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बाबाओं पर चर्चा – तार-तार होता सनातन
“हाथ” में सियासी “रस” - #Hathras
#Hathras को “हाथ” में लेकर सियासत करने वाले सवा सौ से ज्यादा लाशों का “रस” निचोड़ रहे हैं।
किसी घटना का देश-काल-परिस्थिति के मुताबिक आंकलन कई रुप में होता है। हाथरस पर एक आंकलन जांच एंजेसियों का होगा, एक आंकलन न्यायिक आयोग का होगा, सियासी आंकलन भी हो रहा है, मीडिया भी अपनी तरह से रिपोर्ट के साथ साथ आंकलन कर रहा है, व्यक्तिगत स्तर पर भी लोग अपना अपना आंकलन कर रहे हैं परंतु हाथरस में जो हुआ उसका कैनवास बहुत बड़ा है।
आप टेलीवीजन खोलिए या सोशल मीडिया पर चल रही चर्चाओं को सुनिए, साजिश या हादसे के बीच झूलती हाथरस की घटना विश्वास और अंधविश्वास की आड़ में सनातन और आस्था को रौंद रही है।
दिलचस्प है कि विश्वास और अंधविश्वास के बीच धर्म की धज्जियां उड़ाने में पक्ष भी हिंदू है और विपक्ष भी हिंदू।
जिस ऊंची आवाज में टीवी और सोशल मीडिया पर बाबा और फर्जी बाबा के नाम पर आत्मा-परमात्मा-धर्म-सनातन-संत-महात्मा को लपेटे में लेकर परंपराओं पर शब्दों का आतंक फैल रहा है वो सिर्फ हिंदू धर्म के साथ ही किया जा सकता है। किसी एंकर, एक्सपर्ट या यूट्यूबर, इन्फ्लुएंसर की हैसियत नहीं है कि दुनिया के किसी भी अन्य धर्म पर इतनी बेबाक बहस और टिप्पणियां कर ले। आज करेगा कल सिर तन से जुदा मिलेगा।
इसमें दोराय नहीं है कि नारायण साकार उर्फ भोले बाबा के पीछे भले ही लाखों लोग भागते दिखे हों लेकिन नारायण साकार का अतीत आपराधिक है। उस पर यौन शोषण से लेकर कई गंभीर मामले दर्ज हैं। नारायण साकार ने धर्म की आड़ में आस्था का कारोबार किया है। इस कारोबार में एक हिस्सा उन नेताओं का भी है जो हाथरस को हादसा बताकर क्या जाने किसे बचाने की कोशिश कर रहे हैं।
संभव है कि अगर जांच आयोग और जांच एजेंसियां बिना किसी दबाव के अपना काम कर जाएं तो ऐसा सच सामने आ जाए जो यह बताने के लिए काफी हो कि अब भारत में लोगों की जान लेने के लिए ना तो बाहर से आतंकियों को आने की जरुरत है और ना ही आरडीएक्स और बम की।
भारत की आबादी अपने आप में इतना बड़ा विस्फोटक बन चुकी है कि अब और किसी की जरुरत ही नहीं है।
इस बात को समझने के लिए क्रमवार घट रही घटनाओं का मनोविज्ञान समझिए –
भारत की विशाल हिंदू आबादी कई स्तरों में बटीं है जिसमें आर्थिक और जातीय आधार सबसे संवेदनशील स्तर हैं। जरुरी नहीं है कि आर्थिक रुप से पिछड़े हिंदू किसी विशेष जाति के ही हों। ऐसे में आर्थिक रुप से पिछड़ा सामाजिक तबका हर समय एक चमत्कार की आस रखता है। ये चमत्कार सरकार करे या कोई सिरफिरा उसे कोई फर्क नहीं पड़ता उसे सिर्फ अपने वर्तमान जीवन में बेहतर होते बदलाव चाहिए।
जाहिर है सरकार किसी की भी हो वो आबादी को राशन और भत्ते के अलावा मुफ्त स्वास्थ्य, शिक्षा समेत कुछ हद अन्य सुविधाएं देकर संभाल सकती है लेकिन धर्म की आड़ में आस्था का कारोबार करने वाले अपने मायाजाल से व्यक्ति के विश्वास और आत्मविश्वास का कत्ल कर खुद पर अंधविश्वास का ऐसा जादू चलाते हैं कि अच्छा-खासा इंसान सिरफिरा हो जाता है। हिंदू धर्म की आड़ में आस्था का कारोबार करने वाला नारायण साकार पहला नहीं है। ऐसे बाबाओं की लंबी-चौड़ी लिस्ट है जिनके कारनामों से कई बार सनातन पर आघात हुए हैं।
ऐसा नहीं है कि ऐसे बाबा सिर्फ हिंदू धर्म में है ऐसे फर्जी मुल्ले-मौलवी, पादरी, पाखंडी दूसरे धर्मों में भी है लेकिन जिस प्रकार सनातन को रौंदा जा रहा है वैसा बल दूसरे धर्मों पर इस्तेमाल नहीं होता।
अब इसका कारण भी समझिए। भारतीय राजनीति में मुसलमान बीजेपी को छोड़कर सबका सगा है। बीजेपी को मुसलमान पसंद नहीं करता अब बीजेपी चाहे किसी मुगालते में रहे। मुसलमान के अलावा सिख, जैन, पारसी, इसाई आदि आबादी के लिहाज से हर सीट पर प्रभाव नहीं रखते।
दूसरी तरफ हिंदू सिर्फ हिंदू नहीं है वो अगड़ा-पिछड़ा-ठाकुर-पंडित-दलित-बनिया-पिछड़ा और भी बहुत कुछ है। इसलिए वो बंटता है। कई बार आर्थिक आधार पर और कई बार सामाजिक आधार पर।
चूंकि बीते एक दशक में विपक्ष की राजनीति करने वालों के लिए हिंदुओं की एकता जी का जंजाल बन गई इसलिए इस बार यूपी के नतीजे खासतौर पर हिंदू विघटन का खाका तैयार कर रहे हैं। राममंदिर, काशी विश्वनाथ कारीडोर के साथ साथ बीते एक दशक में हिंदू तीज-त्यौहारों के उत्सव बड़े हुए हैं। ऐसे में विपक्ष ने जब चुनावी मौसम में पिछड़ा-दलित-अल्पसंख्यक यानी पीडीए का फार्मूला निकाला और उस पर मुफ्त की योजनाओं का मुल्लमा भी चढ़ाया तो बीजेपी के किले की दीवार दरक गई। इस दीवार को दरकाने दलित और पिछड़े वर्ग की भूमिका बड़ी थी। इत्तेफाक से ये वही तबका है जिसे जीवन में हर क्षण चमत्कार की उम्मीद है।
हाथरस का राजनीतिक सच यह है कि नारायण सरकार के अनुयायियों में बड़ी तादात दलितों और पिछड़ों की है।
सनातन की उदारता ना तो हर दिन मंदिर जाने को बाध्य करती है ना ही तर्क-कुतर्क की रोकथाम। जबकि गिरजा, गुरुद्वारा या मस्जिद जाने वालों की कट्टरता पर अगर अब तक गौर ना किया हो तो जरुर कीजिएगा।
भारत को सेक्युलर देश बताकर भारत की मूल पहचान को मिटाने का प्रयास हमेशा होता रहा है। एक बार फिर हाथरस में घटी घटना की आड़ में बड़े ही मनोवैज्ञानिक तरीके से चर्चाओं के माध्यम से हिंदुओं की धार्मिक आस्था को ना सिर्फ कमजोर किया जा रहा है बल्कि उस स्तर तक लाया जा रहा है जहां मंदिर जाना, कीर्तन-भजन-सत्संग आदि ढोंग और पाखंड के समानान्तर दिखे और फिर सड़क हो संसद हिंदुओं को अपमानित करना कोई घृणित कार्य ना रह जाए।
2024 के लोकसभा चुनाव में जिस तरह उत्तर प्रदेश में हिंदू समाज के विघटन से विपक्ष को सीटों का लाभ हुआ उसने ये तय कर दिया कि अब सनातन की जड़ों में मट्ठा ही डालना है।
इसलिए हादरस को सिर्फ हादसा कहना उचित नहीं है। यह एक ऐसी साजिश है जिससे हमारे-आपके मन में अपनी ही आस्था पर हजार सवाल उठा दिए जाएं ताकि विशाल हिंदू सनातन परंपराएं जातियों के जाल में उलझ कर एक दूसरे का कत्लोआम कर दें।
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