हिमालय क्षेत्र में भूस्खलन की वजह से नदियों के जाम होने और अस्थायी झीले बनने के कई मामले सामने आए हैं। बाद में ये झीलें मानव बस्तियों, पुलों और हाइड्रो पॉवर प्रोजेक्ट जैसे अहम इंफ्रास्ट्रक्चर को बहा ले जाती हैं।
साल 2013 में जब उत्तराखंड के केदारनाथ और कई अन्य इलाक़ों में प्रलयकारी बाढ़ आई थी तब भी कई कयास लगाए गए थे। लेकिन काफी समय बीतने के बाद ये पुख्ता रुप से कहा गया कि बाढ़ की वजह चौराबारी ग्लेशियर झील का टूटना था।
वैसे ये जांच के बाद ही पूरी तरह स्पष्ट होगा कि आखिर धौलीगंगा में बाढ़ क्यों आई और इस तबाही का सटीक कारण क्या था।
टीम स्टेट टुडे
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